काशीनाथ पाठक बहुत दिनो बाद कल आये। उन्हें मेरी पत्नीजी ने फोन किया था कि कुछ अचार और आंवले के लड्डू चाहियें।
ऑर्डर मिलने पर अपनी सहूलियत देख वे अपने कपसेटी के पास गांव से मोटर साइकिल पर सामान ले कर आते हैं। सामान ज्यादा होता है तो पीछे उनका बच्चा भी बैठता है ठीक से पकड़ कर रखने के लिये। कल सामान ज्यादा नहीं था, सो अकेले ही आये थे। बताया कि हमारे यहां जल्दी ही घर से निकल लिये थे। सवेरे थोड़ा दही खाया था। अब घर जा कर स्नान करने के बाद एक ऑर्डर का सामान ले कर गाजीपुर की ओर निकलेंगे। किसी बाबू साहब ने 2-3 हजार रुपये का अचार और आंवले का लड्डू मंगाया है।
लॉकडाउन में आपके बिजनेस पर कोई असर पड़ा?
“नहीं। मेरा काम तो पहले की तरह चला। उतना ही उत्पादन हुआ और जो कुछ बनाया, सब खप गया। असल में मेरे ग्राहक सभी गांवदेहात में हैं। करीब 15-16सौ लोग फोन पर आर्डर देते हैं। उनको एक दो दिन में सामान पंहुचा देता हूं। गांव देहात में आने जाने में दिक्कत उतनी नहीं थी। कभी पुलीस वालों ने पूछा भी तो बता, दिखा दिया कि आंवले का उत्पाद है। दवाई ही है। इम्यूनिटी बढ़ाने के लिये इससे ज्यादा गुणकारी और कुछ नहीं। पुलीस वालों ने कभी ज्यादा तहकीकात की तो सामान निकाल कर दिखा भी दिया। इसके अलावा एक ही इलाके में रोज रोज नहीं जाता था। एक दिन एक ओर तो दूसरे दिन दूसरी ओर सामान ले कर निकलता था।”

“पुलीस वालों ने कभी तंग नहीं किया। एक बार बीच में प्लास्टिक के डिब्बे खतम हो गये थे। उन्हें खरीदने बनारस जाना पड़ा। मैदागिन में मिलते हैं। वे लोग लॉकडाउन में नहीं बेच रहे थे। उन्हें भी यही बताया कि आंवले की दवाई की पैकिंग में जरूरत है। तब जा कर उन्होने दिये।”
“यह अच्छा रहा कि मेरा व्यवसाय गांवों में ही है। उसके कारण सामान बनाने और बेचने, दोनों में कोई खास दिक्कत नहीं आयी। इस दौरान जैसे काम चला, उससे मुझे यकीन हो गया है कि मेरे बाद मेरे बच्चे भी, अगर कोई और नौकरी नहीं मिली, तो यह काम अच्छे से कर सकेंगे और जीविकोपार्जन में दिक्कत नहीं आयेगी।”
पूर्वांचल में प्रवासी आये हैं बड़ी संख्या में साइकिल/ऑटो/ट्रकों से। उनके साथ आया है वायरस भी, बिना टिकट। यहां गांव में भी संक्रमण के मामले परिचित लोगों में सुनाई पड़ने लगे हैं। इस बढ़ी हलचल पर नियमित ब्लॉग लेखन है – गांवकाचिठ्ठा https://gyandutt.com/category/villagediary/ |
“जब शुरुआत की थी, तो गांव वाले बहुत मजाक उड़ाते थे। यह कहते थे कि बाभन हो कर घर घर जा जा कर बेचता है। अब वही लोग मुझसे सलाह मांगते हैं कि कोई काम कैसे किया जाये। समाज में भी मेरी प्रतिष्ठा बढ़ गयी है। पांच साल में मेरी हैसियत और मेरे आत्मविश्वास में बहुत बढ़ोतरी हुई है। आप जैसे लोगों से मेरा सम्पर्क भी बना है। उससे बहुत सम्बल बढ़ता है। मेरे ज्यादातर ग्राहक भी बाभन हैं या बाबू साहब (ठाकुर) हैं। बाबू साहब लोग ज्यादा हैं और उन्हे अचार-मुरब्बा प्रिय भी ज्यादा है। कई कई तो कहते हैं कि जो भी सामान ले कर आये हो, सब यहीं दे जाओ।”
काशीनाथ सरल व्यक्ति है। बोलता भी खूब है, पर कभी अपनी सफलता पर घमण्ड नहीं करता। लोगों से सम्पर्क बनाने और उसके आधार पर अपना व्यवसाय आगे बढ़ाने की कला बहुत आती है उसे। बहुत अच्छा नेटवर्कर है काशीनाथ।
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री जिस तरह प्रदेश में ही व्यवसाय निर्मित करने की बात करते हैं; उसके लिये काशीनाथ पाठक (मुरब्बा पण्डित) एक सशक्त आईकॉन जैसा है। बिना किसी जमा पूंजी के, अपने मेहनत और अपनी नेटवर्किंग बढ़ा कर 1600 ग्राहकों का व्यवसाय बनाना और पांच अन्य गरीब ब्राह्मणियों को रोजगार देना – वह भी गांवदेहात में; इससे बेहतर और क्या हो सकता है!
और मजे की बात यह है कि कोविड19 संक्रमण के युग में जहां कई माइक्रो और स्माल व्यवसाय ठप हो गये हैं, काशीनाथ का काम पूरे तौर पर सहजता से चलता रहा। व्यवसाय के ग्रामोन्मुख होने का लाभ था यह। आर्थिक गतिविधियां विकेंद्रित होनी ही चाहियें। उसमें भी काशीनाथ से सीखा जा सकता है।
Dear Pandey ji, love your style and simplicity. Keep it up, and I remember you always. What a great man you are. God bless.
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धन्यवाद राजीव मेहता जी! आशा है आप सकुशल और आनंद से होंगे। 🙏
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