पद्मजा के नये प्रयोग

पद्मजा का स्कूल बंद है और खुलने की सम्भावना इस स्कूल सत्र में तो है ही नहीं। उसे घर में पढ़ाने का उपक्रम किया जा रहा है। उस विषय में मैंने पिछली एक पोस्ट में लिखा था।

उसके पास समय बहुत है। समय भी है और ऊर्जा भी अपार है। स्कूल के मित्र नहीं हैं। आसपास दलित-पासवान-बिंद बस्तियां हैं। उनके बच्चे कभी कभी घर में आ कर खेलते हैं। पद्मजा की साइकिल और घर में लगा झूला उनके लिये बड़ा आकर्षण है। यदा कदा पद्मजा को उन्हें टॉफियां देने को भी कहा जाता है।

उनके साथ पद्मजा खेलती है, पर वे स्कूल के मित्रों जैसे अंतरंग नहीं हो पाये हैं। उनके साथ थोड़ी सजगता रखनी पड़ती है। कुछ बच्चे छोटे हैं, पर उनकी भाषा में अपशब्द बहुत सहज भाव से हैं – वे उनका अर्थ नहीं जानते पर सीखे उन्होने अपने परिवेश से हैं। पद्मजा को अंततोगत्वा उनका भी परिचय पाना है; पर शायद यह वह उम्र नहीं है।

पौधा उगाने का प्रयोग करने को तैयार पद्मजा

मैजिक क्रेट में पौधा उगाने का एक एपरेटस आया है। कल पद्मजा ने उसे सेट किया। ऊपर के बर्तन में क्रेट में दी गयी मिट्टी की टिकिया रखी गयी है। नीचे के बर्तन में पानी है। पानी कैपिलरी-एक्शन से एक रस्सी के सहारे मिट्टी को गीला रखेगा। मिट्टी में सरसों के बीज डाले गये हैं। उपकरण को ऐसी जगह पर रख दिया गया है जहां दिन भर पर्याप्त सूरज की रोशनी मिले।

आज उस एपरेटस का निरीक्षण किया। नीचे के बर्तन में पानी कम हो गया है। ऊपर के बर्तन में मिट्टी और गीली हो गयी है और फूल भी गयी है। पानी रस्सी से केपिलरी-एक्शन से ऊपर के बर्तन में पंहुचा है; यह स्पष्ट हुआ है पद्मजा को। एक बर्तन में तो पूरा पानी केपिलरी एक्शन से मिट्टी में चला गया। दूसरी में, जिसमें शुरुआत में मिट्टी ज्यादा गीली थी, आधा पानी ऊपर पंहुचा।

बर्तन में केपिलरी-एक्शन का प्रयोग

पद्मजा को यह भी बताया गया कि रस्सी की तरह पौधों की जड़ें भी पानी को पौधे में ऊपर की ओर ले जाती हैं।

पद्मजा की विज्ञान की किताब में सूरज की छाया के बारे में लिखा है। सवेरे और शाम को छाया बड़ी और अलग अलग दिशा में होती है। दिन में छाया छोटी होती है। यह समझाने के लिये एक धूप घड़ी बनाने का प्रयोग किया। पद्मजा को छोटी-बड़ी छाया और उससे दिन का समय जोड़ने का कॉन्सेप्ट समझ आया। यह सब उसे कमरे में चित्र बना कर भी बताया जा सकता था। उसमें समय कम लगता पर शायद वह उसके दिमाग में ज्यादा देर नहीं टिकता। अब, धूप-घड़ी शायद वह बड़ी होने पर भी याद रखे!

धूप घड़ी का प्रयोग

धूप घड़ी वाले स्थान पर उसे एक बड़ा गोजर (शप्त-पद, सेण्टीपीड) भी दिखा। उस सेण्टीपीड के माध्यम से मैंने कीडो‌ं का भी ज्ञान देने का प्रयास किया।

कुछ भी नया बताने पर बहुत से सप्लीमेण्ट्री प्रश्नों के लिये तैयार रहना होता है। और कई बार प्रश्न नितांत अलग विषय के होते हैं। बहुधा मैं कोई किताब पढ़ रहा होता हूं या आराम कर रहा होता हूं, तब भी वह चली आती है अपनी जिज्ञासा का पिटारा ले कर।

उसकी नयी साइकिल आयी है। जन्म-दिन की भेंट यद्यपि जन्मदिन के रोज नहीं, कुछ सप्ताह बाद आयी। उस साइकिल को ले कर भी भांति भांति की कल्पनायें हो रही हैं। साइकिल का नाम उसने रखा है – पंख। पक्षी पंख से उड़ते हैं, पद्मजा साइकिल से उड़ना सीख रही है। इसी साइकिल से वह भारत घूमना चाहती है।

अपने “पंख” पर सवारी करती पद्मजा

आज बता रही थी कि वह जब साइकिल से मदुराई (मदुरै – तामिलनाडु) जायेगी तो वहां लड़कियों द्वारा बनाया जाने वाला कोलम देखेगी। उसे कोलम (स्त्रियों द्वारा बनाया जाने वाला अल्पना या रंगोली) के बारे में किसने बताया? शायद टेलीविजन ने। पर मुझे खुद भी यह नहीं मालुम था कि मदुरै की लड़कियां कोलम बनाती हैं। :lol:

तमिळ महिलाओं द्वारा बनाया कोलम (चित्र सोर्स – https://bit.ly/3fnX2Sb )

गांव में बहुत बड़ा परिसर है पद्मजा के लिये। घर, पेड़, फूलों के पौधे, सब्जियां, परिसर में ही खेत और तरह तरह के जीव और पक्षी। बहुत कुछ है सीखने के लिये। और जो नहीं है वह ऑनलाइन तथा इण्टरनेट पर उपलब्ध वीडियो, पुस्तकों और कुरियर द्वारा आने वाले पैकजों के माध्यम से मिल रहा है। कुल मिला कर उसे एक शहरी बच्चे से कम संतृप्त सीखने को नहीं मिल रहा होगा।

गांव में रहने के कुछ स्वाभाविक नुकसान हैं; पर यहां सीखने को शहर के बच्चे से कम नहीं है। शायद वह जो सीख पाये; वह शहरी बच्चे कभी अनुभव न कर सकें। वह भाषा, मैंनरिज्म और आत्मविश्वास में उन्नीस न पड़े; बाकी सब तो उसके पास जो है, वह बहुत कम को मिलता होगा अनुभव के लिये!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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