रविवार, रामसेवक, अशोक के पौधे और गूंगी

रविवार (27 दिसम्बर, 2020) की सुबह; सर्दी कम थी। बाहर निकलने के पहले पत्नीजी ने टोका नहीं – “टोपी लगाओ। मोजा पहने हो या नहीं? शॉल ओढ़े ही बाहर निकल रहे हो, कुरते के नीचे इनर पहना है या नहीं।” बाहर कोहरा भी नहीं था, पर ओस जरूर गिरी थी। मौसम दिसम्बर के अंतिम सप्ताह सा नहीं, फरवरी के मध्य जैसा लग रहा था।

कल दोपहर में गूंगी दिखी थी। गूंगी यानी छोटा दुमुहाँ सांप। धमिन भी कहते हैं। अंग्रेजी नाम सैण्ड बोआ। मारा नहीं उसको, छेड़ा भी नहीं। अपनी पोती चिन्ना को भी बुला कर करीब से दिखाया – कम से कम उसका सांप से भय कुछ कम होगा।

ट्विटर पर लोग बोले – इसके दिखने से धन आता है। फॉरेस्ट सर्विस के एक बंधु बोले कि मेरी ट्वीट अनुचित है। गूंगी खतरे में है और ट्वीट से उसका खतरा बढ़ जायेगा। वह इल्लीगल भी है। मैंने वह ट्वीट निकाल दी। वैधानिकता के सवाल पर नहीं; इस बात पर कि बेचारी गूंगी पर लोभ के मारे लोगों की कुदृष्टि न पड़े। सोशल मीडिया पर किए प्रयोगों में मैंने पाया है कि स्वविवेक ज्यादा अच्छा मार्ग दर्शक है बनिस्पत कानून या परम्परा के – ‌

गूंगी। धामिन। सैण्ड बोआ।

आज सवेरे रामसेवक आये। वे हर रविवार को आते हैं। सवेरे तीन चार घण्टे हमारे घर के परिसर में पौधों की देखभाल करते हैं। बनारस में सप्ताह भर काम करते हैं लोगों के बंगलों और व्यवसायिक संस्थानों में। रविवार को छुट्टी मनाते हैं तो मेरे घर पर कुछ समय दे देते हैं। उनका भी फायदा और हमारा भी। उनके आने से घर की बगिया चमक गयी है।

अशोक के दस पौधे

आज वे दस पौधे अशोक के लाये। घर की उत्तर दिशा की चारदीवारी के साथ साथ अशोक लगाने की योजना है मेरी पत्नीजी की। उसके बगल में गुड़हल के झाड़ रहेंगे एक दूसरे से पर्याप्त दूरी बना कर। रामसेवक का कहना है कि साथ में फूलों की क्यारी की एक पट्टी भी रहेगी! अच्छी अच्छी योजनायें हैं। इसमें मेरा योगदान मात्र चित्र खींचने का है! :-)

एक कुशल माली को पर्याप्त फ्रीडम होनी चाहिए प्रयोग करने की!

रामसेवक अशोक के पौधों के लिये जगह बना रहे हैं। दीवार के साथ कूड़ा करकट इकठ्ठा कर उन्होने जला दिया है। वह जगह वही है, जहां कल धामिन दिखी थी। रामसेवक को उसके बारे में बताया तो बोले – अब तो चली गयी होगी साहब। बहुत निरीह जीव है। कभी किसी को नुक्सान पंहुचाते नहीं देखा। दिखने पर धन ही आता है!

रामसेवक अशोक के पौधे रोपने के लिये जगह बना रहे हैं। वह स्थान वही है, जहां कल धामिन दिखी थी।

एक घण्टे बाद देखा तो रामसेवक जी वहां अशोक के पौधे रोप भी चुके थे। गुड़हल की भी पांच टहनियाँ काट कर रोप दी थीं – “दो तीन भी चल गयीं तो कई गलत जगह लगे अढ़उल (गुड़हल) हटाये जा सकेंगे। एक चम्पा की टहनी भी इसी हिसाब से लगाई है।”

रामसेवक जी ने रोप दिया है अशोक का पौधा, जहां गूंगी दिखी थी।

रामसेवक केवल बगीचे में पौधे रोप ही नहीं रहे, बगीचे को री-ऑर्गेनाइज करने की अपनी स्कीम के अनुसार काम कर रहे हैं। कंंटाई छंटाई और रोपने के बाद देखा तो वे पौधों/झाड़ों पर छिड़काव भी कर रहे थे। पौधों, विशेषत: गुड़हल में सफेद कीड़ा लगता है। उसका इलाज कर रहे थे वे।

वे बताते हैं कि माता-पिता ने उनका नाम रामसेवक रखा तो कुछ सोच कर ही रखा होगा। पौधों की देखभाल के जरीये ही (राम की) सेवा करते हैं वे! उनकी पत्नी को गुजरे दशकों हो गए हैं। बच्चे छोटे थे तो उनको पालने और उन्हें कर्मठता के संस्कार देने में सारा ध्यान लगाया। दूसरी शादी नहीं की। वैसे भी आसपास लोगों में फिजूल खर्च, पर निंदा, नशा खोरी आदि के अनेक दोष हैं; पर राम सेवक में ऐसा कोई दोष नजर नहीं आता।

अपराजिता की लता।

पता नहीं उन्होने लगाया था, या पहले से हमारे पास है – एक अपराजिता की बेल। रामसेवक उसे नीलाम्बरी कहते हैं। शंकर जी को प्रिय है यह फूल। कल डा. रविशंकर के फेसबुक पोस्ट पर देखा था कि इसके फूलों की चाय का वे सेवन करते हैं। चार फूल डाल कर जल उबालते हैं और उसमें शहद मिला कर, या वैसे ही, पीते हैं। उसमें अगर शहद मिलाते हैं तो नींबू नहीं निचोड़ते।

रविशंकर जी ने बताया कि अपराजिता की पत्तियां, फल और जड़ – सभी अयुर्वेद के अनुसार फायदेमद है। एक लेख की प्रति भी भेजी उन्होने मुझे ई-मेल से। रविशंकर जितने विलक्षण एक्सपेरिमेण्टल ऑर्कियॉलॉजिस्ट हैं, उतने ही प्रयोगधर्मी और जिज्ञासु जीवन के हर एक पक्ष में हैं। मैं चाहता हूं कि वे नियमित मेरे यहाँ आयें, पर वे कहते हैं कि काम बहुत है। पुरातत्वविद क्या बहुत बिजी रहता है?

मेरे ख्याल से, मेरे घर में लगे बहुत से पौधे किसी आयुर्वेद वाले के लिये काम के होंगे। … अश्वगंधा, स्टेविया और तेजपत्ता के पौधे ठीक से पनप रहे हैं। कुछ सालों बाद जब उम्र हम पर हावी होगी और हमारी मोबिलिटी और कम हो जायेगी, तब हम चाहेंगे कि लोग हमारे यहां आयें, और यही सब देखने के लिये आयें।

अपडेट –

गूंगी फिर दर्शन दिए आज 29 दिसंबर दोपहर तीन बजे –


आत्मकथ्य –

रविवार की सुबह गुजर गयी है। दोपहर हो गयी है। शाम होते देर नहीं लगेगी। आजकल दिन छोटा ही होता है। शाम सात बजे तक तो गांव सोने की तैयारी करने लगता है। गतिविधियां सामान्य दिनों से ज्यादा होती हैं हमारे घर में रविवार को। सो इंतजार रहता है रविवार का। … कुल मिला कर यह लग रहा है कि मैं अपने घर के परिसर से उत्तरोत्तर ज्यादा लगाव महसूस कर रहा हूं। हो सकता है उम्र के साथ साथ यह अंतर्मुखी बनने की प्रक्रिया का अंश हो। आखिर नौजवान तो बाहर घूमना चाहता है, दुनियाँ देखना चाहता है। मेरी तरह अपने घर की फूल पत्ती और जीवों में, या किताबों में सिमटना नहीं चाहता।

खैर, इण्टर्नलाइज होने की अपनी एक क्रियेटिविटी है। तुलसी ने रामचरितमानस कितनी उम्र में लिखा था? कुछ लोग कहते हैं पचास की उम्र में और कुछ कहते हैं पचहत्तर की उम्र में। पचहत्तर वाले मानते हैं कि तुलसीदास सवा सौ साल जिए। मैं पचहत्तर पर यकीन करना चाहता हूँ और सोचता हूं कि एक दो दशक अभी बचे हैं अपनी क्रिएटिव ऊर्जा का स्पार्क देखने को।

बाज की असली उड़ान बाकी है। बाज को यकीन भर बना रहे कि वह बाज है, बस!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “रविवार, रामसेवक, अशोक के पौधे और गूंगी

  1. Very nice information about Dhamin. I like it most. Your discussion about age is very interesting and useful for a man at my age.

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