आज सवा छ बजे घर का गेट खोलने बाहर निकला तो पाया कोहरे की शुरुआत हो गयी है। अब दिनचर्या बदलेगी। सवेरे सात बजे साइकिल ले कर निकलने की बजाय अब नौ या दस बजे निकलना होगा। लेकिन साइकिल चलाते रहो ज्ञानदत्त जी। शारीरिक और मानसिक दोनो फिटनेस का मूल साइकिल में ही है। जिसContinue reading “ठण्ड बढ़ी है। आज कोहरे की दस्तक हुई है।”
Tag Archives: Fog
प्रसन्नता की तलाश – गंगा, गांव की सैर
सवेरे अपने वाहन चालक को सात बजे बुला, उसके साथ एक कप चाय पीने के बाद हम दोनों ने घर से निकल कर गांव की छोटी सड़कों पर यूंही घूमने की सोची। करीब एक घण्टा इस प्रकार व्यतीत करने का कार्यक्रम रखा।
कुहासा – रीपोस्ट
मौसम कुहासे का है। शाम होते कुहरा पसर जाता है। गलन बढ़ जाती है। ट्रेनों के चालक एक एक सिगनल देखने को धीमे होने लगते हैं। उनकी गति आधी या चौथाई रह जाती है।
रविवार, रामसेवक, अशोक के पौधे और गूंगी
माता-पिता ने उनका नाम रामसेवक रखा तो कुछ सोच कर ही रखा होगा। पौधों की देखभाल के जरीये ही (राम की) सेवा करते हैं वे! उनकी पत्नी को गुजरे दशकों हो गए हैं। बच्चे छोटे थे तो उनको पालने और उन्हें कर्मठता के संस्कार देने में सारा ध्यान लगाया।
आज तो कोहरा घना है – प्रतिनिधि चित्र
आज तो मन है बिस्तर में ही चाय नाश्ता मिल जाए। उठना न पड़े। बटोही (साईकिल) को देखने का भी मन नहीं हो रहा। आज तो कोहरा घना है। यह प्रकृति की व्यक्तिगत आलोचना है! पता नहीं बिसुनाथ का क्या हाल होगा। वह तो आपने एक कमरे के घर में बाहर पुआल के बिस्तर परContinue reading “आज तो कोहरा घना है – प्रतिनिधि चित्र”
फाफामऊ, सवेरा, कोहरा, सैर
रात में रुका था अस्पताल में। केबिन में मरीज के साथ का बिस्तर संकरा था – करवट बदलने के लिये पर्याप्त जगह नहीं। बहुत कुछ रेलवे की स्लीपर क्लास की रेग्जीन वाली बर्थ जैसा। उसकी बजाय मैं जमीन पर चटाई-दसनी बिछा कर सोया था। रात में दो तीन बार उठ कर जब भी मरीज (अम्माजी)Continue reading “फाफामऊ, सवेरा, कोहरा, सैर”