आज गांव और #गांवपरधानी

दूध लेने गया था मन्ना पण्डित के अहाता में। आज मिल गये। वर्ना सामान्यत: सात बजे गायों के दुहने और दूध घर में आने के बाद वे मोटरसाइकिल पर निकल चुके होते हैं। चुनाव के उस दौर में जब सीटों के आरक्षण की घोषणा नहीं हुई थी, तब वे सवेरे क्लीन शेव, कलफ लगा कुरता पायजामा और बढ़िया स्पेर्ट्स शू के साथ तैयार दिखते थे। तब उनके जिला पंचायती के वार्ड नम्बर 26 से चुनाव लड़ने के पोस्टर लगे थे।

क्षेत्र बड़ा होने के कारण दिन भर प्रचार के लिये व्यतीत करना होता था। पर वार्ड की सीट आरक्षित वर्ग के लिये हुई घोषणा ने सब गुड़ गोबर कर दिया। पोस्टर लगवाने और घूम कर प्रचार करने में फुंके पेट्रोल का खर्चा बट्टे खाते चला गया। चूंकि रसूख वाले व्यक्ति हैं; अत: उनके पोस्टर अब भी लगे हैं। किसी ने फाड़ने की गुस्ताखी नहीं की है। पर चांस तो चला ही गया!

मन्ना पण्डित

मन्ना दुबे को परधानी के परिदृष्य का जायजा लेने के लिये सवाल किया। जवाब – “सब बेकार है। सब सरये हाथ जोड़ घूमत हयें। अभी पैर छूने को कहो तो सारे के सारे दण्डवत लेट जायेंगे आपके सामने। जीत जाने पर रंगबाजी छांटेंगे।”

“तब भी, किसी को बैकिंग देने का तय तो किया होगा?”

मन्ना ने नॉन कमिटल जवाब दिया – “नाहीं जीजा। जो कोई ढंग का निकलेगा। काम करेगा। उसको देखा जायेगा। अभी मन नहीं बनाया है।”

मन्ना का अहाता बड़ा है। तीन चार बीघे की चारदीवारी है। गांव में सबसे ज्यादा रसूख-रुतबा! सभी उम्मीदवार यहां ‘आसीर्बाद’ ले कर गये ही होंगे। मन्ना खुद प्रधान रह चुके हैं। इसलिये गांव की राजनीति को समझने में उनसे बेहतर व्यक्ति कोई नहीं हो सकता। गांव की सामाजिकता और राजनीति वे ओढ़ते बिछाते हैं। पर उन्होने पत्ते नहीं खोले; सिवाय इस जनरल स्टेटमेण्ट के कि ‘सब सरये मायावती क जैजैकार करई वाले हयेन’। उन्होने यूंही, या जानबूझ कर मुलायम/अखिलेश को जैजैकारियत से नहीं जोड़ा! :-)

पांड़े लोगों के आसपास की दीवार पर पोस्टर

इमलिहा पांड़े लोगों की दीवार पर किसी श्रीमती निर्मला सोनी का परधानी का पोस्टर लग गया था। पिछला एक उम्मीदवार का पोस्टर तो नुच गया था। अब क्या अंदाज लगाया जाये कि पंड़ान निर्मला सोनी के पाले में है? कल पण्डित रमाशंकर पांड़े मिले थे। कलकत्ता से किसी के तेरही में आये थे। फ्लाइट से आये और फ्लाइट से ही लौट गये। अब गांव में लोग बम्बई-कलकत्ता से यूं आते जाते हैं मानो बनारस-प्रयागराज से आ-जा रहे हों। हवाई जहाज अब (अपेक्षाकृत सम्पन्न) गांववासियों के डोमेन में आ चुका है। एक हम ही साइकिलहे बचे हैं!

राजेश की जलेबी – समोसा की दुकान पर रुक कर मैंने पूछा – “कोई परधानी का केण्डीडेट जलेबी-समोसा खिलवाने नहीं लाया लोगों को अभी तक?” राजेश का उत्तर नकार में था। अभी लगता है परधान लोग नाश्ता कराने की प्रतिस्पर्धा में नहीं जुटे। शायद पर्चा दाखिल होने के बाद जलेबी-समोसा जोर पकड़े। वैसे यह सुना है कि असल जोर तो बोतल, चिलम, गांधी जी वाले कागज आदि से पड़ता है। उसकी सूचना शायद मुझ जैसे कमजोर ब्लॉगर को न मिल पाये। :lol:

फुलौरी-उमेश पण्डित की सरसों का खलिहान

उमेश पण्डित की सरसों खलिहान में आ गयी है। सवेरे आज फुलौरी (उनका अधियरा) नहीं था वहां। पर सरसों की खलिहान में रखी फसल का चित्र तो मैंने साइकिल रोक कर लिया। उमेश की किराना दुकान पर आज उमेश नहीं दिखे, पर भगवानदास जरूर मिले। मैंने पूछा – “कोई बाटी-चोखा खिलाने वाला आया या नहीं?”

हंसते हुये भगवानदास ने जवाब दिया – “अभी तक नहीं। इतने पोस्टर लग गये हैं, पर अभी किसी ने हामी नहीं भरी। लगता है पर्चा भराई होने पर खिलायेंगे!” भगवानदास छाप आशावाद पूरा गांव पाले हुये है।

कल गांजा गैंग का शिवरात्रि की रात का हरिनाम कीर्तन/जागरण अलबत्ता खूब बढ़िया मना। रात भर माइक पर उनकी आवाज आती रही!

मेरी पत्नीजी ने कहा था कि असल परधानी हालचाल उमेश या तूफानी की दुकान पर मिलेगा; जहां लोगों की बैठकी होती है। पर दोनो ही अपनी दुकान पर नहीं थे। तूफानी की दुकान पर राजन भाई जरूर विराजमान थे। पर मेरा आजकल का आकलन है कि उनके पास गांव की सामान्य और #गांवपरधानी हलचल की कोई झन्नाटेदार खबर नहीं होती। वे गांव की रहचह के बुझते कारतूस हैं।

लेवल क्रॉसिंग पर एक व्यक्ति लहसुन प्याज की बोरी लिये था। ट्रेन आने वाली थी। उससे भुजाली ने लहसुन का दाम पूछा तो बताया अस्सी रुपया किलो। पर मैंने पूछा तो बताया – नब्बे रुपये किलो लहसुन और तीस रुपया किलो प्याज। खरीददारी करनी हो तो मुझे अपने कपड़े और मैले, और पुराने पहनने चाहियें।

यह लहसुन प्याज वाला भी फेरी से सामान बेच रहा था।

वैसे यह लहसुन प्याज वाला भी फेरी से सामान बेच रहा था। सवेरे सात बजे महराजगंज बाजार से लहसुन प्याज ले कर निकला है और कई गांवों में घूम कर ईग्यारह बजे वापस अपने स्थान पर पंहुच जायेगा। कई प्रकार के कई सामान वाले फेरीवाले इस प्रकार सवेरे के काम से 3-4 सौ कमा ले रहे हैं। बाकी दिन कोई और काम करते हैं।

एक और नित्य का कमाई वाला काम करता दिखा। साइकिल पर बेलपत्र और दूब के गठ्ठर लादे था। यह बेलपत्र और दूब बनारस जाती है – बाबा विश्वनाथ मंदिर के लिये।

वह साइकिल पर बेलपत्र और दूब के गठ्ठर लादे था। यह बेलपत्र और दूब बनारस जाती है – बाबा विश्वनाथ मंदिर के लिये।

बेल पत्र तथा दूब तोड़ने और उसे ठीक से जमा करने, ले जाने के काम में करीब गांव के पचास लोगों की जीविका चलती है। जब सवारी ट्रेन चलती थी तो किराये की भी बचत होती थी। अभी यह ऑटो या टाटा मैजिक से जाती है बनारस। विश्वनाथ मंदिर बहुत लोगों की जीविका चलाता है।

यह एक और किशोर था बेल पत्र और दूब ले जाता हुआ।

ये फेरीवाले या बेलपत्र-दूब वाले परधानी के चुनाव से निस्पृह, अपने काम में लगे हैं। रोजी रोटी कमा रहे हैं। परधानी की चकल्लस तो हम जैसे निठल्लों के लिये मनोरंजन का साधन है।

घर वापसी के समय बसंत भी मिल गये। बसंत कनौजिया। उनके भाई सुबेदार ग्रामपंचायती के लिये खड़े होने वाले थे, पर सीट ओबीसी के पाले में चली गयी। फिलहाल बसंत भी बहुत व्यस्त हैं। “नेता लोगन क बहुत कपड़ा धोवात-कलफ-प्रेस करात हयें। फुर्सत नाहीं बा (नेता लोगों के आजकल प्रधानी चुनाव के कारण बहुत कपड़े धुलाई-कलफ लगाई और प्रेस कराई के लिये मिल रहे हैं। फुर्सत नहीं मिल पा रही)।”

तो यह था #गांवपरधानी के एक दिन का हाल। ऐसे जाने कितने दिन गुजरेंगे! विक्रमपुर टाइम्स की कई चार-छ-आठ कॉलम की हेडलाइंस की खबरें बनेंगी! इधर ही समय व्यतीत हो जा रहा है। गंगा किनारे जाना ही नहीं हो रहा! :lol:


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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