#गांवदेहात की सुबह – उमेश, इस्माइल और भगेलू

फुलौरी दम्पति आज खलिहान में नहीं थे। कोई अन्य व्यक्ति दिखा। मुझे लगा कि फुलौरी का सरसों खत्म हो गया है और उस जगह का कोई दूसरा अधियरा प्रयोग कर रहा है। उस व्यक्ति से पूछने का प्रयास किया तो लगा कि वह ऊंचा सुनता है। उम्र में भी फुलौरी से कहीं ज्यादा था।

सरसों के खलिहान में भगेलू

सड़क के उस पार उमेश खड़े थे अपनी किराना दुकान पर। उन्होने बताया कि वह भगेलू है। फुलौरी का पिता। उमेश की सरसों अभी पूरी तरह से निकाली नहीं गयी है। सवेरे सवेरे भगेलू सरसों की फसल के गठ्ठर खोल रहा था – जिससे आसानी से पीट कर दाने निकाले जा सकें। सरसों के दाने तो महत्वपूर्ण हैं ही, उनके डण्ठल, खुत्थी, दानों के खोल – सब काम आते हैं। गांव में सिवाय प्लास्टिक की पन्नी के कचरे के, कुछ भी बर्बाद नहीं जाता।

उमेश की दुकान के पास अपनी साइकिल लिये इस्माइल।

उमेश की दुकान के पास इस्माइल खड़ा था। उमेश जैसे पच्चीस तीस किराना की दुकानों को वह सवेरे सवेरे बेकरी का सामान सप्लाई करता है। इस्माइल के बारे में मैं पहले भी लिख चुका हूं। मैंने उसे अपने मोबाइल फोन पर वह ब्लॉग पोस्ट निकाल कर दिखाई। उसके द्वारा उसे यह समझ में आया कि मैं उसके चित्र क्यों लेता हूं। “इसके जरीये दुनियां भर में तुम्हारे बारे में लोग जानने लगते हैं, इस्माइल।” इस्माइल को यह सुनना अच्छा लगा, पर वह प्रसन्नता के अतिरेक में आया हो, ऐसा नहीं लक्षित हुआ।

सवेरे सवेरे भगेलू सरसों की फसल के गठ्ठर खोल रहा था – जिससे आसानी से पीट कर दाने निकाले जा सकें। सरसों के दाने तो महत्वपूर्ण हैं ही, उनके डण्ठल, खुत्थी, दानों के खोल – सब काम आते हैं। गांव में सिवाय प्लास्टिक की पन्नी के कचरे के, कुछ भी बर्बाद नहीं जाता।

मैंने इस्माइल से एक बिस्कुट का पैकेट खरीद लिया। महराजगंज की पण्डित की बेकरी का बना मीठा नमकीन बिस्कुट। घर पर पत्नीजी ने खा कर अप्रूव किया कि अच्छा ही है। कोई बाहरी अतिथि आये तो उसके सामने रखा जा सकता है चाय के साथ।

उमेश को नित्य की बेकरी सप्लाई देता इस्माइल। बैकग्राउण्डडमें उमेश की किराना दुकान है।

उमेश दुबे की किराना की दुकान सड़क पर है। सड़क जो हाईवे से सात आठ गांवों को जाती है। यह दुकान हाईवे और कटका रेलवे स्टेशन – दोनो के पास है। मैं गांव के सबर्बन रूपांतरण की कल्पना करता हूं। अगर प्रयाग-वाराणसी का वैसा विकास हुआ जैसा वडोदरा-अहमदाबाद का है तो उमेश की दुकान साणद की एक दुकान सरीखी होगी एक दशक में। कटका साणद जैसा सबर्ब बन जायेगा।

किसानी से दुकानदारी के रूपांतरण में उमेश ने सबसे पहले पहल की है। बतौर एक दुकानदार जो पैसे की समझ, जो विनम्रता और जो वाकपटुता जरूरी हो, वह उमेश ने दक्षता से हासिल कर ली है। ब्राह्मण की अर्थहीन ऐंठ त्याग कर वह दुकानदार की तन्यता की जरूरत जान गया है। अगर वह सही चलता रहा तो उसका भविष्य और गांव वालों की अपेक्षा बहुत उज्वल होगा। अगले दस साल में उमेश की प्रगति देखना एक रोचक समाजशास्त्रीय अध्ययन होगा! शायद तब कोई समाजशास्त्री मेरे ब्लॉग का संदर्भ दे! :lol:

किसानी से दुकानदारी के रूपांतरण में उमेश ने सबसे पहले पहल की है। बतौर एक दुकानदार जो पैसे की समझ, जो विनम्रता और जो वाकपटुता जरूरी हो, वह उमेश ने दक्षता से हासिल कर ली है। ब्राह्मण की अर्थहीन ऐंठ त्याग कर वह दुकानदार की तन्यता की जरूरत जान गया है।

यह था आज सवेरे का गांव का हाल। परधानी का शोर कुछ कम हो गया है। अभी गांव इंतजार कर रहा है कि कोर्ट कचहरी प्रधानी-पंचायती आरक्षण पर क्या फैसला देते हैं। उसके बाद ही प्रचार, जलेबी-समोसा, बाटी-चोखा और लेन देन का कार्य जोर पक‌ड़ेगा।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “#गांवदेहात की सुबह – उमेश, इस्माइल और भगेलू

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started