19 सितम्बर 2021:
इग्यारह बजे प्रेमसागर का संदेश मिला – “संकरा वन है। अभी पता चला है कि बाघ या शेर आया हुआ है। उनके पैर का निशान मिले है। उसी जंगल को पार कर रहे हैं। यहाँ से ५ किलोमीटर किरन घाटी है (जहां रास्ता अवरुद्ध है) ॐ नमः शिवायः।”
कल प्रेमसागर ने सीतापुर, अनूपपुर में रेस्ट ही किया। बिचारपुर, शहडोल से सीतापिर, अनूपपुर का रास्ता लम्बा था। बकौल प्रेमसागर करीब 60 किमी चलना हुआ था। उसके बाद रविवासरीय विश्राम “शार्पेन द सॉ Sharpen the Saw” जैसा हो गया। पैरों की बैटरी रीचार्ज!
आज सवेरे उन्होने वहां नर्सरी/रोपनी में रुद्राक्ष का पौधा लगाया। रुद्राक्ष का पौधा उस व्यक्ति से रोपवाया जाता है, जो सरल हो, संत हो और उसके मन में किसी के प्रति दुर्भावना न हो। प्रवीण दुबे जी ने सम्भवत: उनके ये गुण देख कर ही उनसे कहा था कि वे रुद्राक्ष का रोपण करें।

मुझे याद है कि एक जगह पर विष्णुकांत शास्त्री जी से रुद्राक्ष लगवाया गया था – यही जान कर कि वे सरल और विद्वान व्यक्ति हैं। उनका जीवन सेल्फ-लेस रहा है। एक रुद्राक्ष का पौधा मुझे भी दिया था मेरे मित्र प्रदीप ओझा ने। वह दो साल खूब बढ़ा। ऊंचाई करीब आठ फुट तक हो गयी। पर अचानक एक सर्दी में उसके पत्ते झरे और वह सूख गया। शायद हम पर्याप्त सरल, संत, दुर्भावना रहित न थे या मेरे घर की आबोहवा रुद्राक्ष को रास न आयी! 😦
मैं कामना करता हूं कि सीतापुर नर्सरी का यह रुद्राक्ष पनपे और विशाल वृक्ष बने। यह 20-25 मीटर तक ऊंचा बड़ा वृक्ष होता है। … आज प्रेमसागार जी के यह पौधा लगाते चित्र देख लगता है कि एक बार फिर मैं कोशिश करूंगा अपने परिसर में रुद्राक्ष लगाने की। शायद प्रवीण दुबे जी का एक नया सेपलिंग मिलने में सहयोग मिल सके।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |

पौधा रोपण के बाद प्रेमसागर आज सवेरे आठ बजे वहां से राजेंद्रग्राम के लिये निकल पड़े। यह रास्ता करीब 35 किमी का है। बीच में किसी स्थान पर रास्ता अवरुद्ध हो गया है। “राजेंद्रग्राम से वन विभाग के त्रिपाठी जी ने फोन कर बताया है कि उस स्थान पर एस्कोर्ट कर अवरोध पार करा देंगे” – ऐसा प्रेमसागर जी ने सूचित किया। उन्होने बताया कि सामने एक चाय की दुकान है जहां वे चाय के लिये रुके हैं। जगह का नाम बताया जमुड़ी। उन्हें तब सीतापुर से निकले घण्टा-डेढ़ घण्टा हो गया था।
इग्यारह बजे उनका संदेश मिला – “सकरा वन (वन का नाम) है। अभी पता चला है कि बाघ या शेर आया हुआ है। उनके पैर का निशान मिले है। उसी जंगल को पार कर रहे हैं। यहाँ से ५ किलोमीटर किरन घाटी है (जहां रास्ता अवरुद्ध है) ॐ नमः शिवायः।“
वन का चित्र सवेरे 10:36 का है।

जंगल, बाघ और अकेला पार करता कांवर पदयात्री। पता नहीं मन में भय लगा था या नहीं! प्रेम सागर ने बताया कि जंगल काफी घना और बड़ा है। वन कैसा है, कौन कौन वृक्ष हैं, कैसी वनस्पति, कैसे जीव? यह उनसे नहीं मालुम हो सकता। मुझे मानसिक (डिजिटल) यात्रा करते समय कहीं और से भी इनपुट्स लेने चाहियें।
आज शाम को उनके राजेंद्रग्राम पंहुचने पर उनके वन, घाटी और अकेले पार करने के मानसिक अनुभव पता करूंगा। फिलहाल इसको पोस्ट करता हूं! 🙂
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अभी इरीटेम परिसर में रुद्राक्ष के पेड़ लगवाये हैं। सरल स्वभाव वाली योग्यता ज्ञात नहीं थी, यहाँ कार्यरत मालिनों ने ही लगाया है, निश्चय ही फल जायेगा। प्रेमसागरजी की यात्रा उत्तरोत्तर रोचक होती जा रही है।
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यहां शायद दीमक हैं, उन्होंने जड़ों को चूस लिया होगा.
रूद्राक्ष और पवित्रता का एक भाव तो जुड़ा हुआ ही है.
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