21 सितम्बर 2021, शाम:
आज की यात्रा के उत्तरार्ध की चर्चा करते हुये प्रेमसागर जी ने बताया कि रास्ता बदल कर कच्चा मार्ग पकड़ा था जो सीधे अमरकण्टक ले जाता था। उसमें कहीं कहीं तो सड़क पर पानी था। कहीं बांयी ओर पानी के तेज गिरने की, झरने की आवाज आती थी, पर दिखाई कुछ भी नहीं पड़ता था। एक जगह झरने की आवाज दांयी ओर से सुनाई पड़ी और झरना दिखा भी। रास्ते में जगह जगह बड़े पेड़ टूट कर रास्ता पूरी तरह बंद कर पड़े थे।
प्रथम चरण – प्रयागराज से वाराणसी होते, रीवा, शहडोल, अनूपपुर, बंद मार्ग पर मैकल पर्वत की चढ़ाई और कच्चे रास्ते पर गिरे हुये वृक्षों को पार करते हुये अंतत: द्वादश ज्योतिर्लिंग के कांवर पदयात्री प्रेम सागर अमरकण्टक पंहुच ही गये आज शाम चार बजे! उन्होने वन विश्रामगृह अमरकण्टक का चित्र भेजा जो आज से सत्तर साल पहले समुद्र तल से 1061 मीटर की ऊंचाई पर बना था। आज की यात्रा के बारे में प्रेमसागर पांड़े कहते हैं कि वह रोमांच और आनंद से संतृप्त यादगार यात्रा थी। अमरकण्टक पंहुचने पर एक उपलब्धि का जो भाव होता है, वह उनकी आवाज से टपक रहा था। बोले – “आज का यात्रा तो यादगार रहेगा! सबसे रोचक बोला जाये तो आज का रहेगा। घाटी पार करने पर जलेस्वर धाम का मंदिर था जहां सोन और नर्मदा माई के विवाह का स्थल है। वहां दर्शन किया तो बगल में माँ अन्नपूर्णा का मंदिर था। उसके पास ही छत्तीसगढ़ की सीमा भी पड़ती है। अमरेश्वर महादेव के मंदिर में द्वादश ज्योतिर्लिंग की प्रतिकृतियाँ बिठाई गयी हैं।”
कुल मिला कर अमरेश्वर मंदिर में प्रेमसागर जी ने बारहों ज्योतिर्लिंग की झांकी देख ली – जहां की पदयात्रा का उनका संकल्प है!
उपलब्धि प्राप्त होने पर विनयशील व्यक्ति उन सब के प्रति धन्यवाद कृतज्ञता जताने के मोड में आ जाता है जो उस बड़े कार्य में सहायक होते हैं। वे वन विभाग के सभी लोगों के प्रति बारम्बार आभार और कृतज्ञता व्यक्त कर रहे थे जो रास्ते भर उनकी सुविधाओं और कुशलक्षेम के लिये लगे रहे! वे प्रवीण दुबे जी, सुधीर पाण्डेय जी और मेरे लिये बोले – “मेरे मन में आता है कि आप तीनों मेरे लिये ब्रह्मा-विष्णु-महेश हैं! तीनो देव मेरी सफलता के लिये सदा कृपा बनाये रखे।”

मैंने हंसते हुये उनसे पूछा – “अच्छा?! कौन ब्रह्मा है, कौन विष्णु और कौन महेश?!”
प्रेमसागर जी की वाणी में हल्की स्टैमरिंग है। उसके साथ उन्होने उत्तर दिया – “हम तो, हम तो यही मानते हैं कि आप ब्रह्मा हैं; काहे कि आप सबसे पहले मिले। फिन प्रवीण भईया (प्रवीण दुबे जी) विष्णु हैं और, और सुधीर भईया (सुधीर पाण्डेय) महेश हैं!”

राजेंद्रग्राम से अमरकण्टक के रास्ते के बारे में प्रेम सागर कहते हैं कि दृश्य बहुत मनोरम था। रास्ते के दोनो ओर वन और पहाड़ियाँ थीं। बीच बीच में मंदिर भी मिल रहे थे। धूप तेज थी, पर चुभ नहीं रही थी। वैसी सुखद थी जैसी शरद ऋतु में होती है। शिव मंदिर ही मुख्यत: मिले। एक स्थान पर तो बहुत ही बड़ा शिवलिंग देखा उन्होने। नंदी की भी विशाल प्रतिमा थी।
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आज शैलेश पण्डित जी ने दस साल पहले की गयी अपनी राजेंद्रग्राम से अमरकण्टक की यात्रा के कुछ चित्र भेजे। उनमें से एक चित्र में सड़क के दोनो ओर लम्बे लम्बे वृक्ष दिखते हैं। पर प्रेमसागर जी के चित्रों में सड़क किनारे का वैसा दृश्य नजर नहीं आया। एक दशक में बहुत कुछ बदला भी होगा। शायद मंदिर और स्थान वही हों। पर पर्यावरण में परिवर्तन तो होंगे ही!

आज की यात्रा के उत्तरार्ध की चर्चा करते हुये प्रेमसागर जी ने बताया कि रास्ता बदल कर कच्चा मार्ग पकड़ा था जो सीधे अमरकण्टक ले जाता था। उसमें कहीं कहीं तो सड़क पर पानी था। कहीं बांयी ओर पानी के तेज गिरने की, झरने की आवाज आती थी, पर दिखाई कुछ भी नहीं पड़ता था। एक जगह झरने की आवाज दांयी ओर से सुनाई पड़ी और झरना दिखा भी। रास्ते में जगह जगह बड़े पेड़ टूट कर रास्ता पूरी तरह बंद कर पड़े थे। प्रेमसागर जी ने उन्हें चढ़ कर और लांघ कर पार करने का यत्न किया। आगे बढ़े पर एक जगह काले मुंह वाले बहुत से बंदर सामने आ गये। वे खतरनाक लग रहे थे। प्रेमसागर ने अपने कदम मोड़ लिये और उसी रास्ते पर वापस करीब पांच किलोमीटर लौटे। वहां उन्हें वन विभाग के वर्मा जी मिले जो उन्हे दूसरे रास्ते से ले कर विश्रामगृह पंहुचे। “सब कुछ बहुत ही रोचक और रोमांचक था।” – यह प्रेम सागर जी ने बार बार कहा।

रोचकता, रोमांच और आनंद – इनको शब्दों में व्यक्त करने की मेरी विपन्नता है। प्रेम सागर मुझे वे शब्द दे नहीं सकते, वे भाव दे सकते हैं। मैं शब्द जुगाड़ सकता हूं पर मेरे पास अनुभव और भाव नहीं हैं। अपनी पत्नीजी को मैं अपनी यह व्यथा कहता हूं तो वे झिड़क देती हैं – “तुमने खुद ने गुड़ खाया नहीं है और खाने वाला अगर मूक है तो उस स्वाद की बात करना बेमानी है। जो तुम्हें समझ आ रहा है, वही लिखो। बहुत ज्यादा व्यथा व्यथा चिल्ला कर भाव मत खाओ।” मेरी पत्नीजी मेरी सबसे पहली पाठिका हैं और सबसे बड़ी आलोचक भी। :lol:
अगले दो तीन दिन प्रेमसागर जी को अमरकण्टक में गुजारने हैं। बहुत कुछ वहां उनको देखने को है। वहां उन्हें कांवर-जल भी उठाना है। उनकी कांवर पदयात्रा का यह महत्वपूर्ण पड़ाव है। मोटे तौर पर उन्होने 700 से अधिक किलोमीटर की पदयात्रा पूरी कर ली है।
उनके संकल्प की दृढ़ता की परीक्षा हो गयी है और वे अपना जीवट प्रमाणित करने में सफल रहे हैं। महादेव अवश्य प्रसन्न होंगे उनसे। पर महादेव की प्रसन्नता का उन्हें मेरा प्रमाणपत्र तो चाहिये नहीं। महादेव जी के साथ तो उनकी हॉटलाइन बन गयी है उनके इस जीवट भरी भक्ति से।
‘अभी तो जुनून की नाईं रोज मैं उनपर ब्लॉग लिखने की कोशिश में लगा रहता हूं; पर वह जल्दी ही होगा जब प्रेमसागर पांड़े से ईर्ष्या होने लगे! :lol:

हर हर महादेव!

















६०९ किमी की यात्रा कर लेना बिना देवों की सहायता के संभव नहीं हैं। यज्ञ में भाग देवों का भी लगता है, उस दृष्टि से आपको भी वह प्राप्त हो रहा है। न शारीरिक प्रत्यक्ष से, मानसिक अनुमान से या व्यक्त शब्द से।
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मैं भी सोचता हूं कि पुण्य में पांच सात पर्सेन्ट मुझे भी लह रहा होगा. 😊
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सर, ऐसा लगता है कि प्रेमसागर जी ने ट्विटर खाता भी खोल लिया है।
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महादेव उन्हें चित्र लेना, प्रेषित करना, फेसबुक देखना सिखा दिए हैं. ट्विटर भी कौन कठिन है जग में शिव भक्त के लिए! 😁
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