अमरकण्टक – दाढ़ी बनवाई, अगले चरण की तैयारी

24 सितम्बर 21, सायंकाल:

प्रेमसागर कांवर यात्रा करने वाले, पदयात्रायें करने वाले, संकल्प करने और जुनून की तरह उसका निर्वहन करने वाले तथाकथित ‘दकियनूसी’ हिंदुत्व के प्रतीक हैं। पर वे प्रयोगधर्मी भी हैं। परिवर्तन को स्वीकारने वाले – भले ही उछल कर नहीं, सोच समझ कर कुछ झिझकते हुये ही सही; लेकिन हैं।

आज कुछ खास नहीं हुआ अमरकण्टक में। बारिश होती गयी। कहीं निकलना नहीं हुआ। शाम को प्रेमसागर ने अपनी दाढ़ी बनवाई। जब मैंने फोन किया तो वे सैलून से निकल कर रेस्ट हाउस आ रहे थे।

द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत के पहले वे दाढ़ी बनवा रहे हैं। अगले दो ज्योतिर्लिंग को अर्घ चढ़ाने तक दाढ़ी बढ़ेगी। शायद यह परम्परा हो कि कांवर उठाने के बाद कांवरिया शेव इत्यादि न करता हो। कांवरिया क्या क्या करता है और क्या उसके लिये वर्जित है, यह मैंने पूछा नहीं। आगे यह पता करूंगा।

प्रेमसागर, दूसरी फेज की यात्रा के लिये दाढ़ी बनवा लिये हैं।

रात में दो चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट आ रहे हैं। रेस्ट हाउस के केयर टेकर साहब बहुत व्यस्त हैं। साहब लोग यहीं रहेंगे या होटल में जायेंगे, यह स्पष्ट नहीं है। प्रेम सागर जी को लगता है कि उनकी उन लोगों – जोशी जी और मिश्रा जी – से मुलाकात होगी। संगम-वाराणसी से अमरकण्टक की पदयात्रा ने प्रेम सागर जी को वैशिष्ठ्य तो दे ही दिया है।

प्रेम सागर के कांवर-मित्र लोग बलिया से ट्रेन पर चढ़े या नहीं, वह उन्हें स्पष्ट नहीं है। उनका फोन नहीं लगा। वे लोग अगर आते हैं तो वहां से ट्रेन से जबलपुर आयेंगे और जबलपुर से अमरकण्टक सड़क मार्ग से। “उन्होने ही कहा था कि वे अमरकण्टक से उज्जैन चलेंगे। अगर आते हैं तो भी ठीक और नहीं आते तो भी। परसों मुझे नर्मदा उद्गम स्थल से दो लोटा जल ले कर निकलना है। चाहे उनके साथ या चाहे अकेले।” – प्रेम सागर अपने कार्यक्रम के बारे में स्पष्ट हैं।

(अमरकण्टक के चित्रों का कोलाज। सौजन्य शैलेश पण्डित।)

आज तो उनके पास शेयर करने के लिये कोई चित्र नहीं हैं, पर कल सवेरे छ बजे निकलेंगे कपिल धारा, दूध धारा आदि स्थान देखने के लिये। कल इग्यारह बजे तक आसपास के अनेक दर्शनीय स्थलों का भ्रमण और चित्र आदि लेना वे कर चुके होंगे।… जब प्रेम सागर यह मुझे बताते हैं तो एक बात स्पष्ट होती है – वे ब्लॉग और सोशल मीडिया पर सम्प्रेषण को महत्वपूर्ण मानने लगे हैं, उत्तरोत्तर। मेरी पत्नी जी का कहना है कि बहुत बदलाव आया है प्रेम सागर के देखने, नोट करने और चित्र खींचने-बताने में। और शायद यह वे खुद भी अनुभव करते हैं।

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची

आज मैंने उन्हे कहा कि ह्वात्सएप्प चित्रों की गुणवत्ता अच्छी नहीं रखता प्रेषण करने में। उसके बजाय वे टेलीग्राम अकाउण्ट बनायें और उसपर चित्र भेजें। पांच मिनट भी नहीं लगे जब उन्होने टेलीग्राम डाउनलोड कर उससे चित्र भेजे। उनकी पिक्सल टेलीग्राम में दुगनी से ज्यादा है, बावजूद इसके कि ह्वाट्सएप्प में चित्रों की सबसे अच्छी क्वालिटी के लिये सेटिंग उन्होने कर ली थी, मेरे अनुरोध पर। मोबाइल पर इतना तकनीकी प्रयोगधर्मी हो जायेंगे, यह मैंने कल्पना नहीं की थी। … यही नहीं, घटनाओं, कथाओं की अपनी एक अहमियत होती है इसको वे जान गये हैं। प्रेमसागर कांवर यात्रा करने वाले, पदयात्रायें करने वाले, संकल्प करने और जुनून की तरह उसका निर्वहन करने वाले तथाकथित ‘दकियनूसी’ हिंदुत्व के प्रतीक हैं। पर वे प्रयोगधर्मी भी हैं। परिवर्तन को स्वीकारने वाले – भले ही उछल कर नहीं, सोच समझ कर कुछ झिझकते हुये ही सही; लेकिन हैं।

महादेव की भी अगर कल्पना की जाये तो वे भी इसी प्रकार अपवर्ड-मोबाइल, हाईटेक ग्राह्यता वाले रस्टिक-रुरो-अर्बेन देव होंगे। बहुत कुछ वैसे कि महानगर की गिटपिट हिंगलिश बोलने वाला युवा भी उनको अपने सा मानने लगे। धर्म की तन्यता, उसकी अडाप्टेबिलिटी कल्पनातीत है। तुम उसकी सोचो और उसको अनुभव करने का प्रयास करो, जीडी।

25 सितम्बर 21 सवेरे:

सवेरे छ बजे मैंने प्रेमसागर जी से बात की। वे आसपास के स्थान देखने निकलने जा रहे थे। साथ चलने के लिये रेस्ट हाउस के केयर टेकर वर्मा जी की प्रतीक्षा कर रहे थे। कांवर मित्रों से उनकी बात नहीं हो सकी थी। फोन ही नहीं लगा। यह सम्भव है कि वे ट्रेन यात्रा में हों। बहरहाल वे आ रहे हैं या नहीं, दिन में पता चलेगा। प्रेमसागर से ज्यादा मुझे उनकी जरूरत है। एक की बजाय तीन लोग यात्रा विवरण और अच्छा दे सकेंगे, ऐसा मेरा सोचना है। उससे ब्लॉग कण्टेंट समृद्ध ही होगा।

वन विभाग के बड़े साहब लोग रात नौ बजे तक आये। उनके लिये रुकने का स्थान होटल में है। शायद साथ में लोग ज्यादा हैं और रेस्ट हाउस की कैपेसिटी उतनी नहीं है।

आज शाम को प्रेम सागर की अमरकण्टक की घुमक्कड़ी के चित्र मिलेंगे और कल की योजनाओं का पता चलेगा। फिलहाल वे घूमने के लिये निकल लिये हैं और उनका फोन नेटवर्क कवरेज के बाहर है।


सवा इग्यारह बजे प्रेमसागर जी ने दूध धारा के कई अच्छे चित्र भेजे। उन्हें जोड़ रहा हूं नीचे कोलाज में –


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

12 thoughts on “अमरकण्टक – दाढ़ी बनवाई, अगले चरण की तैयारी

  1. महादेव के लिये क्या कठिन है, अपनी प्रकृति स्वयं को रंगना। हमें तो उनका फक्कड़ी स्वभाव भाता है, मन बहुधा वैसा ही तो हो जाता है। कृत्रिमता तो काटने को दौड़ती है।

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  2. आलोक जोशी @alokDILse जी ट्विटर पर
    याद रखियेगा पूरी यात्रा को इतने ब्लॉग में पढ़ना कुछ बड़ा हो जाएगा। इसकी समग्र जानकारी को एक किताब नुमा रचना में तैयार कर लेना चाहिए आपको..और उसे पब्लिश भी करवाया जा सकता है।

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  3. रमाकांत यादव जी की ट्विटर पर टिप्पणी –
    दाढ़ी नहीं बनवानी थी , महादेव हर रूप में हैं । चिर अचर और सर्वत्र हैं ।

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  4. शैलेंद्र झा जी की ट्विटर पर टिप्पणी –
    आगे सफर मे मधुमक्खियों से सावधान रहना होगा। इस जंगल मे मधुमक्खियों से अक्सर सामना हो जाता है।

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  5. धर्म क्या है, वो सम्प्रदायिक धर्मों का रीति रिवाज, परम्परा और कर्मकांड तो कतई भी नही है।

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    1. धर्म तो उस व्यक्ति, प्रकृति का वह तत्व है जिसके बिना वह वह नहींं रह जाता! ऐसा मेरा सोचना है।

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  6. माई की बगिया, कबीर चौरा, कलचुरी कालीन मंदिर समूह इत्यादि प्रमुख स्थान है। कल्याण आश्रम भी बहुत अच्छा है। कल्याणदास जी बहुत ही प्रसिद्ध साधु हुए हैं। वेगड़ जी की किताब में उनका वर्णन मिलेगा।
    प्रकृति के साथ क्षेत्रवार भोजन परम्परा पर भी ध्यान दिया जा सकता है सर।
    जैसे उप्र बिहार में प्रचलित लिट्टी चोखा, इधर आते आते गक्कड़ भर्ता बन जाता है। और राजस्थान तक पहुँचते पहुँचते दाल बाटी चूरमा।

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    1. मुझे नहीं मालुम कि ये सभी स्थान वे देखेंगे। पर जो भी देख रहे हैं, सुंदर है!
      कल्याण आश्रम देख आये हैं दो दिन पहले।

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    2. भोजन व्यंजन के प्रति प्रेमसागर को बहुत रुचि लेते नहीं पाया है मैंने। उस फील्ड में उदासीन टाइप हैं। सत्तू, चिवड़ा से काम चलाने वाले जीव हैं आपातकाल में। रसोई बनाने या गाकड़ लगाने का ‘झन्झट’ पालते नहीं लगते। 🙂
      वैसे उन्होंने बताया है कि बाटी और चोखा बनाना उन्हें अच्छे से आता है।

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    3. भोजन व्यंजन के प्रति प्रेमसागर को बहुत रुचि लेते नहीं पाया है मैंने। उस फील्ड में उदासीन टाइप हैं। सत्तू, चिवड़ा से काम चलाने वाले जीव हैं आपातकाल में। रसोई बनाने या गाकड़ लगाने का ‘झन्झट’ पालते नहीं लगते। 🙂
      वैसे उन्होंने बताया कि बाटी और चोखा बनाना उन्हें अच्छे से आता है।

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  7. दूधधारा, कपिलधारा की तरफ नेटवर्क नहीं आता है। और जैसे कि अभी बरसात हो रही हैं प्रकृति अपने पूरे सौंदर्य को लेकर उनसे मिलेगी। तो अच्छा ही है कि इस मिलन में फोन खलल न पैदा करें😁

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