अमरकण्टक से अकेले ही चले कांवर लेकर प्रेमसागर

लोग बद्री-केदार-गया की यात्रा पर निकलते हैं तो पचीस पचास लोग गाजे-बाजे, ढोल-ताशा के साथ उनका जयकारा लगाते विदा करते हैं। एक जुलूस सा निकलता है जो उनके साथ एक दो कोस तक जाता है। उन्हें माला-फूल पहनाया जाता है। बूढ़े असीसते हैं और छोटे पैर छूते हैं। … पर यहां प्रेमसागर निकले हैं इतनी बड़ी द्वादश ज्योतिर्लिंग की पैदल यात्रा पर निपट अकेले!

25 सितम्बर सायंकाल:

आज शाम अपनी नई बनी कांवर का चित्र दिया प्रेमसागर ने। एक मेज पर रखी गयी है। कंधे पर रखने का भाग कुछ ऊंचा है। किनारे कुछ छील कर बने हैं और कोने नुकीले हैं। उनपर सामान – कमण्डल या अन्य वस्तु – फिसल कर नीचे न गिरे, उसके लिये नुकीले कोने पर खांचा बना है। कांवर धनुष की तरह लगता है जिसमें डोरी न बंधी हो।

नई बनी कांवर का चित्र दिया प्रेमसागर ने। एक मेज पर रखी गयी है।

कांवर की पवित्रता का एक अनुशासन मानता है कांवरिया। उस अनुशासन के कुछ नियम मुझे प्रेमसागर जी ने बताये –

  • कांवर ले कर चलने वाला शुचिता का पूरा ध्यान रखता है। कांवर अगर कांधे से उतारी जाती है तो उसे जमीन पर नहीं, किसी ऊंचे स्थान पर आदर से रखा जाता है। किसी जंगले पर या किसी पेड़ के तने पर। कभी पैर की ओर नहीं रखी जाती कांवर।
  • कांवर की आरती और भोग सुबह शाम की जानी अनिवार्य है।
  • कांवरिया लघुशंका के बाद भी स्नान करता है। दीर्घ शंका के बाद तो यह आवश्यक होता ही है।
  • कांवरिया किसी भी प्रकार का कोई नशा नहीं करता। खैनी, तम्बाकू, गुटका का प्रयोग नहीं करता।
  • कभी कांवर धारण कर कांवरिया थूकता नहीं। इसलिये ऐसी कोई चीज नहीं खाता जिससे लार बहुत बने और थूकना आवश्यक हो जाये।
  • कांवरिया भोजन में दिन में अन्न ग्रहण नहीं करता।
  • कांवरिया उसना चावल, बैगन और मसुर की दाल का सेवन नहीं करता।

नंगे पैर पदयात्रा अपने आप में दुरुह और कष्टसाध्य है; ऊपर से उक्त अनुशासन! यह तपस्या वास्तव में कमजोर मनुष्य के लिये नहीं।

प्रेम सागर जी ने बताया कि उनके दो मित्र जो अमरकण्टक से ॐकारेश्वर तक पदयात्रा करने के लिये आने की कहे थे, आये नहीं। पर उनके न आने का कोई मलाल प्रेमसागर को नहीं है। वैसे भी वे अकेले पदयात्रा के हिमायती हैं जिसमें व्यक्ति आत्मनिष्ठा से चलता है और आपसी बतकही से परनिंदा, ईर्ष्या, क्रोध, तुलना और अहंकार आदि आने की सम्भावनायें कम रहती हैं। वे कल या परसों सवेरे नर्मदा उद्गम या उसके आसपास से दो ताम्बे या पीतल के लोटों में जल ले कर रवाना होंगे। दो विकल्प हैं। पहला करीब पचपन किलोमीटर की यात्रा कर पड़ाव करने का है और दूसरा पचीस किलोमीटर चल कर पड़ाव का है। पहले दिन वे पचीस वाले विकल्प को सही मान रहे हैं। शायद रास्ता भी कठिन है।

आज दिन भर वे आसपास के अनेक स्थानों की यात्रा-भ्रमण किये। उनके साथ वर्माजी – जो रेस्ट हाउस का प्रबंधन संभालते हैं, भी थे। उन्होने वर्मा जी का चित्र भी मुझे भेजा है।

वन विभाग के विश्रामगृह के प्रबंधक रमानिवास वर्मा जी।

वर्मा जी ने लगभग अपनी पूरी नौकरी अमरकण्टक में की है। उनसे अमरकण्टक की विस्तृत जानकारी मिलने की सम्भावना बनती है। अमरकण्टक विंध्य, सतपुड़ा की संधि पर मैकल पर्वत स्थित अत्यंत रमणीय और पवित्र स्थल है। यहां दो दर्जन से ज्यादा धर्म और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल हैं। नर्मदा, सोन, भद्र, गायत्री, सावित्री, जोहिला आदि कई नदियों और अनेक जलप्रपातों का मनोरम स्थल है यह क्षेत्र। अनेक पुरतन और नवीन ऋषि और संत यहां रहे और साधना किये हैं। मार्कण्डेय, कपिल से ले कर कबीर तक यहां अपना योगतत्व जागृत करने को रहे हैं। अनेक प्राचीन मंदिर हैं यहां जिनका स्थापत्य के कोण से भी बहुत महत्व है। बहुत कुछ जानने को है अमरकण्टक में। वर्मा जी से इन सब के बारे में और भी जानकारी प्राप्त करने के आधार पर अमरकण्टक और नर्मदा-सोन उद्गम के बारे में लिखना बेहतर होगा।

अमरकण्टक का एक प्राकृतिक दृश्य

प्रेम सागर जी ने अपने आज के भ्रमण के अनेक चित्र भेजे हैं जो लगभग सभी उत्कृष्ट हैं। प्रेम सागर जी का मोबाइल कैमरा बेहतर है, उनकी चित्र लेने की तकनीक बेहतर हो गयी है और अमरकण्टक अच्छे चित्रों का अवसर प्रदान करता है – ये तीनो बातें हैं। उन चित्रों और वर्मा जी से बातचीत कर अमरकण्टक के बारे में मैं अलग से इस कांवर प्रकरण की एक पोस्ट लिखने की सोचता हूं।

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर और रमानिवास वर्मा जी।
26 सितम्बर 21:

प्रेमसागर आज अमरकण्टक से निकले नहीं। बताते हैं वर्मा जी ने रोक लिया। दोनो के बीच कितनी गहरी मित्रता हो गयी है, मैं कह नहीं सकता। शायद उस मित्रता का प्रभाव है या अमरकण्टक की रमणीयता का कि दो दिन तो बारिश के कारण और दो दिन आसपास घूमने के लिये प्रेमसागर वहां रुके रहे। आज वे सोन भद्र (उनके अनुसार सोन और भद्र दो धारायें हैं अमरकण्टक से निकली जो मिल कर सोनभद्र बन जाती हैं।) उद्गम स्थल देखने गये थे। वहां भी कई तपोवन हैं। कई रमणीय और शांत स्थल। उनके अनेक चित्र तो प्रेमसागर जी ने भेज दिये पर उनकी जुगलबंदी भाषा में करने के लिये मेरे पास अनुभव और जानकारी दोनो का अभाव है। डिजिटल ट्रेवलॉग की अपनी सीमायें हैं। मैं वे चित्र यहां लगा सकता हूं पर उस प्रकार के चित्र तो गूगल मैप्स पर देखे जा सकते हैं।

मैं कल प्रेमसागर जी के अमरकण्टक से कांवर यात्रा की शुरुआत की प्रतीक्षा कर रहा हूं। प्रेम जी के यहां के चित्रों पर एक पोस्ट को अभी मुल्तवी करता हूं। और जानकारी और बेहतर आत्मविश्वास होने पर एक पोस्ट अमरकण्टक पर कुछ दिनों बाद लिखूंगा।

मैंने प्रवीण दुबे जी से बात की। उनका भी कहना है कि वर्मा जी जो वहां तीन दशकों से हैं और अत्यंत सज्जन और सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं; सबकी मदद करते हैं। वे अमरकण्टक के विषय में सब प्रकार की जानकारी देने के लिये सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। प्रवीण जी से वर्मा जी का फोन नम्बर ले कर परिचयात्मक बातचीत मैंने की। उनका नाम रमानिवास वर्मा है। रमानिवास जी ने बताया कि प्रेम सागर जी ने नर्मदा का जल लेने के लिये आज लोटे ले लिये हैं। कांवर तो उन्होने उनकी बनवा ही दी है। अब कल प्रेमसागर के प्रस्थान की तैयारी है।

प्रेम सागर जी के साथ कल कांवरयात्रा पर डिजिटली निकलूंगा पर अलग से रमानिवास वर्मा जी से मुलाकात करने अमरकण्टक लौटूंगा!

अमरकण्टक के वृक्ष। चित्र प्रेमसागर जी ने भेजा।


27 सितम्बर, सवेरे:

सवेरे सवा आठ बजे प्रेमसागर का फोन आया। बोले कि माता का मण्डप देखना था, वह नहीं हो सका। रास्ता अवरुद्ध हो गया है। पर जल उन्होने उठा लिया है आगे की कांवर यात्रा के लिये।

जल उठाने का एक एक्साइटमेण्ट उनकी आवाज में था। जल उठाना प्रतीक है संकल्प का, आगे की अनुशासित एकल पदयात्रा के उत्साह का और ईश्वर में अगाध श्रद्धा का। वे कांवर लिये रेस्ट हाउस लौट कर अपना पिट्ठू और झोला उठायेंगे और यात्रा पर रवाना हो जायेंगें।

लोग बद्री-केदार-गया की यात्रा पर निकलते हैं तो पचीस पचास लोग गाजे-बाजे, ढोल-ताशा के साथ उनका जयकारा लगाते विदा करते हैं। एक जुलूस सा निकलता है जो उनके साथ एक दो कोस तक जाता है। उन्हें माला-फूल पहनाया जाता है। बूढ़े असीसते हैं और छोटे पैर छूते हैं। … पर यहां प्रेमसागर निकले हैं इतनी बड़ी द्वादश ज्योतिर्लिंग की पैदल यात्रा पर निपट अकेले!

जल प्रेमसागर ने उठा लिया है आगे की कांवर यात्रा के लिये।
रेस्ट हाउस छोड़ते समय कांवर उठाये प्रेमसागर और बांयी ओर रेंजर मिथुन सिसोदिया जी

नर्मदा की यात्रा भी अकेले प्रारम्भ होती है अमरकण्टक से और वहीं से अकेले यात्रा पर निकल लिये हैं प्रेमसागर भी! यहां से ॐकारेश्वर तक यद्यपि वे नर्मदा के तीरे तीरे नहीं चलेंगे, पर रहेंगे नर्मदा माई के आसपास ही। यहां से वे जबलपुर होते आगे बढ़ेंगे।

उनके जल उठाने और कांवर धारण करने से मेरा मन जयघोष करने का हो रहा है, उनसे 6-7सौ किलोमीटर दूर रहते हुये भी!

नर्मदे हर! हर हर महादेव! जय हो!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “अमरकण्टक से अकेले ही चले कांवर लेकर प्रेमसागर

  1. नर्मदे हर नर्मदा मैया की कृपा से यात्रा सफल हो

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  2. हर हर महादेव।
    आप की दोनों यात्रा सफल हो, भोलेनाथ से यही प्रार्थना करते हैं।

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    1. सरल आदमी और दृढ़ संकल्पी। संयोग से ही मुझे दिख गए और संग पक्का बन गया…

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