पुराने सभी नाऊओं से अलग, आज गांव में शिवाला के पास एक हाई-टेक नाऊ की दुकान देखी। उसकी दुकान के बाहर एक 200 वाट का सोलर पैनल पड़ा था। सड़क किनारे यूं ही रखा हुआ।
नाऊ की सबसे पहली स्मृति मुझे अपने गांव सुकुलपुर के मथुरा की है। उसका गोल चश्मा धूल और खरोंच से धुंधला होता था। एक लम्बे चमड़े के पट्टे पर वह अपना उस्तरा ‘टेवता’ था बारम्बार। बूढ़ा था पर घर की जजमानी उसी के पास थी। जब आता था तो हम बच्चे छिपने की कोशिश करते थे। कोई मथुरा के पास नहीं जाना चाहता था। पर सब घेर घार कर लाइन हाजिर किये जाते थे। सब की चाह नये फैशन के हिसाब से बंगला कट बाल बनवाने की होती थी। पर यह बोलते ही पीछे खड़े बड़े बुजुर्ग की डांट पड़ती थी और मथुरा जैसा चाहता था वैसा बना देता था; हम सब को बारी बारी एक ईंट पर बिठाकर। … सो शुरुआत मेरी मथुरा के ईंटालियल सैलून से हुई थी! 😆
नाऊ मेरे लिये एक महत्वपूर्ण पात्र है। कई ब्लॉग पोस्टें नाऊ लोगों पर हैं। सुंदर नाऊ, जो विक्रमपुर गांव में हमारे ऑफीशियल नाऊ हैं, पर तो अनेक बार लिखा है।

पुराने सभी नाऊओं से अलग, आज गांव में शिवाला के पास एक हाई-टेक नाऊ की दुकान देखी। उसकी दुकान के बाहर एक 200 वाट का सोलर पैनल पड़ा था। सड़क किनारे यूं ही रखा हुआ। उससे तार उसकी दुकान में जाता था। दुकान में मुझे कोई नहीं दिखा; पर हाईवे पर आता एक नौजवान दिखा। बोला – का चाहे दद्दा?

दुकान उसी की थी। पास आ कर उसने अपना नाम बताया – प्रमोद। उसी नाम से दुकान भी है। प्रमोद ने सोलर पैनल के प्रयोग का विवरण दिया। पैनल से तार उसकी दुकान में रखे एक ट्रांजिस्टर की शेप के एक डी.सी. चार्जर-कम-बैटरी सेट में जाते थे। उस डिब्बे से डी.सी. आउटपुट से एक टेबल पंखा, बिजली और मोबाइल चार्जिंग का प्वाइण्ट मिला था। डीसी पंखा अच्छी हवा दे रहा था। प्रमोद ने बताया कि पांच सौ का आया है। प्लास्टिक बॉडी का देसी पंखा था, पर काम अच्छा कर रहा था।

डी.सी. चार्जर-कम-बैटरी सेट के बारे में प्रमोद ने बताया कि वह पूरा चार्ज होने पर करीब डेढ़ घण्टा बिजली सप्लाई कर सकता है।
मुझे भी आगे निकलने की जल्दी थी और प्रमोद को भी निपटान के लिये पास की झाड़ियों की ओर जाने की जल्दी थी। उसने मेरे सामने अपना सोलर पैनल दुकान में रखा और शटर गिराया। हाथ में एक पानी की प्लास्टिक की बोतल थाम वह एक ओर निकल लिया और मैं साइकिल सवार हो कर अपने घर की ओर।

रास्ते में मैं सोच रहा था कि अगर ‘डी.सी. चार्जर-कम-बैटरी सेट’ थोड़ी बड़ी केपेसिटी का हो और चार पांच घण्टा आउटपुट दे सके तो गांव में घरों-झोपड़ियों में बिजली की बजाय यह सिस्टम लगाया जा सकता है। शाम के समय खाना बनाने खाने तक यह काम कर सकता है। अगर पंखा और किफायत से इस्तेमाल हो तो शायद एल.ई.डी. लाइट और मोबाइल-स्मार्टफोन चार्जिंग रात भर की जा सकती है! कोई कम्पनी शायद यह सिस्टम बेच भी रही हो।
मेरी गणना से 200VA का पैनल इतनी ऊर्जा दे सकता है कि एक पंखा, लाइट और मोबाइल चार्जिंग 12 घण्टे तक हो सके। उतनी ही जरूरत गांव के एक कमरे की मड़ई नुमा घर की होगी। बस उसके लिये पर्याप्त कैपेसिटी का सस्ता डी.सी. चार्जर-कम-बैटरी सेट चाहिये।
प्रमोद को निपटान के लिये जाने की जल्दी थी, वर्ना मैं उससे पूरे सिस्टम की कीमत अदि के बारे में बात करता। वैसे उसकी दुकान मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं है। फिर कभी पता करूंगा।
प्रमोद नयी तकनीक के वाहक है, समय के अनुसार बदलने की क्षमता रखते हैं। सफल रहेंगे। हमारे प्रारम्भिक नाई तनिक टेढ़े टाइप के थे, बच्चों के सर टेढ़ा रखने में आनन्द उठाते थे। उस समय बड़ा कष्ट लगता था।
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हाहाहा. मेरा spondylitis शायद बचपन के नाई की देन हो. 😁
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