अ-निमंत्रित

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Gadauli Dham गड़ौली धाम

मुझे नहीं लगता कि उसे निमंत्रित किया गया होगा। पर उस जैसे को किसी निमंत्रण की दरकार नहीं होती। वह उस वर्ग का हिस्सा है जो प्रजा की श्रेणी में आता है। किसी भी अवसर पर देश के इस हिस्से में मैंने भीड़ जुटते देखा है। रेल के महाप्रबंधक या मण्डल प्रबंधक के निरीक्षण में किसी स्टेशन पर, किसी रेल फाटक पर मैंने गांवदेहात की बड़ी भीड़ जुटते पूर्वांचल और बिहार में ही देखा। और अब जहां रहता हूं, वह तो देश का वही हिस्सा है।

मुझे नहीं लगता कि उसे निमंत्रित किया गया होगा। पर उस जैसे को किसी निमंत्रण की दरकार नहीं होती।

कोई भी अवसर हो – कोई शादी, तेरही, भण्डारा – मैं दो तरह के लोगों को टार्गेट करता हूं। एक वे जो लकदक कपड़ों में, तामझाम के साथ होते हैं और दूसरे जो किनारे पर बैठे ताकते हैं और मौका लगने पर जो मिल जाये, उसको पाने की आशा में रहते हैं। वे हैव-नॉट्स हैं और वे बहुत हैं।

और दूसरे जो किनारे पर बैठे ताकते हैं और मौका लगने पर जो मिल जाये, उसको पाने की आशा में रहते हैं। वे हैव-नॉट्स हैं और वे बहुत हैं।

मैं उससे पूछता हूं। केवटाबीर के मल्लाहने (केवटाबीर गांव की मल्लाहों की बस्ती) का है। अपनी पत्नी के साथ आया है। “हमरे बूढ़ा के पिन्सिन नाहीं मिलत। उही बदे आइ हई। सरकार उहै करवाई देइं। (मेरी पत्नी को वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिलती। सरकार वही दिलवा दें।)” और फिर मेरे पूछने पर मुझे ही ‘सरकार’ समझने लगता है। मुझे ही अपनी सारी समस्या बताने लगता है। लड़के हैं पर वे अपना गुजारा मुश्किल से करते हैं। सब अलग अलग हो गये हैं। वह और उसकी बूढ़ा एक झोंपड़ी में हैं। जैसे तैसे अपना काम चलाता है वह। पेंशन मिल जाती तो सहारा हो जाता। मुझे नहीं मालुम की पति पत्नी दोनो को वृद्धावस्था पेंशन देने का प्रावधान है या नहीं। पर यह काम तो ग्रामप्रधान या उसका सचिव कर सकता है। मिलती हो तो दिला सकता है और प्रावधान न हो तो बता सकता है। केवटाबीर से यहां उसके लिये आने की क्या जरूरत? पर पंचायती राज एक अक्षम व्यवस्था है। वैसे पूर्वांचल की नौकरशाही और नेतागीरी कमोबेश निकम्मी ही है।

संक्रांति पर समारोह में गुड़ का लड्डू रखा गया है ट्रे में। निमंत्रित लोग खा रहे हैं। एक सहृदय वालेण्टियर उसे भी एक लड्डू दे देता है। एक हाथ में लड्डू ले कर वह तुरंत दूसरा आगे करता है – “एक ठे अऊर दई द। हमार बूढा बा संघे (एक और देदो, मेरी पत्नी भी साथ में है)।”

एक सहृदय वालेण्टियर उसे भी एक लड्डू दे देता है। एक हाथ में लड्डू ले कर वह तुरंत दूसरा आगे करता है – “एक ठे अऊर दई द। हमार बूढा बा संघे।

मैं समझ जाता हूं। पेंशन एक मुद्दा है। वह तो शायद उसे भी मालुम होगा कि यहां पेंशन का मामला तय होने का कोई दफ्तर नहीं है। वह और उसकी बूढ़ा यह सुन कर आये हैं कि यहां शायद खाने को कुछ मिल जायेगा। नाश्ता, भोजन – कुछ भी। भोज-भण्डारों में आती अनिमंत्रित भीड़ उस जैसों की है।

सुनील ओझा जी उस रोज अपनी उस योजना की बात कर रहे थे जिसमें आसपास के गांवों के वृद्ध, अपंग और बेहसारा लोगों को नियमित भोजन देने की बात थी। केवटाबीर के मल्लाहने के इस वृद्ध दम्पति को देख कर मुझे उस उपक्रम की उपयोगिता समझ आती है। पता नहीं वह कब शुरू होने जा रहा है। अगर वह विधिवत हो और उसके प्रबंधन में स्थानीय लोग चण्टई न दिखायें तो इस दम्पति जैसे कई लोग आसरा पा सकते हैं। गांवदेहात में भी परिवार (अपेक्षा से कहीं ज्यादा) तेजी से टूटे हैं और बूढ़ों की हालत दयनीय होती जा रही है।

मैं फिर उस वृद्ध से बात करने लगता हूं। बार बार अपने होठों को वह जीभ से गीला करता है – शायद अहसास है कि होठ गीला होने पर ही उसकी बात स्पष्ट निकलेगी।

मैं फिर उस वृद्ध से बात करने लगता हूं। लगभग मोनोलॉग में वह बोलने लगता है। बार बार अपने होठों को वह जीभ से गीला करता है – शायद अहसास है कि होठ गीला होने पर ही उसकी बात स्पष्ट निकलेगी। मेरे कहे को वह अनसुना करता है। कान से ऊंचा सुनता है। कोरोना काल में मैं उसके बहुत पास जा कर बोलना नहीं चाहता। बोलता है कि चुनाव में मोदी जीतेंगे। उनके यहां का विधायक, अगर फिर टिकट पाया तो नहीं जीतेगा। “कौनो बिंद खड़ा होये त जीति जाये। (कोई बिंद – केवट – खड़ा करेंगे तो जीत जायेगा।)” बूढ़ा है वह; पर राजनीति और जातिगत समीकरण को अपने हिसाब से समझता है।… गांवदेहात का सामान्य वृद्ध आदमी उसके जैसा ही है।

वह और उसकी बूढ़ा।

मैं वहां से चलने लगता हूं; पर यह जरूर मन में होता है कि इस बूढ़े दम्पति को वहां भोजन जरूर मिल जाये। दो कोस चल कर वे उसी के लिये तो आये हैं।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

7 thoughts on “अ-निमंत्रित

  1. वृद्धा पेंशन और विकलांग पेंशन में अभी हाल में योगी सरकार ने बढ़ोत्तरी की है । मुझे बताते हुए खुशी हो रही है की पिछले एक से डेढ़ साल में मैंने कई ऐसे बेसहारा वृद्धों और विकलांग लोगों का पेंशन के लिए स्वयं आवेदन कराया है और अंतिम रूप से लोगों की पेंशन भी आ रही है ,पेंशन के लिए आवेदन करने के बाद तक लगभग 4 महीने उसके पीछे लगा रहना होता है ,क्योंकि सरकारी कार्यालय में बैठे बाबू लोग बिना मुद्रा के फाइल ही आगे नही बढ़ाते ब्लॉक से लेकर तहसील फिर तहसील से जनपद और अंतिम रूप से लखनऊ तक कई चरण होते है। मैं उसका ऑनलाइन ही जनसुनवाई शिकायत पोर्टल पर शिकायत करके आवेदन को आगे बढ़वा लेता हूं ।मैं आपसे आग्रह करना चाहूंगा यदि उस वृद्ध व्यक्ति की वृद्धा पेंशन की जरूरी डॉक्यूमेंट मिल जाए तो मैं उसका आवेदन करने के लिए तैयार हूं ।

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    1. सहायता के लिए आगे आने के लिए धन्यवाद आशीष जी.
      एक सज्जन टिप्पणी करते हैं कि पति और पत्नी दोनों को वृद्धावस्था पेंशन का प्रावधान नहीं है. अगर वैसा है तो मेहनत का लाभ नहीं होगा. अगर वैसा नहीं है तब मैं उस व्यक्ति को संपर्क करने का यत्न करूँ.

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      1. अभी ऐसा नियम है की पति और पत्नी में से किसी एक को ही पेंशन मिलता है , दोनों में से किसी एक का भी ना बना हो तो बनवाने का प्रयास कर सकते है ।

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  2. बदनाम शायर, ट्विटर पर –
    बहुत द्रवित करने वाला पोस्ट लिखा आपने इस बार …. हमारे समय के “सोशल अज्ञेय” हैं आप …. गांवदेहात में भी परिवार (अपेक्षा से कहीं ज्यादा) तेजी से टूटे हैं और बूढ़ों की हालत दयनीय होती जा रही है – बारम्बार पढ़ा इस पंक्ति को।

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  3. बदनाम शायर, ट्विटर पर –
    पति-पत्नी के जीवित होने पर एक को ही पेंशन योजना का लाभ मिलता है। … प्रदेश सरकार वृद्धावस्था पेंशन योजना के अंतर्गत बुर्जुगों को प्रतिमाह 800 से 500 रुपये प्रतिमाह पेंशन देती है। इसमें 60 से 79 आयु वर्ग के बुजुर्गों को 800 रुपये और 80 साल से ऊपर को 500 रुपये प्रतिमाह पेंशन है।
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