मंहगू को मैं ग्वाला समझता था, पर आज बातचीत की तो पता चला वह मिल्क कलेक्टर है।
अधिकांश मिल्क कलेक्टर मोटरसाइकिल पर चलते हैं। दोनो ओर चार पांच बाल्टा लटकाये। गांवदेहात में हर घर पर रुकते हुये दूध इकठ्ठा करते हैं। कुछ लोग उनसे दूध खरीदते भी हैं। वे दूध के मोबाइल एक्स्चेंज जैसे होते हैं। इस दूध खरीद-बेच के बाद बचा दूध वे कस्बे के बाजार या बनारस जा कर बेचते हैं। आसपास के गांवों में मैं सवेरे साइकिल सैर के दौरान एक दर्जन के लगभग दूध संग्राहकों को देखता हूं।
पर मंहगू दूसरी तरह का व्यक्ति निकला। जाति से यादव है। सो गाय-भैंस पालना उसका जातिगत पेशा है। यह सम्भव है कि उसके पास कुछ पशु हों। पर मुख्यत: वह अपने सामने लोगों के यहां दूध दुहाता है और ले कर निकलता है बेचने के लिये। साइकिल पर चलता है वह। बहुत ज्यादा दूध नहीं होता उसके पास। दस बीस किलो से ज्यादा नहीं होता होगा। उतना ही खरीदता बेचता है।
वह मुझे साइकिल सैर के दौरान अक्सर मिलता है। एक दिन उसने मुझे रोक कर कहा – आप डेयरी से पाउच वाला दूध लेते हैं। उसी भाव से मैं भी ताजा दूध दे सकता हूं। मेरा दूध उससे बेहतर ही होगा। आपको घर पर ही दिया करूंगा। मेरे दूध की क्वालिटी से आपको शिकायत नहीं होगी।

हम लोगों के मन में एक धारणा है – अहीर के जींस में होता है कि वह दूध में पानी जरूर मिलायेगा। यह धारणा व्यापक है। बहुत कुछ वैसी ही धारणा है कि कोई भी दर्जी हो, वह कुछ न कुछ कपड़ा सिलने के बाद बचा ही लेता है। देशज सोच अविश्वास और विश्वास के बीच दोलन करती रहती है। मैं और मेरी पत्नीजी भी इन्ही सोचों के बीच फ्लिप-फ्लॉप करते रहे हैं अपनी जिंदगी भर। मैं स्वयम इन दो छोरों में – छियासठ साल की उम्र होने पर भी – कि गरीब सहानुभूति का पात्र है और गरीब मौका पाते ही आपकी दयालुता एक्स्प्लॉइट करने लगता है, वह आप पर जोंक की तरह चिपक जाता है; झूलता रहता हूं। दक्षिणपंथ और वामपंथ के बीच तय नहीं कर पाया हूं कि मेरी आस्था कहां है!
मंहगू के प्रस्ताव पर अपने इस वैचारिक दोलन के कारण मैं तय नहीं कर सका था। आज सवेरे अपना गेट खोलने गया तो मंहगू जाता दिखा। उसने नमस्ते की और अपना प्रस्ताव फिर दोहराया। वह मुझे गाय का दूध चालीस रुपये और भैंस का पचास रुपये किलो देगा। उसने जोड़ा – “और आपको पूरी गारण्टी है कि दूध में मिलावट नहीं होगी।”
विश्वास-अविश्वास के बीच दोलन में आज मेरा दोलक गांव की अर्थव्यवस्था पुख्ता करने, गरीब के प्रति सहानुभूति रखने और शहरी की बजाय गांव की ओर झुका हुआ था। मैंने मंहगू के प्रस्ताव पर सार्थक दृष्टिकोण अपनाते हुये ट्रायल के रूप में एक लीटर दूध लिया। कल ट्रायल के रूप में एक लीटर भैंस का दूध ले कर तय किया जायेगा कि अ) मंहगू से दूध लिया जाये या आनंदा डेयरी से और ब) भैंस का दूध लिया जाये या गाय का।
गाय के दूध की गुणवत्ता का कोई लाभ नजर नहीं आता। कोई दूधवाला इसकी गारण्टी नहीं देता कि गाय देसी है। मंहगू कहता है – “देसी गाय अब है कहां?” अब तो सब मिली जुली हैं। सब वर्णसंकर हैं। भैंसे शायद देसी हों। और उनका दूध ए-2 वाला हो। … पर दूध शास्त्र में मेरी कोई पीएचडी नहीं है। मेरा ज्ञान उस बारे में जूनियर हाई स्कूल स्तर का ही है। पर आज मन दूध शास्त्र से प्रेरित नहीं, गांवदेहात के प्रति संवेदना, सहानुभूति और श्रम/विपन्नता के प्रति उदात्तता से प्रेरित है। सर्दी के मौसम में सवेरे सात बजे मंहगू अपनी उम्र के बावजूद साइकिल से दूध ले कर निकला है और पांच दस किलोमीटर चल कर अपना उद्यम करेगा। उसके प्रति मन द्रवित है।

वैसे, मंहगू विपन्न नहीं लगता। वह एक पूरी बांह का स्वेटर पहने है। नीचे लुंगी के नीचे लोअर भी है। गर्म। उसका शॉल भी ऊनी है। सिर पर साफा बांधे है गमछे से। सर्दी से बचाव का उपयुक्त इंतजाम कर रखा है उसने। साइकिल जरूर उसकी पुरानी और खड़खड़िया है; पर उससे भी बेकार साइकिल चलाते गांव वालों को बहुत देखता हूं मैं। भंगार जैसी साइकिलें अभी भी चलती हैं।
दूध नपवाने के पहले मैं उससे बातचीत करता हूं। वह खड़ा खड़ा बोलता है। उसे सामने कुर्सी पर बैठने को कहता हूं। ठण्ड में उसे एक कप चाय ऑफर करने का मन बनता है पर मंहगू का मन रुकने का नहीं है। उसे अपने काम पर आगे जाना है।
जाते जाते मैं उसका एक चित्र और लेता हूं। मंहगू को अहसास हो गया है कि उसके मांगे हुये दाम पर दूध लेने का मन बन रहा है। वह सर्दी की तेजी के बावजूद एक स्माइल देता है। अच्छी लगती है उसकी मुस्कराहट!

अमूल जैसा कुछ यहाँ भी हो। गुणवत्ता आधार स्तम्भ रहे।
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दिल्ली के पास एक नामी गिरामी ब्रांड की दूधकंपनी के यहां छापे में सिंथेटिक दूध मिला था. जबकि सरकारी/नामी सहकारी कंपनियों के दूध में कम से कम सिंथेटिक दूध मिले होने का डर नहीं रहता. जहां तक लोकल दूध वालों की बात है वे पानी तो मिला सकते हैं पर सिंथेटिक दूध नहीं, ऐसा लगता है. आज, पानी से ज्यादा बड़ा ख़तरा सिंथेटिक दूध है
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हे भगवान! 😢
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जनार्दन वाकनकर, ट्विटर पर
सच कहा आपने इनकी स्माइल बड़ी प्यारी है
जय हो
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नीतीश सिंह, ट्विटर पर
मतलब अब महँगू प्रसाद जी से ही लिया जाएगा 👏👏
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