कृपया गड़ौली धाम के बारे में “मानसिक हलचल” ब्लॉग पर पोस्टों की सूची के लिये “गड़ौली धाम” पेज पर जायें। |
गड़ौली धाम में बीस से बाईस फरवरी तक गहमागहमी रही। पूरे भारत भर से लोग आये। दक्खिन से – तमिळनाडु से और पुदुच्चेरी से भी लोग थे। बाईस फरवरी को बड़ा भारी यज्ञ हुआ। इग्यारह वेदियों में सिंक्रोनाइज्ड-सम्पादित यज्ञ। ढेरों जजमान। इतना बड़ा परिसर और उसमें इतने सारे लोग देख कर मेरे पर्सोना का इण्ट्रोवर्ट तो और सिकुड़ गया। मैं तो टेण्ट के पीछे एक कुर्सी ले कर शैलेश पांड़े की बगल में बैठा पूरा दृश्य देखता भर रहा। शैलेश की टीम के लोग – कमल, पवन और अन्य तीन चार लोग अपने अपने मोबाइल से लाइव वीडियो स्ट्रीम फीड कर रहे थे जो सभी सोशल मीडिया पर तीन घण्टे तक लोगों के पास जाती रही। ये तो जुनूनी लोगों की टीम थी जो बिना धेला खर्च किये यह काम कर रही थी। वर्ना इतनी लाइव स्ट्रीमिंग के लिये जाने कितना खर्च बैठता।



समारोह का पीक प्वाइण्ट था रमेश भाई ओझा का समारोह में आना और उनका प्रवचन।
मुझ जैसे किनारे बैठ देखने वाले के लिये यह बड़ा अनुभव था। भूलूंगा नहीं।

उसी दिन शाम के समय मुझे घर पर शैलेश और कमल घर पर आ कर सुनील ओझा जी की ओर से सभी आगंतुकों को दिया जाने वाला उपहार का थैला दे कर दिल्ली लौटे। बहुत सुरुचिपूर्ण उपहार था वह। उसे देख कर लगा कि पूरे समारोह की हर गतिविधि की योजना बहुत बारीकी से हुई थी। बारीकी से बनी योजना और उत्साह से क्रियान्वयन – उससे पूरा आयोजन अविस्मरणीय बन गया!

अगले दिन बिहान से सवेरे मैं वहां पंहुचा तो इक्का दुक्का लोग थे। बिजली वाले अपना सामान समेट रहे थे। संतरी मुस्तैद थे। गायें दुही जा चुकी थीं। सतीश ने मुझे शुद्ध दूध की चाय पिलाई। भदई यादव ने बताया कि साठ लीटर दूध निकला होगा। गौशाला का एक चक्कर लगाने पर मुझे लगा कि खुद भी पालनी चाहिये दो तीन गायें। पर मेरी पत्नीजी का कहना है – “खुद तो कुछ करोगे नहीं; गाय की फोटो ले ले कर ब्लॉग पर लिखने के सिवाय। गायों की सेवा कौन करेगा।” … पत्नीजी गाय तो क्या एक पिल्ला तक पालने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है – “तुम्हें पाल रही हूं, वही बहुत है!” 😆
गंगा किनारे यज्ञशाला के आसपास एक सिक्यूरिटी वाला जवान था, और कोई नहीं। सिक्यूरिटी वाले को देख कर मैं तनावग्रस्त हो जाता हूं। कोई व्यक्ति कुछ भी जवाब-तलब करे; वह शांति में खलल जैसा लगता है। पर वैसा कुछ हुआ नहीं। वह जवान मुझसे दूर दूर ही घूमता रहा।
नीरवता भंग करने वहां कोई नहीं था। यज्ञशाला के पास, गंगा किनारे महादेव, नंदी और उनके पीछे कूर्मावतार विष्णु (?) शांत बैठे थे। कूर्मेश्वर को देख मुझे याद आया – जैसे कछुआ अपनी वृत्तियां सिकोड़ लेता है, वैसे ही हमें अपनी संज्ञायें ध्यानस्थ करनी चाहियें।
यदा संहरते चायम् कूर्मोंगानीव सर्वश:। इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥ (गीता, 2.58)

पता नहीं कछुआ किस लिये स्थापित किया गया है वहां। भगवान विष्णु का प्रतीक हो सकता है या ध्यान साधना का कोई प्रतीक है? कभी किसी विद्वान से पूछूंगा। फिलहाल उनक चित्र लिया।
इन दोनो और इन जैसे कुछ और लोगों को मैं जानता हूं जो नित्य गंगा स्नान करने वाले हैं। जब यहां गड़ौलीधाम में महादेव की प्राण प्रतिष्ठा हो गयी है तो गंगा किनारे थोड़ा व्यवस्थित घाट बना कर वहां इन सज्जनों जैसी विभूतियों को अपने यहां नित्य आने के लिये आकर्षित करना चाहिये। धाम उन्ही जैसों से जीवंत होगा!
वापसी में गड़ौली धाम के गेट पर देखा, दो सज्जन – पण्डित केदारनाथ चौबे और मुराहू पण्डित गेट के बाहर खड़े झांक रहे थे। उनके मन में कौतूहल था जानने का कि इस स्थान पर क्या हो रहा है। मैंने मुराहू पण्डित (मुराहू उपाध्याय) और केदारनाथ जी को चरण स्पर्श किया। सिक्यूरिटी वाले भी समझ गये होंगे। उन्होने गेट ऊंचा किया तो दोनो अंदर आ गये।

मुराहू उपाध्याय 88 वर्ष के हैं और केदारनाथ चौबे जी 82-83 के होंगे। दोनो व्यक्ति नित्य गंगा स्नान करते हैं – दशकों से। दोनो ही दीर्घजीवन के सूत्र जानने समझने के लिये आदर्श हैं। इतनी उम्र में भी 15-16 किमी रोज साइकिल चलाते हैं गंगा तट पर आने के लिये। गड़ौली धाम के आयुर्वेदशाला के लिये वे स्वस्थ वृद्ध के आईकॉन बन सकते हैं। मुराहू पण्डित जी के बारे में तो मैं जानता हूं – वे सवेरे तीन घण्टा अपने घर में गायों की सेवा कर गंगास्नान को निकलते हैं और रास्ते में लोगों का हाल लेते, उनको आयुर्वेदिक दवा बताते चलते हैं। वे आयुर्वेदाचार्य भी हैं।
इन दोनो और इन जैसे कुछ और लोगों को मैं जानता हूं जो नित्य गंगा स्नान करने वाले हैं। जब यहां गड़ौलीधाम में महादेव की प्राण प्रतिष्ठा हो गयी है तो गंगा किनारे थोड़ा व्यवस्थित घाट बना कर वहां इन सज्जनों जैसी विभूतियों को अपने यहां नित्य आने के लिये आकर्षित करना चाहिये। धाम उन्ही जैसों से जीवंत होगा!
कृपया गड़ौली धाम के बारे में “मानसिक हलचल” ब्लॉग पर पोस्टों की सूची के लिये “गड़ौली धाम” पेज पर जायें। |
बगल के योगेश्वरानंद आश्रम में गंगा तट पर पगडण्डी भर है। वहां घाट भी यूं ही है, बस। पर वहां मैंने करीब दो दर्जन लोगों को नित्य आते, स्नान करते और शिवजी को जल चढ़ाते देखा है। योगेश्वरानंद आश्रम की जीवंतता उन नित्य स्नानार्थियों से है। वैसा ही कुछ, या उससे कहीं व्यापक स्तर पर, गड़ौली धाम में होना चाहिये। गांवदेहात के ऐसे सरल, धार्मिक और अनुशासित जीवन जीने वाले महानुभावों का स्वागत धाम का गौरव ही बढ़ायेगा।
मेरी पत्नीजी तो एक कदम आगे जाने को कहती हैं। उनके अनुसार मुख्य नहान के दिनों के स्नानार्थियों को खिचड़ी आदि परोसने का प्रावधान होना चाहिये। माघ के महीने में, कार्तिक पूर्णिमा के दिन या ऐसे अन्य दिनों में यह आयोजन हो सकता है। उसके लिये एक ठीक ठाक पक्का घाट और वहां तक जाने की सीढियां या रैम्प जरूरी है। वहां स्त्रियों के वस्त्र बदलने के लिये छोटा सा शेड जैसा हो तो और भी अच्छा।

केदारनाथ द्वारिकापुर घाट पर यदा कदा भाग्वत कथा भी कहते हैं। मुझे नहीं लगता कि बहुत कमाई उनका ध्येय होता होगा। मुख्य ध्येय तो पुण्य लाभ ही है। … मुझे इन अस्सी पार कर चुके महानुभावों के स्वास्थ्य और सरलता से ईर्ष्या होती है और बहुत मन करता है उनकी सरलता, धर्मपरायणता को अपनाने का। पर कहां हो पाता है! मन की राजसिक वृत्तियां और चंचलता आड़े आती है।
मुराहू पण्डित पर पोस्टें – 1. मुराहू पंडित से दीर्घ जीवन के सूत्रों पर चर्चा 2. अंशु दुबे की ब्लॉग पोस्ट – मुराहू पण्डित का गंगा स्नान | केदारनाथ चौबे पर पोस्टें – 1. केदारनाथ चौबे का नित्य गंगा स्नान 2. केदारनाथ चौबे, परमार्थ, प्रसन्नता, दीर्घायु और जीवन की दूसरी पारी |
खैर, इन सज्जनों से प्रभावित हो कर पहले भी कई बार लिख चुका हूं ब्लॉग पर और अब तो गड़ौली धाम के संदर्भ में लिख रहा हूं। नित्य गंगा स्नानार्थियों को गड़ौली धाम से जोड़ने का काम एक सार्थक पहल होगी ऐसा मेरा सोचना है। और ऐसे पचीस पचास लोग तो निकल ही आयेंगे आसपास के 8-10 किमी की परिधि में। वे अगर जुड़ते हैं तो बहुत पावरफुल ओपीनियन मेकर होंगे गड़ौली धाम परियोजना के पक्ष में स्थानीय जनता के बीच। उनकी बात लोग – विशेषकर महिलायें – बहुत सुनते/मानते हैं।
हर हर हर हर महादेव! जय गंगा माई!

वर्डप्रेस मैसेज दे रहा है कि मेरी ब्लॉगिंग के 15 साल हो गये। सन 2007 में मैंने आज के दिन ब्लॉग बनाया था। उसके आसपास ही ब्लॉगर पर भी बनाया था। अंतत: यही चला। सारी पोस्टें वर्डप्रेस पर ही शिफ्ट कीं।
तब मुझे हिंदी में लिखना नहीं आता था। सोचना अंग्रेजी में होता था। वही कारण है कि आज भी मेरी वाक्य रचना हिंदी पट्टी के लोगों से कुछ अलग ही होती है। अटपटी। पर वही अंतत: मेरी यू.एस.पी. बन गयी।
बहुत समय बीत गया ब्लॉगिंग में। डेढ़ दशक! 🙂
15 साल एक लम्बा समय होता है, इस मैराथन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई 🙏🙏🙏
LikeLike
बहुत धन्यवाद राजकुमार जी! जय हो 🙏
LikeLike
बहुत सुन्दर, जहाँ तक यज्ञ की बात हो तो रुद्र का भाग बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि सती के पिता दछ ने वही हटा दिया था जिसको देखकर सती को क्रोध आया और –
सतीं जाइ देखेउ तब जागा। कतहूँ न दीख संभु कर भागा॥
जगदातमा महेसु पुरारी। जगत जनक सब के हितकारी॥
पिता मंदमति निंदत तेही। दच्छ सुक्र संभव यह देही॥
जब देखा कि रुद्र का भाग ही नहीं है तो सोचा पिता की मेरे पति से व्यक्तिगत समस्या है वो ठीक है लेकिन मेरे पिता ने यज्ञ का प्रोटोकाल भी तोड़ा है,कोई भी यज्ञ में रुद्र का भाग आवश्यक होता है
महादेव संसार में सबके हित की सोचते हैं लेकिन मेरा पिता मंद बुद्धि है उनकी निंदा करता है, और इनके अंश का यह शरीर अब रहने लायक़ नहीं इसे त्याग ही देना चाहिये।
🙏🙏महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏🙏
LikeLiked by 1 person
यह पोस्ट लंबे अंतराल पर आयी। लेकिन विस्तार आयी। गड़ौली धाम में स्थापत्य पूरा हो जाय तो वहाँ घूमने आएंगे। फिर आपके भी दर्शन करेंगे। अभी तो आपके माध्यम से वर्चुअल दर्शन कर रहे हैं। आनंदमय।
LikeLiked by 1 person
स्वागत! आप कभी भी कार्यक्रम बनाएं – वैसे भी और धाम देखने के लिए भी! 😊
LikeLike
‘रविवार के लोग’ शीर्षक वाली पोस्ट पढ़ने के बाद मुझे अगले दो तीन दिन कोई पोस्ट नहीं मिली थी। फिर मैं आज ही इधर आया सीधे इस पोस्ट पर। बाद में देखा कि इससे पहले दो पोस्टें और आ चुकी थीं जिन्हें मैंने देखा ही नहीं था। आपका गड़ौली धाम का प्रोजेक्ट बहुत अच्छा है। आप लिखते रहिए हम पढ़ते रहेंगे।🙏
LikeLiked by 1 person