केदारनाथ चौबे का नित्य गंगा स्नान

इस इलाके में कई लोग हैं जो बरसों से, बिला-नागा, गंगा स्नान करते रहे हैं। आज एक सज्जन मिले -श्री केदारनाथ चौबे। पास के गांव चौबेपुर के हैं। वृद्ध, दुबला शरीर, ऊर्जावान। द्वारिकापुर में एक टेकरी पर बनाये अस्थाई मन्दिर में भागवत कथा कहते हैं। कुछ सुनने वाले जुट जाते हैं। कभी कोई मेला – पर्व का दिन हो तो ज्यादा भी जुटते हैं।

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द्वारिकापुर में गंगा किनारे एक टेकरी समतल कर मूर्तियां रखी हैं। वहीं केदारनाथ चौबे भागवत कथा कहते हैं।

आज एक महिला उनका स्थान साफ़ कर लीप रही थी। वही एक मात्र श्रोता होगी शायद आज कथा की।

चौबे जी ने बताया कि तेरह साल हो गये उन्हे नित्य गंगा स्नान करते। भगवान करा रहे हैं और वे कर रहे हैं। अपने गांव से रोज साइकल से आते हैं। पहले साइकल ऊपर रखते थे। एक दिन एक व्यक्ति (उन्होने नाम भी लिया) ने साइकिल उड़ा ली। तब से अपने पास ही रखने लगे हैं।

तेरह साल हो गये इस नित्य कर्म को; आगे उन्होने सन 2020 तक का समय मांगा है भगवान से।

उसके बाद? सन 2020 के बाद?

उसके बाद जहां ले जायें भगवान! उन्होने अपना हाथ ऊपर उठा कर संकेत किया कि शरीर सन बीस तक मांगा है उन्होने। ज्यादा जीना होगा तो भगवान की इच्छा।

मैने उनकी उम्र पूछी। बोले छिहत्तर साल। अर्थात अपने लिये अस्सी साल की अवस्था की कामना की है उन्होने भगवान से।

वे देखने में 76 से कम के लगते है।  “भगवान ने शरीर सन 2020 तक ले लिये नहीं, बीस साल और चलने के लिये बनाया है” मैने अपना मत व्यक्त किया।

केदारनाथ जी बीस साल जीने की बहुत इच्छा वाले नहीं लगे। बोले जो इश्वर चाहेंगे, वही होगा।

अपना कर्म, अपनी चाह, अपना जीवन; सब ईश्वर के अधीन कर केदारनाथ जी कितने सहज भाव से जी रहे हैं! हम वैसे क्यों नहीं हो पाते जी?!

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गंगा किनारे अपने आसन पर बैठे केदारनाथ चौबे जी।

 

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

5 thoughts on “केदारनाथ चौबे का नित्य गंगा स्नान

  1. फेसबुक पर पोस्ट शेयर करते हुये प्रियंकर पालीवाल जी का कथन –
    “जाति और जीवन-शैली !
    ब्राह्मण जो इधर एक जाति भर मान लिए गए, एक जीवन-शैली का भी नाम है . अहंकार और पालागी वाली संस्कृति नहीं, निस्पृहता और वीतरागिता की एक विरल जीवन-शैली जो आज की उपभोक्ता-संस्कृति के बरक्स एक प्रतिसंसार रचती दिखती है.
    ग्रामीण भारत के अंतर्विरोधों और आधुनिक भारत से उसके बनते-बिगड़ते रिश्तों के साथ पुराने भारत की राख में सुंदरता के स्वर्ण-कण खोज लेने वाले धैर्यवान मित्र ज्ञानजी यानी पं. Gyan Dutt Pandey रेलवई वाले बीच-बीच में भारत की जटिल और बहुस्तरीय सामाजिक-संरचना के ऐसे दुर्लभ और मर्मस्पर्शी चित्र प्रस्तुत करते हैं.
    कम में ज्यादा कहने की उनकी विशिष्ट शैली का मैं पुराना प्रशंसक हूं .”

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    1. मेरा फेसबुक पर टीप –
      “वाह! जब मैंने देखा और लिखा था, तब इस कोण से सोचा नहीं था।
      यही अंतर है एक खुरदरे ब्लॉग लेखक और मंजे हुए लेखक में।
      फिर मांग करता हूं – अपनी कलम दे दीजिए मुझे!”

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      1. पुनर्वसु जोशी जी की टिप्पणी –
        “पाण्डे जी, कई बार सहज सरल लेखन ही सहज सरल अभिव्यक्ति का सटीक माध्यम होता है। आपका लिखा पढ़ कर आनन्द आया!”

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