यह जो बड़ी संख्या में आबादी आ कर गांव में टिकी है, वह यह नहीं पता कर रही कि यहां अस्पताल कितने हैं; कितने बिस्तर उनमें कोविड19 के लिये हैं; … वे यह जानना चाहते हैं कि रोजगार कब, कहां और कैसे मिलेगा।
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गांव लौटे लोग बिना रोजगार ज्यादा बैठ नहीं पायेंगे #गांवकाचिठ्ठा
अगर उन्हें घर पर रहते हुये एक सम्मानजनक व्यवसाय मिल जाता है, जो प्रवास से भले ही कुछ कम आमदनी दे, तो वे सब यहीं रुक जायेंगे और यह समाज और उत्तर प्रदेश की बड़ी जीत होगी।
माणिक सेठ कहते हैं जिंदगी गोलों में बंध गयी है
“अब बस यही गोले हैं, और गोलों में खड़े ग्राहक। जिंदगी गोलों में बंध गयी है। पता नहीं कितने दिन चलेगा। शायद लम्बा ही चलेगा!” – माणिक कहते हैं।
