छब्बीस जनवरी की जलेबी खरीद


घर पर हमारे ड्राइवर साहब ने एक बांस की लम्बी डण्डी छील कर तैयार की। उसपर झण्डा लगा कर घर के ऊपर कोने पर सुतली से सीढ़ी के रेलिंग से झण्डा बांध कर फहराया। सब को जलेबी बांटी गयी। देशभक्ति की ड्रिल सम्पन्न हुई।

धूप खिली है और लॉन में जगह जमा ली है!


पत्नीजी ने कमरे में लैपटॉप, बिस्तर और रज़ाई के कंफर्ट जोन से भगा दिया है। बताया है कि आज अलाव की भी जरूरत नहीं। आज लॉन में कुर्सियां लगा दी हैं। धूप अच्छी है। आसमान साफ है। वहीं बैठो। कमरा बुहारने दो! और सच में आज लॉन शानदार लग रहा है। कार्पेट घास का आनंदContinue reading “धूप खिली है और लॉन में जगह जमा ली है!”

शवदाह पश्चात पूड़ी मिठाई


कड़े प्रसाद तो अपनी नमकीन बेच कर, हमेशा की तरह गेट बिना बंद करने की जहमत उठाये चले गये। पर मुझे जीवन-मृत्यु-श्मशान-वैराज्ञ-उत्सव और दीर्घायु आदि के मुद्दे सोचने के लिये थमा गये।

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