फाफामऊ तिराहे पर दुकान है मदनलाल की। चाय, पान, डबलरोटी, गुटका, बिस्कुट, पाव, टॉफी – सब मिलता है। सवेरे साढ़े छ बजे बैठे थे। दो ग्राहक उनके सामने चाय पी रहे थे। मैं भी रुक गया। चाय मांगने पर उन्होने एक लीटर के थर्मस से चाय निकालनी प्रारम्भ की। यह नया अनुभव था मेरे लिये।Continue reading “मदनलाल की थर्मस में चाय”
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फाफामऊ, सवेरा, कोहरा, सैर
रात में रुका था अस्पताल में। केबिन में मरीज के साथ का बिस्तर संकरा था – करवट बदलने के लिये पर्याप्त जगह नहीं। बहुत कुछ रेलवे की स्लीपर क्लास की रेग्जीन वाली बर्थ जैसा। उसकी बजाय मैं जमीन पर चटाई-दसनी बिछा कर सोया था। रात में दो तीन बार उठ कर जब भी मरीज (अम्माजी)Continue reading “फाफामऊ, सवेरा, कोहरा, सैर”
कर्जन ब्रिज से गंगा पार, पैदल
अपनी मां के कूल्हे की हड्डी के टूटने के बाद के उपचार के सम्बन्ध में नित्य फाफामऊ आना-जाना हो रहा है। अठ्ठारह नवम्बर को दोपहर उनका ऑपरेशन हुआ। सफ़ल रहा, बकौल डाक्टर। [1] उन्नीस नवम्बर को सवेरे उनके पास जाने के लिये मैने नये पुल पर वाहन से जाने की बजाय ऐतिहासिक कर्जन ब्रिज सेContinue reading “कर्जन ब्रिज से गंगा पार, पैदल”
