आउ, आउ; जल्दी आउ!


वह सामान्यत: अपने सब्जी के खेत में काम करता दीखता है गंगाजी के किनारे। मेहनती है। उसी को सबसे पहले काम में लगते देखता हूं। दशमी के दिन वह खेत में काम करने के बजाय पानी में हिल कर खड़ा था। पैण्ट उतार कर, मात्र नेकर और कमीज पहने। नदी की धारा में कुछ नारियल,Continue reading “आउ, आउ; जल्दी आउ!”

माई बुडि जाब। (माँ डूब जाऊंगा।)


सात आठ लोगों का समूह था। अपना सामान लिये गंगा में उभर आये टापू पर सब्जियाँ उगाने के काम के लिये निकला था घर से। गंगाजी में पानी ज्यादा नहीं था। एक रास्ता पानी में खोज लिया था उन्होने जिसे पानी में हिल कर पैदल चलते हुये पार किया जा सकता था। यह सुनिश्चित करनेContinue reading “माई बुडि जाब। (माँ डूब जाऊंगा।)”

मन्दिर पर छोटी छोटी चीजें गुम जाने का समाजशास्त्र


मालिन बैठती है कोटेश्वर महादेव मन्दिर के प्रांगण में। घिसा चन्दन, बिल्वपत्र, फूल, मालायें और शंकरजी को चढ़ाने के लिये जल देती है भक्तजनों को। एक तश्तरी में बिल्वपत्र-माला-फूल और साथ में एक तांबे की लुटिया में जल। भक्तों को पूजा के उपरांत तश्तरी और लुटिया वापस करनी होती है। मैने उससे पूछा – लुटियाContinue reading “मन्दिर पर छोटी छोटी चीजें गुम जाने का समाजशास्त्र”

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