मेरी जिन्दगी रेलगाड़ियों के प्रबन्धन में लगी है। ओढ़ना-बिछौना रेल मय है। ऐसे में गुजरती ट्रेन से स्वाभाविक ऊब होनी चाहिये। पर वैसा है नहीं। कोई भी गाड़ी गुजरे – बरबस उसकी ओर नजर जाती है। डिब्बों की संख्या गिनने लगते हैं। ट्रेन सभी के आकर्षण का केन्द्र है – जब से बनी, तब से।Continue reading “रेलगाड़ी का इन्तजार”
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स्मार्ट और धूर्त बधिक
अंगुलिमाल को बुद्ध चाहिये थे, पश्चाताप के लिये। मुझे नहीं लगता कि जस्टिस तहिलियानी के कोर्ट में बुद्धत्व का वातावरण रहा होगा। खबरों के अनुसार तो वे स्वयं अचकचा गये थे इस कंफेशन से। अपना अजमल कसाब कसाई तो बहुत स्मार्ट निकला जी। उसे इतनी देर बाद ख्याल आया अपनी अन्तरात्मा का। रेलवे की भाषाContinue reading “स्मार्ट और धूर्त बधिक”
कतरासगढ़
यह जानने के बाद कि कतरासगढ़ क्षेत्र की कोयला खदानों से साइकल पर चोरी करने वाले कोयला ले का बोकारो तक चलते हैं, मेरा मन कतरासगढ़ देखने को था। और वह अवसर मिल गया। मैं कतरासगढ़ रेलवे स्टेशन पर पंहुचा तो छोटी सी स्टेशन बिल्डिंग मेरे सामने थी। यह आभास नहीं हो सकता था किContinue reading “कतरासगढ़”
