विनोद दुबे – माई की कृपा, बच गया


माई पर विश्वास की यह आस्था तर्क के परे की चीज है। दर्शन तो उन दोनो ने भी किये होंगे। और वे परोपकार भी कर रहे थे इन्हें साथ बिठा कर लाने में। पर वे चले गये ऊपर। … वैसे ऊपर जाना बेहतर था या इस भवजगत में खटना?

नवान्न


हम इतने प्रसन्न हो रहे हैं तो किसान जो मेहनत कर घर में नवान्न लाता होगा, उसकी खुशी का तो अंदाज लगाना कठिन है। तभी तो नये पिसान का गुलगुला-रोट-लपसी चढ़ता है देवी मैय्या को!

गुलाब नाऊ


जातियां, काम धंधे, गांव की हाईरार्की – इन सब से मेरा पाला रोज रोज पड़ता है। कभी लगता है कि समाजशास्त्र का विधिवत अध्ययन कर लूं। एक दो साल उन्हीं पर पुस्तकें पढूं। शायद मेरी समझ और नजरिया सुधरे।

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