बुलबुल बरही मनाने का इंतजार नहीं की। बच्चों को ले कर उड़ गयी।


आज सवेरे पोर्टिको में हम चाय पीने बैठे तो कुछ अजीब लगा। बहुत देर तक देखा कि बुलबुल कीड़े चोंच में दबाये तुलसी की झाड़ में नहीं आ रही। … पूरी सावधानी से पत्नीजी ने तुलसी की झाड़ को कुरेद कर घोंसला देखा। देखते ही सन्न रह गयीं। उनकी आवाज निकली – हाय इसमें बच्चे तो हैं ही नहीं।

तुलसी की झाड़ में बुलबुल के बच्चे


हमने भी देखा – सावधानी से – तीन बच्चे थे बुलबुल के हथेली भर के घोंसले में। हल्की आहट पर तीनो अपनी चोंच खोल कर प्रतीक्षा करते थे कि उनके लिये खाना आ रहा होगा। तीनों मांस के लोथड़े जैसे हैं। उनके पंख अभी ठीक से जमे नहीं हैं।

चैत्र में कांवरिया


वे इस समय नवरात्रि के कारण नहीं चल रहे। उनके गुरू जी दण्ड दे रहे हैं। दण्ड देने का अर्थ है लेट लेट कर कांवर यात्रा करना। गुरू जी के साथ ही वे दस लोग चल रहे हैं। गुरू जी आगे हैं। वे उनके अनुगामी हैं।

Design a site like this with WordPress.com
Get started