अच्छा लगा! यह रुक्ष कांवर यात्री मुझसे हास्य और विनोद का आदान-प्रदान करने की ओर खुला तो सही! आपसी सम्बंधों की बहुत सी बर्फ हम तोड़ चुके हैं। कई बार प्रेमसागर मुझसे झिड़की खा कर भी बुरा नहीं माने हैं। मेरी नसीहतें भले ही न मानी हों पूरी तरह; पर अवज्ञा का भाव कभी नहीं था। और अब यह हंसी ठिठोली – महादेव सही रूपांतरण कर रहे हैं अपने चेले का!
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दौलतपुर के जंगल का भ्रमण
मसलन वन अधिकारी भी जंगल के वृक्षों में 5-10 को पहचानते हैं। यह तो वैसा ही हुआ कि घरनी को घर की चिंता ही नहीं है। महिला अपने एक दो बच्चों को नाम ले कर बुलाये और बाकी को सतकटा कह कर निपटा दे तो उस परिवार का भगवान ही मालिक।
आष्टा से दौलतपुर – जुते खेत और पगला बाबा
सवेरे समय से निकलना। रास्ते को देखते चलना। पगला बाबा से मुलाकात और सांझ ढलने के पहले मुकाम पर पंहुच जाना – बहुत बढ़िया चले प्रेमसागर! ऐसे ही चला करो, दिनो दिन। तब तुम पर खीझ भी नहीं होगी। प्रेम पर प्रेम बना रहेगा।
भोपाल के आगे निकले प्रेमसागर
लगभग 10 हजार किलोमीटर यह ज्योतिर्लिंग यात्रा है। उसका 12-15% अभी तक सम्पन्न हो चुका है। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। इससे यह विश्वास पुख्ता हुआ है कि प्रेमसागर यात्रा सम्पन्न करने में सक्षम हैं।
भोपाल, बारिश, वन और बातचीत
अपने सेण्डिल के बारे में प्रेमसागर का कहना है – “भईया, सेण्डिल भी सोचता होगा कि दुकानदार ने किस आदमी को मुझे थमा दिया। चैन लेने ही नहीं देता। महीने भर में में ही घिस गया है। जल्दी ही बदलना पड़ेगा।” वह तो गनीमत है कि प्रेमसागर का सेण्डल सस्ता वाला है – तीन-चार सौ का। किसी रीबॉक या आदिदास का खरीदे होते तो बारम्बार खरीदने में उन्हें लोगों से पैसे की अपील करनी पड़ती।
भोजेश्वर मंदिर और भोपाल
प्रेमसागर बतौर टूरिस्ट नहीं निकले हैं। वे तो कांवर ले कर सिर झुका कर जप करते हुये चला करते थे। बिना आसपास देखे। यह तो बदलाव उन्होने किया है कि यात्रा मार्ग में दृश्य और सौंदर्य में “कंकर में शंकर” के दर्शन करने का। वह बदलाव ही बहुत बड़ा बदलाव है।