आठ किलोमीटर की पेट्रोलिंग करता है बसंत रोज। उसके कंधे पर जो औजार और फ्लैग पोस्ट होता है, उसका वजन आठ-दस किलो होता है। सवेरे सवेरे, भोर की वेला में सर्दी-गर्मी-बरसात झेलता उस वजन के साथ रेल पटरी-गिट्टी पर चलता है बसंत। निगाहें पटरी की दशा और चाभियों की कसावट पर रखनी होती है। … आजकल सेना के जवानों का प्रशस्ति गायन फैशन में हैं। पर बसंत चाभीवाले की नौकरी कौन कम साधुवाद की है?!