पीछे कांधे पर लेने वाला यह पिट्ठू बैग और एक दहिमन की लकड़ी की डण्डी – यही उनका सामान है। कपड़े न्यूनतम हैं। अपनी पोटली में उन्होने सोठउरा, तिल, गुड़ और गोंद का लड्डू और कुछ सूखे मेवे रखे थे। वह मुझे दिखाये भी और चखाये भी।
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देवरी से कुण्डम का रास्ता
प्रेम सागर पहले अपने संकल्प में, ज्योतिर्लिंगों तक येन केन प्रकरेण पंहुचने में अपनी कांवर यात्रा की सार्थकता मान रहे थे। अब वे यात्रा में हर जगह, हर नदी, पहाड़, झरने, पशु पक्षियों और लोगों में शिव के दर्शन करने लगे हैं।
रीवा से बाघवार – विंध्य से सतपुड़ा की ओर
आगे रास्ता बहुत खतरनाक था। सर्पिल “जलेबी जैसी” सड़क। जरा सा फिसले नहीं कि खड्ड में गिर जाने का खतरा। सर्पिल सड़क से हट कर एक जगह पगड़ण्डी पकड़ी प्रेम सागर ने और पांच-सात किलोमीटर बचा लिये। शाम पांच बजे वे बाघमार रेस्ट हाउस पंहुच गये थे।
