अज़दक जी बहुत बढ़िया लिखते हैं. हमें तो लिखने का एक महीने का अनुभव है, सो उनकी टक्कर का लिखने की कोई गलतफ़हमी नहीं है. लेकिन सोचने में फर्क जरूर है. अपने चिठ्ठे में अजदक ने सिंगूर में टाटा के प्लान्ट के लिये हो रहे जमीन के अधिग्रहण को बदनीयती, धांधली, “जनता का पैसा लुटाContinue reading “टाटा डकैत तो नहीं है”
Monthly Archives: Mar 2007
हताशा के पांच महीने बाद
अवसाद, हताशा और खुश जिन्दगी में कितने महीनों का अंतर होता है?
बहन मायावती की रैली
एक मार्च को लखनऊ में बहन मायावती की रैली थी. पहले वे सवर्णो को मनुवादी कहती थीं. उनके खिलाफ बोलती थीं. सामान्य लगती थीं. पर जब से उनकी पार्टी ने ब्राह्मणों को टैग किया है, तब से मामला क्यूरियस हो गया है. यूपोरियन राजनीति में क्या गुल खिलेगा; उसका कयास लगाना मजेदार हो गया है.Continue reading “बहन मायावती की रैली”
