संजय कुमार, रागदरबारी और रेल के डिब्बे


कल मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब संजय कुमार (जो हमारे चीफ रोलिंग स्टॉक इंजीनियर हैं) ने इण्टरकॉम पर मुझसे पूछा कि मेरा ब्लॉग तो उन्होने गूगल सर्च से ढ़ूंढ़ लिया है, पर अब हिन्दी में टिप्पणी कैसे करें. यह अच्छा था कि कुछ ही दिन पहले मैने हिन्दी ट्रांसलिटरेशन औजार ब्लॉग पर लगाया था. मैने उसी का प्रयोग करने का उन्हे सुझाव दिया. और क्या बढ़िया प्रयोग कर टिप्पणी की है उन्होने! आप जरा पिछली पोस्ट पर बेनाम से शुरू होती पर संजय कुमार, इलाहाबाद के हस्ताक्षर में पूर्ण होती उनकी टिप्पणी का अवलोकन करें. (इस पोस्ट पर बॉक्स आइटम के रूप में वह टिप्पणी मैं प्रस्तुत कर दे रहा हूं).


संजय कुमार की पिछली पोस्ट पर टिप्पणी:

यह सब मानसिक सीमाओं का खेल है. एक मित्र आए. कहने लगे की पिताजी बहिन की शादी इन्टर कास्ट करने को तैयार नहीं हो रहे हैं. इन्टर कास्ट का मतलब लड़का कायस्थ तो है पर श्रीवास्तव नहीं है.बताइए यह भी कोई बात हुई. दुनिया कहाँ से कहाँ पंहुच गई है और हम लोग अभी जात पात में ही उलझे हुए हैं.
मैंने पूंछा की तुम्हारी बेटी की शादी भी १५-२० साल बाद होगी. अगर वोह किसी मुस्लिम से शादी करने को कहे तो क्या तैयार हो जाओगे. नाराज़ हो गए. बोले क्या मज़ाक करते हो. ऐसा भी कभी हो सकता है. मैंने कहा की जैसे आपको यह बुरा लगा वैसे ही आपके पिताजी को भी नागवार गुज़रा होगा.सारा खेल मन की सीमाओं का है. थोड़ा ख़ुद बनती बिगड़ती रहती हैं, थोड़ा वक्त तोड़ मरोड़ देता है.

संजय कुमार, इलाहबाद


एक मेकेनिकल इंजीनियर जो रेल डिब्बों के रखरखाव और परिचालन में उनकी ट्रबलशूटिंग को लेकर दिन रात माथापच्ची करता हो, हिन्दी लेखन जिसके पेशे में न हो, इतनी बढ़िया हिन्दी में टिप्पणी भी कर सकता है! इस टिप्पणी को देख कर मुझे एक यूपोरियन कहावत याद आती है कि बाघ के बच्चे ने पहला शिकार किया तो बारासिंघा मारा!@

मित्रों, आप एक दूर दूर तक हिन्दी और ब्लॉगिंग से असम्बद्ध व्यक्ति को हिन्दी ब्लॉगिंग से जोड़ सकते हैं. आपको उनकी जरा कसके (झूठी नहीं, यथार्थपरक) प्रशंसा करनी है, जिससे उनका मन जुड़े.

संजय को अपने ब्लॉग के विषय में मैने नहीं बताया. वास्तव में रेल वातावरण में हिन्दी ब्लॉग लेखन के विषय में मैने अपने आप को कभी प्रचारित नहीं किया. मैं समझता हूं कि रेल का वातावरण ब्लॉगरी के लिये उपयुक्त नहीं है. यहां लोग रेल की पटरी से बहुत दूर नहीं जाते – असहज होने लगते हैं जाने पर! पर संजय ने स्वयम इण्टरनेट पर मेरा ब्लॉग ढ़ूंढा है, किसी तीसरे सज्जन के हल्के से सन्दर्भ के चलते.

संजय कुमार से एक समय रागदरबारी पर चर्चा हुई थी जब हम रेल दुर्घटना के समय कानपुर साथ-साथ जा रहे थे. मैने चुर्रैट शब्द का प्रयोग किया था और उस शब्द से प्रसन्न हो उन्होने श्रीलाल शुक्ल का राग दरबारी बहुत देर तक बजाया. कहना न होगा कि हमारा तनावपूर्ण सफर बहुत हल्का हो गया था. वास्तव में श्रीलाल शुक्ल जी की याद नामक पोस्ट मैने संजय से इस मुलाकात के परिणाम स्वरूप ही लिखी थी

संजय सरकारी काम में भी बड़े सहज और पॉजिटिव चरित्र हैं. उनके साथ सामान्य वार्तालाप और रेल के काम की बात – दोनो बड़े मैत्रीवत होते हैं. मुझे विश्वास है कि वे, अगर ब्लॉगिंग से जुड़ें तो एक अच्छे ब्लॉगर साबित हो सकते हैं.

आज संजय दिन भर प्रयागराज एक्स्प्रेस के लिये तीन कोचों के प्रबन्धन की माथापच्ची करेंगे जो कल से हमें सामान्य सेवा जारी रखने के लिये चाहियें. पर उस बीच मैं उनसे इस पोस्ट पर आपकी टिप्पणियां देखने के लिये भी कहूंगा, अगर उनके लिये कमसे कम पांच जोश दिलाऊ टिप्पणियां आ गयीं तो!

संजय का कोई चित्र मेरे पास नहीं है. कल दिन में मिल पाया तो इस पोस्ट पर वह चिपका दूंगा.

आज की पोस्ट पर संजय के लिये टिप्पणी करने का विशेष अनुरोध है!


@ – यह कहावत भी शायद रागदरबारी में पढ़ी है.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

19 thoughts on “संजय कुमार, रागदरबारी और रेल के डिब्बे

  1. बहुत बढ़िया, संजय जी को सबसे पहले तो बधाई कि कार्यक्षेत्र में हिन्दी का वातावरण न होने के बाद भी उन्होनें यहां हिन्दी मे टिप्पणी की।निश्चित ही टिप्पणी से उनके लेखन का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, आशा है “संजय” जी ब्लॉगिंग में अपनी “दूरदृष्टि” लेकर जल्दी ही नज़र आएंगे।

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  2. sorry for comment in english-sirjisanjayji ka welcome haiunhe bataya jaye ki brahmand ke sabse dhansoo rachnakar -alok puranik net par hi milte hein aur agar woh aisa nahin manen to phir kya fayada unka blogging mein ana kaalok puranik

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  3. पांच क्या सात आ गयी और सात तो शगुन मानते है तो अब देर किस बात की :)संजय जी को ब्लॉगिंग से भला अब कौन रोक सकता है। :)

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  4. संजयजी ने बहुत ही सधी हुई टिप्पणी की है. कोई शक नहीं कि व सधे हुए चिट्ठाकार साबित होगं.संजयजी के चिट्ठे की प्रतिक्षा है.

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  5. टिप्पणी करना ब्लॉगर बनने की पहली सीढी है. बहुत सारे ‘फुल टाइम’ टिप्पणीकार आगे चलकर ब्लॉगर बन जाते हैं. ये बात विकास का परिचायक है. मैंने ख़ुद ये महसूस किया है.बाघ के बच्चे ने बाराहसिंघे का शिकार कर ही लिया है.आगे चलकर किसका-किसका शिकार करेंगे, इसका अनुमान लगाना मुश्किल काम नहीं…:-)

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  6. हम भी संजयजी को हिन्दी ब्लागिंग करने का न्यौता देते हैं । संजयजी अगर कुँवारे हैं तो ब्लागिंग करने में कोई वैचारिक समस्या नहीं है । अगर शादीशुदा हैं तो यहाँ इतने उदाहरण भरे पडे हैं सीखने के लिये :-)कुल मिलाकर आ ही जाना चाहिये संजयजी को इस क्षेत्र में, ज्ञानदत्तजी की रेलवे की मोनोपोली भी छूटेगी और कुछ अंदर की खबर मिलेगी :-)साभार,

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  7. हमे इंतजार है ब्लोगर संजय का फ़ोटो वही दिखा देगे अपना..:) आपतो बस पकड कर ब्लोगिंग मे ठेल दीजिये..

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  8. हम उम्मीद करते हैं कि जल्द ही संजय कुमार ब्लागिंग के हलके में उतरेंगे। टिप्पणी करने लगे तो समझ लीजिये कि आ ही गये मैदान में। शादी व्याह हिंदू-मुस्लिम में जब तक बाप लोग तय करते रहेंगे तब तक ऐसा ही होगा। लड़के-लड़कियां खुद पहल करेंगे तब ही मामले की चूल बैठेगी। :)

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