यह श्री पंकज अवधिया की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है। पंकज जी ने अठाईस नवम्बर को "दांतों की देखभाल – हल्दी का प्रयोग" नामक पोस्ट इस ब्लॉग पर लिखी थी। वह प्रयोग सरल और प्रभावी होने की बात मेरी पत्नीजी भी करती हैं। वे उस प्रयोग में नियमित हैं। कई अन्य पाठक भी कर रहे होंगे यह उपयोग। उनमें से किसी के प्रश्न पर पंकज जी ने प्रयोग को और प्रभावी बनाने की युक्ति बताई है। आप पढ़ें:
प्रश्न: हल्दी के उपयोग से जो आपने दाँतो की देखभाल के विषय मे लिखा था उसे पढ़कर हम अपना रहे है और लाभ भी हो रहा है। क्या इसे और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है जैसे दाँतो की सड़न आदि विशेष समस्याओ के लिये? यदि हाँ, तो इस विषय मे बतायें।
उत्तर: आपके प्रश्न के लिये धन्यवाद। यह जानकर असीम संतोष हुआ कि आपको मेरे ज्ञान से लाभ हो रहा है। आमतौर पर पारम्परिक चिकित्सक हल्दी के इस सरल प्रयोग की बात ही कहते हैं। पर विशेष समस्या जैसा कि आपने पूछा है, होने पर वे इसमे नाना प्रकार की वनस्पतियो और उनके सत्व मिलाकर हल्दी के गुणो को बढाने का प्रयास करते हैं। वानस्पतिक सर्वेक्षणो के आधार पर मेरे पास हल्दी के साथ प्रयोग की जाने वाली वनस्पतियो की लम्बी सूची है। इनमे से एक सरल प्रयोग मै प्रस्तुत कर रहा हूँ।
जैसा कि मैने पहली पोस्ट मे लिखा है हल्दी का प्रयोग दाँतो के लिये रात में ही करे। आप एक महीने तक यह प्रयोग करें फिर सात दिनों तक प्रतिदिन हल्दी के साथ विभिन्न पत्तियों का रस मिलाकर प्रयोग करें। पहले दिन आप नीम की ताजी पत्तियाँ ले आयें और फिर रस निकालकर प्रयोग के तुरंत पहले हल्दी मे मिलाकर उसी तरह प्रयोग करें। दूसरे दिन मुनगा (जिसे हम सहजन के नाम से भी जानते हैं) की पत्तियो का ऐसा ही प्रयोग करें। तीसरे दिन आम की, चौथे दिन जामुन की, पाँचवें दिन तुलसी की, छठवें दिन अमरूद की और सातवें दिन फिर नीम की पत्तियों का प्रयोग करें। इस विशेष सप्ताह के बाद फिर एक महीने हल्दी का सरल प्रयोग करें। इस तरह इसे अपने दिनचर्या का नियमित हिस्सा बना लें।
पारम्परिक चिकित्सक यह जानते हैं कि आम लोग विशेषकर शहरी लोग जल्दी से किसी भी उपाय से ऊब जाते हैं और फिर उसे अपनाना छोड देते हैं। यही कारण है कि बदल-बदल कर उसी औषधि को कम और अधिक शक्तिशाली रूप मे प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। इन वनस्पतियो के साथ हल्दी के प्रयोग के अपने फायदे तो हैं ही।
"भले ही यह अटपटा लगे पर मन से वनस्पति को एक बार धन्यवाद अवश्य दे दें।" |
पिछले दिनो मैने इकोपोर्ट पर एक अंग्रेजी आलेख लिखा कि क्या दाँतो को दोबारा उगाया जा सकता है? ज्ञान जी ने इसे पढा है। छत्तीसगढ के पारम्परिक चिकित्सक इसके लिये जिन वनौषधियों का प्रयोग करते है उनका प्रयोग हल्दी के साथ ही किया जाता है। एक वर्ष या इससे भी अधिक समय तक रोज कई बार हल्दी का प्रयोग अलग-अलग वनौषधियो के साथ किया जाता है। नीम, सहजन, आम, जामुन, अमरूद और तुलसी की पत्तियाँ इसमे सम्मलित हैं। बाकी वनस्पतियों का प्रयोग कुशल पारम्परिक चिकित्सकों के मार्गदर्शन मे होता है। अत: विशेष सप्ताह के दौरान आप इन दिव्य गुणयुक्त वनस्पतियों का प्रयोग कर पायें तो यह सोने मे सुहागा वाली बात होगी।
अमरूद का वृक्ष »
घबरायें नही; न कर पायें तो हल्दी का साधारण प्रयोग ही जारी रखे। पर यदि आप कर पाये तो इन पत्तियों एकत्रण के समय ये सावधानियाँ बरतें:
- पुराने पेड़ों का चुनाव करें।
- एक ही डाल से बहुत अधिक पत्तियाँ न तोडे।
- ताजे रस का प्रयोग करें। एक बार रस निकालकर फ्रिज मे रखने की भूल कर इस प्रयोग को विकृत न करें।
- कीट या रोग से प्रभावित वनस्पति का चुनाव न करें।
- पत्तियों के एकत्रण के बाद हल्दी के तनु घोल को उस डाल पर डाल दे जिससे आपने इन्हे एकत्र किया है।
- भले ही यह अटपटा लगे पर मन से वनस्पति को एक बार धन्यवाद अवश्य दे दें।
पंकज अवधिया
स्टैटकाउण्ट को सही माना जाये तो पंकज अवधिया और मेरी इस ब्लॉग मे जुगलबन्दी बहुत जम रही है। उनकी अतिथि पोस्ट होने के बावजूद भी मैं रविवार को एक छुट्टी मार रहा हूं दो बार से। अगर अतिथि पोस्ट दो दिन – बुधवार और रविवार लिखने को अनुरोध किया जाये तो कैसा रहे?!
“स्टैटकाउण्ट को सही माना जाये तो पंकज अवधिया और मेरी इस ब्लॉग मे जुगलबन्दी बहुत जम रही है। उनकी अतिथि पोस्ट होने के बावजूद भी मैं रविवार को एक छुट्टी मार रहा हूं दो बार से। अगर अतिथि पोस्ट दो दिन – बुधवार और रविवार लिखने को अनुरोध किया जाये तो कैसा रहे?!”बहुत अच्छा ख्याल है. अवधिया जी के लेख बहुत जनोपयोगी हैं, आपको इस कारण दो (+इतवार) अवकाश मिलेगा, एवं अवकाश के दौरान आप बडे आराम से नये विषय एवं नये चित्रों की तलाश कर सकते हैं !!!
LikeLike
आप सभी की टिप्पणियो के लिये आभार। ज्ञान जी को एक बार फिर से धन्यवाद जो मुझे अपने लोकप्रिय ब्लाग मे थोडी सी जगह दी।
LikeLike
@ श्री आर. सी. मिश्र – मेरे पास इस ट्रांसलिटरेशन औजार के लिये ऊपर जगह नहीं थी। मैं जब अंग्रेजी में टिप्पणी भी स्वीकारने को तत्पर हूं, तो आपके कहे पर औजार गायब कर दिया! ब्लॉगिंग व्यक्तित्व में बहुत ‘एकॉमडेटिव नेचर’ ला देती है! आपने कहा और हमने किया। शायद सामान्य जीवन में जिद या ‘ऑब्स्टीनेसी’ बहुत ज्यादा है, ब्लॉगरी में नहीं!
LikeLike
पाण्डेय जी, आपके पृष्ठ पर जाने पर पूरा पेज लोड होते ही ब्राउज़र हमें पेज कि निचले हिस्से पर पहुंचा देता है, और पोस्ट पढ़ने के लिये फ़िर से ऊपर स्क्रोल करना पड़ता है, ऐसी समस्या कुछ और चिट्ठों पर है, कारण जैसा कि आपको पता होगा, गुगल का हिन्दी ट्रान्सलेशन औजार है, या तो इसको छुट्टी दीजिये या पृष्ठ के ऊपरी भाग पर कहीं स्थान दीजिये, धन्यवाद।
LikeLike
दांतों की देखभाल के लिए बताये गए आपके सुझाव अत्यंत लाभाकरी साबित हो रहे हैं. गेस्ट पोस्ट के लिए हम आपके आभारी हैं.
LikeLike
अरे वाह. काम की बात. शुक्रिया.
LikeLike
हर बुधवार का शुक्रिया आरक्षित कर ही लें। रविवार को भी शुक्रिया कहने को तैयार हैं हम।
LikeLike
बढ़िया है जी।
LikeLike
काम की बात होती है दो दिन हो तो अच्छा ही है।
LikeLike
हल्दी का यह प्रयोग कर के देखना पड़ेगा। वैसे आज रेडीमेड के जमाने में श्रम साध्य भी है।
LikeLike