घण्टे भर से ज्यादा हो गया, यहां ट्रेन रुकी हुई है। पहले सरसों के खेत देखे। कुछ वैसे लगे जैसे किसी मुगल बादशाह का उद्यान हो। दो पेड़ आपस में मिल कर इस तरह द्वार सा बना रहे थे जैसे मेहराबदार दरवाजा हो उस उद्यान का। उनसे हट कर तीन पेड़ खड़े थे – कुछ कुछ मीनारों से।
एक छोटा कुत्ता जबरी बड़े कुकुर से भिड़ा। जब बड़के ने झिंझोड़ दिया तो किंकियाया और दुम दबा कर एक ओर चला गया। बड़े वाले ने पीछा नहीं किया। सिर्फ विजय स्वरूप अपनी दुम ऊर्ध्वाकार ऊपर रखी, तब तक, जब तक छोटा वाला ओझल नहीं हो गया।
स्टेशन के दूसरी ओर ट्रेन के यात्री उतर उतर कर इधर उधर बैठे थे। स्टेशन का नाम लिखा था बोर्ड पर सोनतलाई। नाम तो परिचित लगता है! वेगड़ जी की नर्मदा परिक्रमा की तीनों में से किसी पुस्तक में जिक्र शायद है। घर पंहुचने पर तलाशूंगा पुस्तकों में।[1]

दूर कुछ पहाड़ियां दीख रही हैं। यह नर्मदा का प्रदेश है। मध्यप्रदेश। शायद नर्मदा उनके उस पार हों (शुद्ध अटकल या विशफुल सोच!)। यहां से वहां उन पहाड़ियों तक पैदल जाने में ही दो घण्टे लगेंगे!
एक ट्रेन और आकर खड़ी हो गयी है। शायद पैसेंजर है। कम डिब्बे की। ट्रेन चल नहीं रही तो एक कप चाय ही पी ली – शाम की चाय! छोटेलाल चाय देते समय सूचना दे गया – आगे इंजीनियरिंग ब्लॉक लगा था। साढ़े चार बजे क्लियर होना था, पर दस मिनट ज्यादा हो गये, अभी कैंसल नहीं हुआ है।
बहुत देर बाद ट्रेन चली। अरे! अचानक पुल आया एक नदी का। वाह! वाह! तुरंत दन दन तीन चार फोटो ले लिये उस नदी के। मन में उस नदी को प्रणाम तो फोटो खींचने के अनुष्ठान के बाद किया!
कौन नदी है यह? नर्मदा? शायद नर्मदा में जा कर मिलने वाली तवा!

अब तो वेगड़ जी की पुस्तकें खंगालनी हैं जरूर से!
[फरवरी 9’2012 को लिखी यात्रा के दौरान यह पोस्ट वास्तव में ट्रेन यात्रा में यात्रा प्रक्रिया में उपजी है। जैसे हुआ, वैसे ही लैपटॉप पर दर्ज हुआ। मन से बाद में की-बोर्ड पर ट्रांसफर नहीं हुआ। उस समय मेरी पत्नी जी रेल डिब्बे में एक ओर बैठी थीं। उन्होने बताया कि जब सोनतलाई से ट्रेन चली तो एक ओर छोटा सा शिवाला दिखा। तीन चार पताकायें थी उसपर। एक ओर दीवार के सहारे खड़ा किये गये हनुमान जी थे। बिल्कुल वैसा दृष्य जैसा ग्रामदेवता का गांव के किनारे होता है। ]
[1] सोनतलाई को मैने अमृतलाल वेगड़ जी के तीनो ट्रेवलॉग्स – सौन्दर्य की नदी नर्मदा, अमृतस्य नर्मदा और तीरे-तीरे नर्मदा – में तलाशा। मिला नहीं। गुजरे होंगे वे यहां से? उनकी पुस्तकों में जबलपुर से होशंगाबाद और होशंगाबाद से ओँकारेश्वर/बड़वाह की यात्रा का खण्ड खण्ड मैने तलाशा। वैसे भी वेगड़ जी तवा के नजदीक कम नर्मदा के किनारे किनारे अधिक चले होंगे। सतपुड़ा के अंचल में तवा की झील के आस पास जाने की बात तो उनकी पुस्तकों में है नहीं। 😦
वेगड़ जी से 2016-17 में मैंने इस जगह की चर्चा की थी। पर उनकी स्मृति में यह स्थान था नहीं। … वैसे तवा का यहां सौंदर्य नर्मदा से कमतर नहीं लग रहा है!
खैर वेगड़ जी न सही, मैने तो देखा सोनतलाई। छानने पर पता चलता है कि यह इटारसी से लगभग 20-25 किलोमीटर पर है। सोनतलाई से तवा नदी करीब 40 किमी चल कर नर्मदा में होशंगाबाद से पहले बंद्रभान घाट में मिलती हैं।
मुझे कहने दीजिए कि इस बार इबारत पर चित्र भारी पड रहे हैं। इतने भारी कि ऑंखें झपकने से इंकार कर रही हैं।
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धन्यवाद।
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एक छोटा कुत्ता जबरी बड़े कुकुर से भिड़ा। जब बड़के ने झिंझोड़ दिया तो किंकियाया और दुम दबा कर एक ओर चला गया। बड़े वाले ने पीछा नहीं किया। सिर्फ विजय स्वरूप अपनी दुम ऊर्ध्वाकार ऊपर रखी, तब तक, जब तक छोटा वाला ओझल नहीं हो गया।
आप के
अंदर का लेखक उक्त पंक्तियों में अभिव्यक्त हो रहा है। यह दृश्य चौराहे पर गुंडे द्वारा एक गरीब की पिटाई की याद दिलाती है, जिस में कोई हस्तक्षेप नहीं करता सब कोई दर्शक बने रहते हैं। पेड़-पौधों, चिड़ियाओँ
और दूसरे जानवरों की भांति।
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तस्वीरों से आँखों को तरलता का भान हुआ ..मनो ..सच में प्रकृति के संग चल रहे हो हम ..
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अच्छा लगता है कोई काव्यमय टिप्पणी मिले! धन्यवाद सुमन जी।
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nadi ko aapne theek pahchana tawa hi hai. station ka naam hai baagra tawa.
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समग्र मनोरम!
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नदी तो तवा ही है , बेतवा हो नहीं सकती . फोटू बहुते चौचक है .
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बेतवा वहां नहीं है। तवा कुछ दूरी बाद नर्मदा में मिल जाती हैं होशंगाबाद (?) के आस पास। इसलिये कुछ शंका मन में थी।
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अच्छी प्रस्तुती , अच्छे चित्रों के साथ …….
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मनमोहक तस्वीरें…
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चित्र वाकई बहुत खूबसूरत है और नाम भी। इटारसी तक तो गये हैं, दोबारा जाना हुआ तो ये खूबसूरत जगह ध्यान जरूर खींचेगी।
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कई महत्त्वपूर्ण ‘तकनिकी जानकारियों’ सहेजे आज के ब्लॉग बुलेटिन पर आपकी इस पोस्ट को भी लिंक किया गया है, आपसे अनुरोध है कि आप ब्लॉग बुलेटिन पर आए और ब्लॉग जगत पर हमारे प्रयास का विश्लेषण करें…
आज के दौर में जानकारी ही बचाव है – ब्लॉग बुलेटिन
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