रघुबीर बिन्द का वर्मीकल्चर उद्यम

रघुबीर बिन्द मुझे गिर्दबड़गांव की सड़क के किनारे दिखे। वे कच्चे गोबर की सतह पर पानी का छिड़काव कर रहे थे। साथ में एक और व्यक्ति था। आसपास के गेंहूं,सरसों के खेतों और ईंट भट्ठा की गतिविधि से अलग तरह का काम दिखा मुझे। मैने साइकिल रोक ली।

उन सज्जन (बाद में परिचय दिया कि रघुबीर बिन्द हैं) ने बताया कि महीना भर पहले उन्होने वर्मीकल्चर की तीन महीने के ट्रेनिंग पूरी की है। उसके बाद इस प्लाण्ट को लगाने में जुट गये। करीब एक लाख का खर्च किया है। गोबर कुछ अपना उनका है और कुछ 2200रुपये प्रति ट्रेक्टर-ट्रॉली दाम पर खरीदा है। अभी केचुये के लिये 25-30 हजार का खर्चा और होगा। ढाई महीने का केचुये की खाद बनने का साइकल है। तीन महीने बाद जो खाद तैयार होगी वह मार्किट में 600रुपया बोरी के भाव से जा रही है। एक बोरी में चालीस किलो खाद होगी।

रघुबीर ने मुझे पूरी प्रक्रिया बतायी जैविक खाद की। अभी गोबर के बेड को वे नम कर ठण्डा कर रहे हैं। नमी में लगभग 7-10 दिन गोबर पड़ा रहेगा। उसके बाद उसे ईंटों की बनी 16 पिट्स में केचुये के बीज मिला कर छोड़ देंगे। लगभग पचास दिन में केचुओं की गतिविधि से जैविक खाद तैयार होगी।

रघुबीर बिंद के वर्मीकल्चर के पिट

जैविक खाद की मांग के प्रति वे आश्वस्त दिखे। पास के बाजारों – कछवां, गोपीगंज आदि में खपत हो जायेगी। उनका अन्दाज है कि साल भर में 5-6 साइकल (पारी) खाद वे बना लेंगे। एक पिट में प्रति साइकल करीब 20-25 बोरी खाद बनेगी।

मैं मोटा अनुमान लगाता हूं तो साल में लगभग 10-12 लाख का टर्नओवर होगा उनके उद्यम से। लगभग तीस पैंतीस हजार रुपया महीना की अमदनी तो हो जानी चाहिये (संकोचपूर्ण – conservative अनुमान के आधार पर)। इस पूरे उद्यम में अनेक इफ़ एण्ड बट्स हैं। पर इफ़-एण्ड-बट्स के आधार पर सपने नहीं बोये जाते और कोई उद्यम नहीं खड़ा किया जाता।

रघुबीर बिन्द आशा और उत्साह से लबालब दिखे। उन्होने अपना मोबाइल नम्बर भी (उनके अपने इनिशियेटिव पर) मुझे दिया कि अगर भविष्य में कुछ और पूछना चाहूं तो पूछ सकूं।

लोग रोजगार की विषम दशा की बात करते हैं। इस बार का पूरा चुनाव उसी “काल्पनिक” मुद्दे पर ठेला जाने का जोर है। रघुबीर बिन्द जैसे लोग, जो गांव देहात में भी रोजगार के उभरते प्रकार को खोज-तलाश रहे हैं, भविष्य की आशा हैं।

सवेरे का साइकिल भ्रमण मुझे अनायास प्रसन्न कर गया। जय हो गांव-देहात की नई पीढ़ी की उद्यमिता!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “रघुबीर बिन्द का वर्मीकल्चर उद्यम

  1. मन ख़ुशी से भर गया ये पोस्ट पढ़ कर. भारत की आर्थिंक प्रगति रघुबीर बिन्द जैसे उद्यमी लोगों के चलते ही होगी! जैसा आपने दूसरी पोस्ट में कहा, सरकारी नौकरी की मरीचिका के पीछे न भाग कर स्वयं कमाना और दूसरे ३-४ और लोगों को रोज़गार देना ही प्रगति है! रघुबीर बिन्द को अनेक शुभ कामनाएँ !!

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  2. सुन्दर प्रस्तुति । शुभकामनाएं मित्र को।

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  3. hakikat yahi hai ki gav aur dehat ke udyamshil log gao aur dehat me isi tarah ke udyog laga rahe hai aur jinko politics ladani hai vahi berojagari aur haramkhori ki bat karate hai / mera gaon aur shahar dono jagah se nata hai aur dono jagah gaon aur shahar me ana jana laga rahata hai / shahr se jyada mujhe gaon bahut pasand hai / is tarah ki udyam shilata ki bahut karurat hai jaisa ki apane wormiculture ki bat ki hai / isi tarah ka ek udyog mujhe seep se moti banane ka mila jo gao me kiya ja sakata hai / vastav me karanewala hona chahiye aur rajniti se dur rahana chahiye / modi sarakar ne isi tarah ki yojnaye lane ka prayas kiya hai ab yah logo par nirbhar karata hai ki ki ve kya karana chahate hai /

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