कोरोना की मानसिक थकान दूर करने के काम

थक गये हैं कोरोना से। पहले पहल तो घर के बाहर के दरवाजे को रोज सेनिटाइजर लगा लगा कर दो तीन बार मला जाता था। दसमा दूध ले कर आती थी तो दूध के बर्तन को डिस्पोजेबल नेपकिन से पकड़ कर दूध उंडेला जाता था अपने भगौने में। सब्जी वाले से सब्जी खरीद कर चार पांच घण्टा बाहर रख दी जाती थी, जिससे वायरस थक हार कर उसे छोड़ चला जाये। कल्पना में हर जगह कोविड-19 के वायरस गेंद ही नजर आते थे।

कोरोना बचा, बाकी सब कुछ होल्ड पर चला गया। परिसर में जंगली घास बढ़ने लगी। बसंत धोबी को इस्त्री करने के कपड़े देने में आनाकानी होने लगी। कोई भी बाहर से आये तो उसका हाथ पहले सेनीटाइज किया जाने लगा। साबुन और हैण्डवाश दे कर उन्हे पर्याप्त कोरोनामुक्त कराने का मानसिक आश्वासन पाने लगे हम। फिर भी मन में दगदग बनी रहती थी कि कहीं चिपक तो नहीं गया कोरोना।

अब लगता है उसमें से यद्यपि बहुत कुछ जरूरी था; पर कुछ खालिस ओवर रियेक्शन था।

तय किया कि घास को साफ कर घर के पास के और भाग में खडंजा बिछाया जाये

मोनोटोनी तोड़ने के लिये तय किया कि बेतरतीब उग आयी घास और कांग्रेस घास को साफ कराया जाये। घर के सामने के भाग में खडंजा बिछाया जाये जिससे नियमित साफसफाई रखने में झंझट कम हो सके। इसी बहाने गांव के दो-चार लोगों की दिहाड़ी बन सकेगी, जो अभी लॉकडाउन के चक्कर में बिना काम घूम रहे हैं।

पत्नीजी ने कहा – कोई धर्मार्थ कार्य करने की बजाय इसी मद में खर्च कर परिवेश भी ठीक करा लिया जाये और काम की तलाश कर रहे गांव वाले जरूरतमंद बंधुओं की सहायता भी हो जाये।

सो कोरोना फेटीग (मानसिक थकान, ऊब) को मिटाने के लिये कल से यह काम कराया जा रहा है। पत्नीजी को तीन-चार काम करने वालों को नाश्ता देने, पानी-चाय-बिस्कुट का इंतजाम करने और उनपर सवेरे आते ही हाथ साबुन से धोने की गुहार लगाने का आनंद मिलने लगा है। वे उनपर अपनी कोरोना विषयक जानकारी का प्रवचन दे लेती हैं। बिना प्रवचन दिये, उनकी सेहत पर भी बुरा असर पड़ रहा था। 😆

अकेले टीवी के सामने बैठने की बजाय उन लोगों से पर्याप्त सोशल डिस्टेंस बनाते हुये भी काम कराना बेहतर अनुभव है। कल तो सफाई कराते समय एक पांच फुट का सांप भी निकल आया। बहुत डेन्जरस टाइप नहीं लग रहा था पर इधर उधर डोल जरूर रहा था। उसे अवसर दिया गया कि कहीं बाहर चला जाये। जब उसमें बहुत यत्न कर भी सफल नहीं हुये तो उसका वध करने का निर्णय लिया गया। बेचारा!

उसके निपटारे में भी एक घण्टा व्यतीत हुआ।

पांच फुट से ज्यादा लंबा सांप

पता नहीं, गांव-पड़ोस के लोगों को एम्प्लॉय कर यह काम कराना मोदी-जोगी जी की लॉकडाउन अवधारणा का कितना उल्लंघन है। पर अच्छा खूब लग रहा है। टीवी देखने से ज्यादा मन रम रहा है।

सवेरे बगल के गांव का एक दम्पति आता है सब्जी ले कर।

सवेरे बगल के गांव का एक दम्पति आता है सब्जी ले कर। कुछ उनके खेत का उगाया है और कुछ मण्डी से। ज्यादा जरूरत नहीं है सब्जी की। पर उनसे खरीद ली जाती है। उसमें भी विचार यही है कि भले ही सब्जी थोड़ी ज्यादा ही बने, उन लोगों का कुछ फायदा तो हो सके। इस लॉकडाउन के समय में बेचारे बाजार तक तो जा नहीं सकते अपनी सब्जी ले कर!

कोरोना थकान दूर करने के लिये शहराती लोग योगा-शोगा कर, किताब पढ़ या रस्सी टाप कर अपनी फोटो सटा रहे हैं सोशल मीडिया पर। हमारे पास तो यही गतिविधि है। उसी के फोटो ही सही! 😆


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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