लम्बी जटाओं वाला साधू #गांवकाचिठ्ठा

मई 31, 2020, विक्रमपुर, भदोही।

द्वारिकापुर के गंगा तट पर वह पहले नहीं दिखा था। लेकिन पास खड़े एक व्यक्ति ने जिस प्रकार से बातचीत की उससे, लगा कि इस इलाके का जाना पहचाना है।

वह था अलग प्रकार का साधू। एक लंगोटी पहने। मैंने दूर से देखा तो वह स्नान करते हुये गंगा जी में डुबकी ले रहा था। जब उसके पास पंंहुचा तो अपना गमछा कचार (रगड़-पटक कर साफ कर) रहा था किनारे पर पड़ी पत्थर की पटिया पर। कोई साबुन का प्रयोग नहीं कर रहा था। पास में कमण्डल था। चमचमाता हुआ। लगता है साधू जी उसे चमकाने में बहुत मेहनत करते हैं।

साधू की जटायें लट पड़ी हुयी और बहुत लम्बी थीं। दाढ़ी भी बहुत लम्बी। दाढ़ी तो एक गुच्छे में कई बार लपेट कर बांध रखी थी। बाल खुले थे। मुझे फोटो लेते देख पास खड़े नित्य के स्नानार्थी ने कहा – तन्नी, मोंहवा ऊपर कई लअ। (जरा मुंह ऊपर कर लीजिये)।

गमछा कचार रहा था वह साधू

साधू ने ऊपर देखा। तीक्षण आंखें। उसके व्यक्तित्व में कुछ था जो आकर्षित कर रहा था। वह बोला – फोटो लेना है तो खड़ा हो जाता हूं।

साधू की जटाओं की लम्बाई देखें!

खड़ा होने पर उसकी जटाओं के घनत्व और लम्बाई, दोनो का पता चला। लम्बे कद का कृषकाय साधू तो था ही वह। लम्बे हाथ पैर। आजानुभुज! बाल उसकी लम्बाई से ज्यादा लम्बे थे। तरह तरह के साधू हैं भारतवर्ष में। यह अलग ही प्रकार का था। उसने मुझे चित्र लेने दिया और उसके बाद स्वत: उसी सहजता से, जिससे खड़ा हुआ था, पुन: बैठ कर गमछा कचारने लगा। उसके बाल आपस में गुंथ कर लट बन गये थे, पर था वह सफाई पसंद। शरीर और कमण्डल साफ सुथरे थे। और तो कुछ था ही नहीं उसके पास। कोरोना वायरस का समय है। साधुओं को भी मास्क पहनना या रखना निर्धारित होना चाहिये। भारतीय साधू समाज को पहल करनी चाहिये। पर जितने साधू भारत में हैं, साधुओं के उतने प्रकार हैं। कोई साधू किसी समाज का फतवा मानेगा या नहीं मानेगा, कहा नहीं जा सकता। सिंहों के लेंहड़े नहीं, हंसों की नहिं पांत; लालों की नहिं बोरियां, साधू न चले जमात। मुझे नहीं लगता कि इस छाप के साधू पर कोई दिक्तात (Dictat) चलेगा।

मैंने साधू से कुछ बात करने की कोशिश की। उसने शायद सुना नहीं, या सुना अनसुना कर दिया। मैं वापस चला आया।

घर आ कर उस साधू के चित्र दिखाये तो मेरी पत्नी जी और मेरे साले साहब (शैलेंद्र दुबे) चाय पीते पीते स्वामी विशुद्धानंद, गोपीनाथ कविराज, लाहिड़ी महाशय, परमहंस योगानंद और स्वामी राम से होते हुये हिमालय के अनेकानेक अजब गजब साधुओं की चर्चा कर गये। वे साधू जो टाइम और स्पेस की सीमाओं और नियमों से परे होते हैं। वे जो भौतिकी, रसायन और विज्ञान की अन्य शाखाओं के नियमों के परे हैं।

मुझे घर में कहा गया है कि इस साधू के बारे में और पता करने की कोशिश करूं। वैसे साधू का व्यक्तित्व था भी जिज्ञासा उद्दीप्त करने वाला।


[मेरी पत्नीजी और शैलेंद्र प्रभावित थे इन साधू जी का चित्र देख कर। मुझे वह विलक्षण व्यक्ति लगा; सामान्य से कहीं अलग। पर मेरे साथ में द्वारिकापुर जाने वाले राजन भाई का आकलन था – हमके त ऊ गंजेड़ी लागत रहा। गांजा पिये रहा। टाइट! (मुझे तो वह गंजेड़ी लग रहा था। गांजा पिये, टाइट!)

अलग अलग लोग, अलग अलग आकलन। वैसे साधुओं में गांजा की चिलम सेवन आम है। उससे उनके चरित्र को अच्छा या खराब कहना सही बात नहीं होगी।]


पूर्वांचल में प्रवासी आये हैं बड़ी संख्या में साइकिल/ऑटो/ट्रकों से। उनके साथ आया है वायरस भी, बिना टिकट। यहां गांव में भी संक्रमण के मामले परिचित लोगों में सुनाई पड़ने लगे हैं। इस बढ़ी हलचल पर नियमित ब्लॉग लेखन है – गांवकाचिठ्ठा
https://gyandutt.com/category/villagediary/
गांवकाचिठ्ठा

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

3 thoughts on “लम्बी जटाओं वाला साधू #गांवकाचिठ्ठा

  1. maine kai nami girami sadhuo aur sadhviyo ka ilaj kiya hai aur unake bare me yah ek bat kahunga ki shradhdha pani jagah hai aur dharm apani kagah / kuchch sadhu chilam baz mile hai / mai inako ilaj ke drastikon se ek manav hi kahunga jo ham jaise hi hai /

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