मैं जानता हूं कि पूरे दृष्य में गजब की रागदरबारियत थी। पर मैं श्रीलाल शुक्ल नहीं हूं। अत: उस धाराप्रवाह लेखनी के पासंग में भी नहीं आती मेरा यह ब्लॉग पोस्ट।
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पद्मजा के नये प्रयोग
गांव में रहने के कुछ स्वाभाविक नुकसान हैं; पर यहां सीखने को शहर के बच्चे से कम नहीं है। शायद वह जो सीख पाये; वह शहरी बच्चे कभी अनुभव न कर सकें। वह भाषा, मैंनरिज्म और आत्मविश्वास में उन्नीस न पड़े; बाकी सब तो उसके पास जो है, वह बहुत कम को मिलता होगा अनुभव के लिये!
विवस्वान पांड़े की ऑनलाइन क्लासें, कोडिंग, तबला और पेण्टिंग
कला का काफी हिस्सा भी आगे जाकर एआई के जिम्मे हो सकता है। पर विवस्वान को जो सशक्तता अपनी सोच विकसित करने में मिल रही है; वह लम्बे समय तक एआई से रिप्लेस नहीं हो सकती।
