मूलचन्द, गीता पाठ और भजन गायन

कई महीनों से सवेरे योगेश्वरानन्द आश्रम के कुंये के चबूतरे पर मूलचन्द पाठ करने आते हैं। उन्होने बताया कि गीता के नौंवे अध्याय का पाठ करते हैं; “जिसको पढ़ने से आदमी नरक नहीं जाता है”। पूछने पर वे श्लोक नहीं बता पाते भग्वद्गीता के। जो एक श्लोक वे कहते हैं, वह भग्वद्गीता में नहीं है। उनका कहना है कि हिन्दी अनुवाद पढ़ते हैं। पर जो वे बताते हैं, वह बहुत गड्ड-मड्ड है। यह भी बोलते हैं मूलचन्द कि उनकी गीता की प्रति का पन्ना फट गया है।

खैर मूल बात यह नहीं कि मूलचन्द का भग्वद्गीता से कैसा परिचय है। हिन्दू धर्म में विविध स्तर के विविध स्कूलों के छात्र हैं। मूलचन्द जिस कक्षा में हैं, हम उसमें नहीं हैं। बस। यह नहीं कह सकते कि हम उनसे श्रेष्ठ कक्षा में हैं।

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अपनी साइकिल के साथ योगेश्वरानन्द आश्रम से लौटने को तैयार थे मूलचन्द। तब उनसे हम लोगों की बात हुई।

मुझे रामकृष्ण परमहंस की वह कथा याद आती है जिसमें एक द्वीप पर रहने वाले तीन साधू, मात्र श्रद्धा के सहारे “हम तीन, हमारे तीन” मन्त्र का जाप करते करते नदी को पैरों से चलते हुये पार कर आये जबकि सही मन्त्र सिखाने वाले गुरू जी को मन्त्र शक्ति पर विश्वास नहीं था। उन्होने द्वीप पर आने जाने के लिये नाव का प्रयोग किया। सारा खेल श्रद्धा का है।

हम लोग नाव का प्रयोग करने वाले छात्र हैं हिन्दू धर्म के। मूलचन्द अनगढ़ मन्त्रजाप से पार उतरने वाले हैं।

यो यत् श्रद्ध:; स एव स:। जिसकी जैसी श्रद्धा है, वह वैसा होता है।

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मूलचन्द की बात सुनने और और लोग भी जुट गये।

किसी विद्वान ने (सम्भवत:) गीता के नवें अध्याय – राजविद्या-राजगुह्ययोग के बारे में बताया होगा मूलचन्द को। “यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसे शुभात”। जिसे जानने पर व्यक्ति बन्धन मुक्त हो जाता है। मोक्ष शायद कठिन कॉसेप्ट हो; सो उन विद्वान ने पौराणिक अन्दाज में यह कहा हो कि इस अध्याय के अध्ययन से नरक नहीं जाता आदमी।

खैर जो भी रहा हो; मूलचन्द भोर में गंगा स्नान कर कुंये की जगत पर अकेले जो भी पाठ करते हों, उसको सुनने वाले कृष्ण ही होते होंगे। मूलचन्द जी से उनके पाठ के विषय में और कुछ नहीं पूछा हमने।

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मुझसे आगे चल रहे थे मूलचन्द। अचानक भजन गाने लगे।

वापसी में अपनी साइकिल पर मूलचन्द मुझसे आगे चल रहे थे। अचानक वे कुछ गाने लगे। पीछे से मैने आवाज लगाई – बढ़िया गा रहे हैं। क्या है यह?

मूलचन्द ने रुक कर भजन सुनाया। बताया कि एक जोगी गाता था। “हम ओके सौ रुपिया देहे रहे। ओसे सुना और सीखा भी (मैने उसे 100रुपया दिया। उससे सुना और सीखा भी)”। पगडण्डी पर खड़े हो मैने मूलचन्द का भजन अपने मोबाइल से रिकार्ड किया। (शायद) कौशल्या माता किसी साधू से पूछती हैं – कईसे बाटल बा बबुआ हमार, तनी बतईहे जईहअ (वन में मेरा बच्चा कैसा है? उसका छोटा भाई, उसकी पत्नी सीता कैसी हैं, जरा बताये जाओ)। बड़ा ही मार्मिक। उस समय तो मात्र रिकार्ड कर रहा था मैं; पर घर पर आ कर सुना तो आंखें नम जरूर हो गयीं। आप भी सुनें मूलचन्द जी का भजन गायन –

मूलचन्द ने अपने बारे में बताया। पास के गांव पिपरिया के हैं। “ऊ सामने ईंट-भट्ठा देखात बा। उहीं काम करत रहे। अब काम छुटि गबा। एक भईंस रही, उहौ बेचि दिहा (वह सामने भट्ठा दिख रहा है। वहां काम करता था।अब काम छूट गया। एक भैंस थी। वह भी महीना भर पहले बेच दी।)” । मूलचन्द की विपन्नता स्पष्ट हो गयी। घर में शादी भी पड़ी है।

विपन्नता और जिम्मेदारियों में यह व्यक्ति टूटने की बजाय गंगा स्नान, गीता पाठ और भरथरी के नाथ पन्थी जोगियों के भजन का सहारा ले रहा है।

गजब है मूलचन्द। गजब है हिन्दू समाज!


यह पोस्ट फेसबुक नोट्स में मई 2017 में पब्लिश की थी। अब मुझे पता चल रहा है कि अक्तूबर 2020 से फेसबुक ने नोट्स को दिखाना बंद कर दिया है। यह बहुत ही दुखद है। मुझे वहां से निकाल कर यह ब्लॉग पर सहेजनी पड़ रही है पोस्ट। :-(


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “मूलचन्द, गीता पाठ और भजन गायन

  1. गांव की ऐसी जानकारी केवल आप ही दे सकते हैं।बहुत सुंदर और मन भावन जानकारी।

    Liked by 1 person

  2. जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए,
    रामजी करेंगे बेड़ा पार,
    सीताराम सीताराम कहिए!!

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