9 सितम्बर 2021:
कोई व्यक्ति, 10-15 हजार किलोमीटर की भारत यात्रा, वह भी नंगे पैर और तीन सेट धोती कुरता में करने की ठान ले और पत्नी/परिवार की सॉलिड बैकिंग की फिक्र न करे – यह मेरी कल्पना से परे है। मैं तो छोटी यात्रा भी अपनी पत्नीजी के बिना करने में झिझकता हूं।
कल प्रेम सागर के छिले पांव वाली पोस्ट पर पर एक कविता की पंक्ति टिप्पणी में दी आदरणीय दिनेश कुमार शुक्ल जी ने – रेत में जब जब जले है पांव घर की याद आई है।
ये पंक्ति माहेश्वर तिवारी जी की कविता “घर की याद आई” में है। पूरी कविता नीचे है –
धूप में
जब भी जले हैं पाँव
घर की याद आई
नीम की
छोटी छरहरी
छाँह में
डूबा हुआ मन
द्वार का
आधा झुका
बरगद : पिता
माँ : बँधा आँगन
सफर में
जब भी दुखे हैं घाव
घर की याद आई

"सफर में जब भी दुखे हैं घाव; घर की याद आई" - कितना सुंदर!!! दिनेश जी और माहेश्वर जी कवि हैं। उनमें सूक्ष्म सम्वेदना का होना और उसका काव्य में प्रकटन होना स्वाभाविक है। पर एक कांवरिया किस प्रकार से लेता है पैर के घाव को? मैंने अपने घर के पास से संगम से बनारस जाते कांवरियों को देखा है। कई धीमे धीमे लंगड़ाते चलते हैं। उनके पैर में कपड़े बंधे होते हैं। पसीने और घर्षण से उनकी जांघों में फंगल इंफेक्शन होता होगा। पर उनके सामने लक्ष्य केवल बनारस तक पंहुचने का होता है। प्रेम सागर पाण्डेय को तो पूरा भारत चलना है!
प्रेम सागर ने बताया कि उनके जांघ में पसीने और रगड़ से घाव हुआ था। दो तीन बार मलहम और पाउडर लगाने से अब काफी ठीक है। कल वे अमरकण्टक की ओर निकलेंगे। यहां से पैंतीस किलोमीटर पर कोई जगह है, वहां तक जाने का प्रोग्राम है।
उनको पैर पिराने पर घर की याद नहीं आती? मैं प्रेम सागर से इस बात को दूसरी तरह से पूछता हूं। उनका परिवार उनकी कांवर यात्रा को किस प्रकार से लेता है? उनकी पत्नी किस प्रकार से लेती हैं? प्रेम सागर जी ने बताया कि परिवार के लोग पहले नाराज थे। पर अब समझ गये हैं। उनकी पत्नी भी समझ गयी हैं। फोन पर समाचार लेती रहती हैं। उनके बारे में मेरा लिखा भी प्रेम जी अपने बेटा बेटी को भेजते हैं। वे अपनी माँ को बताते हैं। उनके अनुसार अब परिवार के लोग सहज भाव से लेते हैं। “आपको यात्रा करना है तो कर आइये” वाली सोच उनमें आ गयी है।
मुझे लगता है प्रेम सागर अपनी धुन और जिद के पक्के होंगे। परिवार के अन्य सदस्यों की नाराजगी का ध्यान कर कोर्स करेक्शन उनकी प्रवृत्ति का हिस्सा नहीं होगा। ऐसे व्यक्तित्व की मैं गहरे से कल्पना करना चाहता हूं; पर ऐसा व्यक्ति मेरी जान पहचान में नहीं है।
कोई व्यक्ति, 10-15 हजार किलोमीटर की भारत यात्रा, वह भी नंगे पैर और तीन सेट धोती कुरता में करने की ठान ले और पत्नी/परिवार की सॉलिड बैकिंग की फिक्र न करे – यह मेरी कल्पना से परे है। मैं तो छोटी यात्रा भी अपनी पत्नीजी के बिना करने में झिझकता हूं। अब कोई रेलवे का किसन सिंह, राम सिंह, छोटेलाल या रामलखन तो है नहीं जो मेरी नित्य की जरूरतों की फिक्र कर सके। पत्नीजी नहीं होंगी तो सवेरे नहाते समय कच्छा बनियान तौलिया कहां से लूंगा?! और पैर में अगर इंफेक्शन हो गया तो किस जगह कौन सी दवा लगानी है, यह बताने के लिये भी तो आर्धांगिनी की दरकार है। … देखिये शंकर भगवान आपकी भक्ति तो सही है, पर आदमी को प्रेम सागर पांड़े जैसा स्वयम को कसने का मन आप कैसे दे देते हैं!?
शंकर जी के भक्त हैं ही उलट। आखिर रावण को ही देख लें – कैलाश पर्वत उपार कर लंका लिये जा रहा था। आज होता तो शायद सारे ज्योतिर्लिंग सीलोन में उठा ले जाने की सोच कर काम करना प्रारम्भ कर चुका होता। … मार्कण्डेय ऋषि को देख लीजिये, जो आव देखा न ताव शिवजी की पिण्डी पकड़ कर ही चिपक गये। ये लोग सामान्य सेंसिटिविटी और सेंसिबिलिटी के परे हैं। प्रेम सागर भी उसी तरह के हैं। उन्हें माहेश्वर तिवारी या दिनेश कुमार शुक्ल जी की कविता की कोमलता में नहीं बांधा जा सकता।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
कल मैंने प्रवीण दुबे जी से उनके रींवा की पोस्टिंग के बारे में बात की। वे भोपाल में थे। वन विभाग से सेवानिवृत्त हो कर इंदौर में रह रहे हैं। उन्होने कहा कि भोपाल से इंदौर पंहुच कर वे अपनी रींवा पोस्टिंग के बारे में जानकारी (चित्र) देंगे। उसपर एक लेख बनता है एक दो दिन बाद।
मैंने प्रेमसागर से उनकी तीर्थाटन की योजनाओं के बारे में बात की। यह स्पष्ट हो गया कि उनके मन में द्वादश ज्योतिर्लिंग भ्रमण और उसके भौगोलीय फीचर्स/कठिनाईयों की सूक्ष्म जानकारी नहीं है। इस बात को और अपनी आशंकाओं को मैं अपनी पत्नीजी से शेयर करता हूं। उनका सही जवाब है – “प्रेमसागर अगर तुम्हारी तरह सूक्ष्म जानकारी और प्लानिंग के फेर में पड़ते तो घर पर ही बैठे रहते। रींवा और शहडोल के जंगलों में नहीं हिलते!”
प्रेम सागर जी ने कल वन विभाग के रींवा के कर्मियों के साथ चित्र खिंचाया। वह मैं नीचे प्रस्तुत कर देता हूं।


चित्र में प्रेम सागर (कुरता धोती में) हैं। अन्य बांये से हैं – सुनील सिंह, लालू कुशवाहा, शंकर रमन और शिव बहादुर सिंह जी हैं। ये सभी किसी न किसी प्रकार से द्वादश ज्योतिर्लिंग यज्ञ में सहभागी बने हैं! प्रेमसागर जी ने एक और सज्जन – राजेश्वरी पटेल जी का चित्र भी भेजा है। उसको भी मैं साइड में लगा दे रहा हूं। बाद में कभी इस यात्रा का दस्तावेजीकरण हो तो सनद रहे!
इन सभी लोगों ने प्रेम सागर जी की बहुत सहायता की है। और अभी रास्ते में जाने कितने सामान्य-उत्कृष्ट-विलक्षण लोग जुड़ेंगे! … तुम अपनी कहो जीडी, शंकर भगवान तुम्हे कब तक और किस प्रकार से जोड़े रखेंगे!
आज सवेरे प्रेमसागर निकल लिये हैं अमरकण्टक के लिये – वाया शहडोल। उनको आज मैं अपनी अस्वस्थता के कारण फोन नहीं कर पाया। सामान्यत: पौने छ बजे करता हूं। मैंने फोन नहीं किया तो उनका फोन आया। सात बजे। उन्हें खांसी आ रही थी। शायद सर्दी लग गयी है। पर चले वे जोश में ही हैं। आज पैंतीस किलोमीटर आगे चल कर रात्रि विश्राम का प्लान है। आगे की योजना भी उनके मन में साफ होती जा रही है। अमरकण्टक से वे ॐकारेश्वर की ओर निकलेंगे।
आगे यह मानसिक यात्रा जारी रहेगी। कल फिर नयी पोस्ट होगी सवेरे इग्यारह बजे। इस बीच कुछ खास रहा तो वह माइक्रोब्लॉगिंग के रूप में फेसबुक या ट्विटर पर पोस्ट होगा।
आप कृपया ब्लॉग, फेसबुक पेज और ट्विटर हेण्डल को सब्स्क्राइब कर लें आगे की द्वादश ज्योतिर्लिंग पदयात्रा की जानकारी के लिये। ब्लॉग – मानसिक हलचल ट्विटर हैण्डल – GYANDUTT फेसबुक पेज – gyanfb |
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शिवभक्तों को उनके घर वाले भी भगवान शंकर के सहारे छोड़ देते हैं। जब आराध्य ही औघड़ बनाया है तो कहाँ की योजना, कहाँ की सूक्ष्मता। मुख्य कार्य तो पार्वती का है कि कितना बाँध लें शिवजी को।
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विचित्र हैं शिव. बंधने को बेल की तीन पत्ती से बंध जाते हैं… अन्यथा किसी के बस की बात नहीं!
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वेद व्यास जी ने वेदों की रचना कर सनातन वैदिक धर्म की स्थापना की।
आपका प्रेमसागर पांडे जी की द्वादश ज्योतिर्लिंग की पैदल-पैदल शिवयात्रा का ट्रैवलाग भी द्वादश ज्योतिर्लिंग की महिमा को प्रेमसागर जी के माध्यम से पुनः स्थापित करने वाला है, सभी महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों का सचित्र वर्णन करते रहिएगा।
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देखिए, क्या बनता है – गुड़ या गोबर. 😁
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ट्रैवलाग की रोचकता बढ़ती जा रही है।
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मेरी पत्नीजी कहती हैं कि प्रेम सागर जी की लोकप्रियता बढ़ती जायेगी। एक दिन वे महान संत हो जायेंगे और तुम ब्लॉग लिखते रह जाओगे! 😀
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सचमुच अद्भुत साहस और दृढ़ता की पराकाष्ठा,! हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा और वो भी अकेले….कोई चौपाल पर बैठकर बातें हांकने जैसा नहीं है! ऐसे निर्णय के लिए सचमुच वज्र का कलेजा चाहिए.
पढ़कर अभिभूत हूँ। इस यात्रा के पश्चात वो आत्मविश्वास से बेहसाब लबरेज होंगे और शिव अगर भोले हैं तो प्रेम जी के लिए उन्हें आना ही होगा। ( संभव है उनकी पदयात्रा में वो किसी का रूप धर कर उनकी मदद या बचाव के लिए परोक्ष रूप से आ भी जाएं….)
भोले जी की महिमा अपरंपार…और प्रेमजी का दृढ़ निश्चय भी शब्दों से परे..!
आपका ऊपर पंक्तियों में इसका जिक्र करना की ” अब कोई किशन सिंह तो है नही जो संभालेगा….” में वक्त के साथ समायोजन करना दर्शाता है..जो जीवन मे बेहद जरूरी है। कई तो इज़लिये भी निराश हो जाते हैं कि अब किशन सिंह नहीं है तो कैसे जीवन चलेगा..!
बहुत सुंदर…!
आपके ब्लॉग दिल और जीवन के नजरिये को छूकर निकलते हैं…आभार..💐
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बहुत धन्यवाद टिप्पणी के लिए – शानदार टिप्पणी से दिन बन जाता है. 😊
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