8 सितम्बर 2021:
कॉर्डियॉलोजिस्ट ने 12-15 टेस्ट लिखे। हर जगह टेस्ट करने वालों को यह बताया कि यह मेरा भतीजा है (वे डाक्टर साहब भी संयोग से पांड़े थे), इसका टेस्ट फ्री में कर दिया जाये। टेस्ट के बाद पंद्रह दिन की दवायें भी उन्हें फ्री में दीं और उन्हें पैदल चलने का एक अनुशासन बताया। पहले दिन थोड़ा और उत्तरोत्तर बढ़ाते हुये। प्रेम सागर ने वही किया। और अब चलने की धुन इतनी हो गयी है कि 12 ज्योतिर्लिंग पदयात्रा कर रहे हैंं! … प्रेमसागर के लिये शिव जी ने ब्रह्मा जी का लिखा उलट दिया है!
दो सितम्बर को बनारस से बाबा विश्वनाथ को जल चढ़ाने के बाद नित्य चले हैं प्रेम सागर। कल शाम रींवा पंहुचे। पैदल चलने के हिसाब से आकलन करें तो चालीस-पैंतालीस किलोमीटर प्रतिदिन तय किया। विंध्याचल की खड़ी चढ़ाई पार की। बारिश में भीगे और बचने को दौड़ भी लगाई। मध्यप्रदेश में प्रवीण दुबे जी और वन विभाग के अधिकारियों-कर्मियों से सहयोग भरपूर मिला; ठहरने और आतिथ्य की जो सुविधा मिली, शायद उसकी कल्पना नहीं की होगी यात्रा प्रारम्भ करते समय। पर चलना तो उन्हें ही था। अकेले।
आज सवेरे प्रेम सागर जी से बात हुई। वे वन विभाग के रेस्ट हाउस में हैं। आराम की सुविधा है। आज वे विराम कर रहे हैं यात्रा के दौरान। उन्होने बताया कि पांव छिल गये हैं। कोई पाउडर ले कर लगाया है। एक दिन के आराम से पांवों की दशा ठीक हो जाने की उम्मीद है उन्हें। दिन में आसपास निकल कर देखेंगे।
रींवा के बारे में वे कहते हैं कि दृश्य बहुत अच्छा है। कल शहर में आने के लिये उन्हें पांच सात किलोमीटर डी-टूर करना पड़ा हाईवे से। पर महसूस नहीं हुआ। शहर साफ है और सड़कें अच्छी हैं। वे आसपास के चित्र ले कर भेजने का प्रयास करेंगे।
कल दिन में इग्यारह बजे देवतलाब के शिव मंदिर में थे। यह प्राचीन मंदिर है। प्रेम सागर ह्वाट्सएप्प मैसेज में बताते हैं कि अपने वनवास के दौरान राम यहां आये थे और शिव जी की पूजा की थी – “देव तालाब का पुरातन मंदिर। कहा जाता है कि राम लक्ष्मण सीता यहाँ आ कल बाबा का पूजा किए थे। हर हर महादेव!”
देवतलाब मंदिर के अधिकांश चित्र, जो प्रेम सागर जी ने भेजे हैं, धुंधले हैं। उनका हाथ चित्र लेते समय हिल जाता है। मैं इस दुविधा में रहता हूं कि उनके चित्र का प्रयोग करूं या गूगल मैप के चित्रों का स्कीन शॉट। फिलहाल मैं मुख्यत: उन्ही के चित्र पोस्ट कर रहा हूं।
देवतलाब शिव मंदिर के बारे में सर्च करने पर पत्रिका में छपी एक रोचक किंवदंति सामने आयी। महर्षि मारकण्डेय यहां शिव जी के दर्शन के लिये हठ कर साधना कर रहे थे। तब शंकर भगवान ने विश्वकर्मा जी को रातोंरात मंदिर खड़ा करने और शिवलिंग स्थापना का आदेश दिया। यह मंदिर, किंवदंति के अनुसार रातोंरात बना।
महर्षि मारकण्डेय की हठी शिव साधना की कथा कैथी (छोटी काशी, बनारस के पास गंगा-गोमती संगम के समीप) की भी है। कैथी का मेरा अनुभव भी कांवरियों को ले कर ही है!
मारकण्डेय जी के पिता को बताया गया था कि बालक (मारकण्डेय) पैदा तो हुआ है, पर बारह (उन्नीस?) वर्ष की अवस्था में वह मर जायेगा। सो बालक छोटी काशी में शिव साधना करने लगा। आयु पूरा होने पर जब यमराज उसे लेने आये तो वह शिव जी की पिण्डी पकड़ कर बैठ गया। शिव जी को साक्षात प्रकट हो कर यमराज को आदेश देना पड़ा कि वे मारकण्डेय को नहीं ले जा सकते। इसी बात पर मेरे साले साहब ने मुझे कहा था – “जीजा जी, शिव भक्त होते ही हाफ मैण्टल हैं। वे ही इतना जुनून भरा काम कर सकते हैं। बाकी लोग तो जोड़-बाकी, किंतु-परंतु करने में ही अटक जाते हैं। और इन जैसों के लिये शिव जी ब्रह्मा का लिखा भी उलट देते हैं। आप से प्रेम सागर पांंड़े को मिलवाया, यह भी शंकर भगवान की कारस्तानी है!”
प्रेम सागर के जीवन में मारकण्डेय ऋषि टाइप अनुभव
प्रेम सागर जी ने मुझे मेरे घर पर बताया था कि पांच छ साल पहले उन्हें दिल की बीमारी हुई। वे 5-6 मीटर भी नहीं चल पाते थे। लखनऊ के पास वे पीजीआई में गये थे, पर वहां जो इलाज के खर्च का आकलन बताया गया, वह उनके बूते में नहीं था। संयोग से लखनऊ में एक सहृदय कार्डियॉलॉजिस्ट मिले। उन्होने पूछा कि इलाज कैसे कराना चाहोगे? पैसा देकर या वैसे?
प्रेमसागर ने कहा कि पैसा तो है ही नहीं। डाक्टर साहब ने 12-15 टेस्ट लिखे। हर जगह टेस्ट करने वालों को यह बताया कि यह मेरा भतीजा है (वे डाक्टर साहब भी संयोग से पांड़े थे), इसका टेस्ट फ्री में कर दिया जाये। टेस्ट के बाद पंद्रह दिन की दवायें भी उन्हें फ्री में दीं और उन्हें पैदल चलने का एक अनुशासन बताया। पहले दिन थोड़ा और उत्तरोत्तर बढ़ाते हुये। प्रेम सागर ने वही किया। और अब चलने की धुन इतनी हो गयी है कि 12 ज्योतिर्लिंग पदयात्रा कर रहे हैंं! … प्रेमसागर के लिये शिव जी ने ब्रह्मा जी का लिखा उलट दिया है!
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
आज प्रेमसागर विश्राम कर रहे हैं। मुझे स्टीफन कोवी के इफैक्टिव लोगों के एक गुण – Sharpen the Saw – की याद आ रही है। सप्ताह में एक दिन अपनी ऊर्जा को संचित करने, अपनी टूट-फूट को रिपेयर करने और आगे की योजना बनाने में लगाना चाहिये। अपनी कुल्हाड़ी को तेज करते रहना चाहिये। भोंठ कुल्हाड़ी से लकड़ी नहीं चीरी जा सकती!
प्रेम सागर वही कर रहे हैं।
उन्होने आज अवकाश के दिन, रींवा के वन विभाग के करीब दस एकड़ के हरे भरे परिसर के दर्जन से ज्यादा चित्र भेजे हैं। प्रवीण चंद्र दुबे जब वहां पदस्थ थे, तब के उनके लगाये गये उद्यान के चित्र हैं। प्रवीण जी वहां 2005-8 के दौरान चार साल रहे। इस उद्यान में मध्यप्रदेश की वनस्पतीय विविधता है। लोग वहां सवेरे सैर के लिये आते हैं।
उसके बारे में अलग से, अगली पोस्ट में लिखूंगा।

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शिवजी की कृपा की दवाई का मूल्य चुका रहे हैं। टहलने से शिवजी ने ठीक कर दिया, अब उनके पास टहल कर जा रहे हैं और अपना ऋण चुका रहे हैं। जय हो।
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यही माना जाए. वैसे शिव जी ऋण जैसे टेक्निकल टर्म में शायद ही चलते हों.
उनकी कृपा वह स्टॉक है जो हजार लाख गुना रिटर्न देता है. 😁
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