वृद्धा बोलीं आगे पीछे की 14 पुश्तें तर जायेंगी!

10 सितम्बर 2021:

माताजी एक ठो बात और बोलीं – “बेटा जो यह बारहों ज्योतिर्लिंग यात्रा कर रहे हो, उससे तुम्हारा चौदह पुश्त पहले का और चौदह पुश्त बाद का भी तर जायेगा!

सहायता करने वालों के लिये बोलीं – उन लोगों का पूर्वजनम का जो भी पाप होगा, वह धुल जायेगा। वे फिर कभी जनम नहीं लेंगे।”

– एक गांव की अस्सी साल की वृद्धा, प्रेमसागर से बातचीत में।

शाम साढ़े छ बजे प्रेमसागर ब्यौहारी पंहुचे। थके होंगे पचास किलोमीट्टर चलने से, पर आवाज सामान्य थी। उनका स्मार्टफोन बिगड़ गया था। एक जगह उसको री-फार्मेट कराये। अब अपना ई-मेल सेट कर एप्प भरेंगे और तब फोटो आदि प्रेषित कर पायेंगे। वह तो अच्छा हुआ कि उनके पास बैक-अप के लिये सुधीर जी के सौजन्य से फीचर फोन है, अन्यथा बातचीत भी शायद रुक जाती।

शाम को वे ब्यौहारी पंहुच गये हैं। उनकी व्यवस्था शायद बानसागर में की थी। कुछ कंफ्यूजन हुआ है। आगे आ गये जोश में। अब रेस्ट हाउस के सामने इंतजार कर रहे हैं।

रास्ता अच्छा था। हाईवे। पर चलना बचाने के लिये वे गाय चराने वालों के साथ शॉर्टकट से हो लिये। मोबाइल सेट कर उस कच्चे रास्ते के चित्र भेजेंगे। उनके साथ चलने से दस किलोमीटर की बचत हुई, बकौल प्रेमसागर।

रास्ते में नदियां मिलीं। शोणभद्र और समधिन नदियों की बात प्रेमसागर जी ने की। झील भी दिखी, पर उसका चित्र नहीं ले पाये। तब मोबाइल खराब था। उसके बाद मोबाइल बनवाये। जंगल थे, पेड़ थे। हवा नहीं बह रही थी। धूप तेज थी। कवि लोग जाने क्या कहेंगे – धूप में जंगल ऊंघता है या सांझ के इंतजार में सन्न मारे पड़ा रहता है। पेड़ थे चुपचाप। जानवर भी नहीं थे। आम, सागवान और जंगली गाछ दिखे। प्रेमसागर बोटानिस्ट नहीं हैं अन्यथा वन सम्पदा देख कर दर्जन भर नाम गिना देते! :-)

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अपने पैर की दशा से संतुष्ट हैं। जब तब मलहम-पाउडर लगा लेते हैंं। दिन में भी लगा लेते हैं और रात में सोते समय भी। भोजन की मात्रा और पौष्टिकता से कोई तकलीफ नहीं है। दिन में बिस्कुट आदि ले लेते हैं। कहीं दाल रोटी मिल जाता है तो उसका भी सेवन कर लेते हैं। चलने से जो थकान होती है वह रात में नींद लेने से दूर हो जाती है। उनकी शारीरिक मशीन 40-50 किलोमीटर चलने के लिये अभ्यस्त हो गयी है। आम आदमी को, ग्रामीण को भी यह देख सुन कर अचम्भा होता है। लोग यकीन नहीं कर पाते कि वे दिनों दिन चल रहे हैं। वे सबूत मांगते हैं तब प्रेमसागर उनसे मेरा ब्लॉग gyandutt.com खोलने और prem pandey सर्च कर देखने को कहते हैं, जहां रोज के चलने का सचित्र विवरण लिखा है। कई लोगों के पास स्मार्टफोन होता भी है – आजकल तो गांव गांव मेंं लोगों के पास है। वे देखते हैं और यकीन करते हैं। “आज मेरे सामने ही तीन चार आदमी एड्रेस डाल कर देखे और पढ़े। तब उनका विश्वास बना।”

रास्ते में लोग दिखते हैं। पर चित्र कम ही ले पाते हैं प्रेम सागर। यह एक चित्र है।

मैं सोचता हूं कि अगर यह ब्लॉग न लिखा गया होता तो प्रेमसागर क्या प्रमाण बताते? शायद वे अपने मोबाइल में विभिन्न स्थानों के चित्र और वीडियो दिखा कर लोगों में विश्वास जगाते। पर पुराने समय में तो यात्री के पास अपनी बोलने की ताकत का ही सहारा होता रहा होगा। समय और तकनीकी के बदलाव नें कई चीजें आसान कर दी हैं।

“नहीं नहीं। औरतें भी मिलती हैं और वे भी बात करती हैं। वे भी उतना ही पूछ्ती हैं, जितना आदमी। … आज तो एक करीब अस्सी साल की वृद्धा, सड़क किनारे अपने घर के दरवाजे पर कुर्सी लगा बैठी थीं। मुझे आते देख वे मुझे बुलाईं और बोलीं – बेटा कहां जंगल जंगल भटक रहे हो? कहां से आ रहे हो? … मैंने बताया कि काशी से आ रहा हूं।”

“लोग कौतूहल व्यक्त करते हैं। अचम्भा व्यक्त करते हैं। पर लोग सहायता करने की भी बात करते हैं?” – मैंने पूछा।

“हां हां। लोग पानी पीने की बात करते हैं। एक दो लोग कहते हैं आप बैठिये, आपका पैर दबा देते हैं। कुछ लोग आर्थिक मदद की भी बात करते हैं। मैं कहता हूं कि नहीं उस सब की जरूरत नहीं है। बस, आप मेरे बारे में अच्छा सोच रहे हैं, यही मेरे लिये बहुत बड़ी बात है।”

“लोग बात करते हैं, क्या औरते में मिलती हैं। वे भी बात करती हैं? या औरतें सामने नहीं आतीं?”

“नहीं नहीं। औरतें भी मिलती हैं और वे भी बात करती हैं। वे भी उतना ही पूछ्ती हैं, जितना आदमी। … आज तो एक करीब अस्सी साल की वृद्धा, सड़क किनारे अपने घर के दरवाजे पर कुर्सी लगा बैठी थीं। मुझे आते देख वे मुझे बुलाईं और बोलीं – बेटा कहां जंगल जंगल भटक रहे हो? कहां से आ रहे हो? … मैंने बताया कि काशी से आ रहा हूं।”

घर के बाहर दीवार से उंठगी बैठी महिला। स्केच आदरणीय अमृतलाल वेगड़

“उन्होने पूछा कहां तक जाओगे?; मैंने बताया कि बारहों ज्योतिर्लिंग यात्रा करूंगा।”

“वृद्धा बोलीं – कुछ संकल्प है? तब मैंने कहा – हां माताजी।”

वह वृद्धा अहोभाव से बोलीं – “बेटा, वह माता धन्य है, जिसने तुम्हे जन्म दिया। अगर वो जिंदा होंगी तो खुश होंगी और अगर स्वर्गवास कर गयी होंगी तो वहां से भी देख रही होंगी कि मेरा बेटा कितना बड़ा काम कर रहा है।”

प्रेम सागर की माता जी का देहावसान तीन चार साल पहले हुआ है। वृद्धा के आशीष से उन्हें बहुत सुकून मिला होगा।

“और माताजी एक ठो बात और बोलीं – “बेटा जो यह बारहों ज्योतिर्लिंग यात्रा कर रहे हो, उससे तुम्हारा चौदह पुश्त पहले का और चौदह पुश्त बाद का भी तर जायेगा!””

“माता जी यह भी पूछीं – बेटा कोई तुमारी मदद कर रहा है? मैंने उन्हें आपका (ज्ञानदत्त पांड़े का) नाम बताया, पाण्डेजी (सुधीर जी) और दुबे भईया (प्रवीण जी) का नाम बताया। तब वे बोलीं – उन लोगों का पूर्वजनम का जो भी पाप होगा न, वह धुल जायेगा। वे फिर कभी जनम नहीं लेंगे।”

“वे वृद्ध महिला बहुत प्रसन्न हुईं। मुझे पानी-गुड़ दिया। फिर बताया कि हनुमान जी की पूजा हुई है घर में। उसका प्रसाद – पूरी-सब्जी-साबूदाने की खीर – खिला कर बिदा किया मुझे।”

“ये जो माताजी मिलीं, उनका चित्र तो आप ले नहीं पाये (उनका मोबाइल उस समय खराब था) पर उनका घर कैसा था? कच्चा या पक्का?” – मैंने यूं ही प्रेमसागर से पूछा।

“आधा कच्चा था, खपरैल वाला और आधा पक्का।”

खपरैल वाले एक मकान की छत। उसपर रखा हंसिया देखिये।

अच्छे लोग और अच्छी औरतें मिलते ही हैं; पर कुछ खराब लोग भी मिलते हैं। “दो आदमी कल मिले थे। शराब के नशे में धुत थे। दारू पी के पूरा फुल। बोले मेरी गाड़ी में बैठो और आज रात भर मेरे घर में रहना है तुम्हें। मैंने बताया कि मैं पैदल चलता हूं। गाड़ी नहीं चढ़ता। वे तंग करने लगे। तो महादेव की कृपा से आसपास के लोग आ गये और उनको डांट कर भगाया। … लोग तरह तरह के होते हैं।”

देर रात में अपना मोबाइल सेट कर प्रेम सागर ने चित्र अपलोड किये। रेंजर साहब के घर में लोगों के चित्र भी थे उसमें। प्रेमसागर जी के साथ रेंजर साहब बैठे हैं – त्रिपाठी जी। प्रेमसागर जी के प्रति श्रद्धा रख एक अधेड़ और एक नौजवान उनका पैर भी दबा रहे हैं। उनके बारे में प्रेम सागर बताये कि वे राम मिलन जी हैं और उनके बेटे हैंं।

फोटो लेना, भेजना और रास्ते के संस्मरण याद रखना, बताना – यह सब ब्लॉग डिसिप्लिन प्रेमसागर धीरे धीरे सीख रहे हैं। अब वे मात्र इतना किलोमीटर चला, इतना किलोमीटर बचाया आदि बताने के अलावा भी इनपुट्स देने लग गये हैं। अब मुझे सतपुड़ा के जंगल या भवानी प्रसाद मिश्र जी की कविता आदि का सहारा लेने की जरूरत कम पड़ती जायेगी। वे जो बतायेंगे, उसी से ही ब्लॉग-साहित्य (अगर वह कोई चीज होती है, तो!) सृजित होगा। हर हर महादेव!

साल भर में शायद प्रेम सागर अपना इण्डिपेण्डेण्ट ब्लॉग बनाने में भी दक्ष हो जायें! :lol:

11 सितम्बर 2021:
प्रेम सागर, संतोष (वन विभाग कर्मी) और विक्रम सिंह, समाज सेवी

प्रेम सागर जी ने बताया कि निकलने में देर हुई आज। विक्रम सिंह, एक समाज सेवक जी मिल गये थे। वे शहडोल से प्रयागराज जा रहे थे। सपरिवार। उनसे बातचीत में समय लग गया और निकलने में देरी हुई।

जब मैंने पौने आठ बजे बात की तो वे सात किलोमीटर आगे निकल चुके थे। आज वे जय सिंह नगर तक यात्रा करने वाले हैं। गूगल मैप में वह ब्यौहारी से 41 किमी दक्षिण में है।

आज का टार्गेट – ब्यौहारी से जयसिंह नगर।



Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

6 thoughts on “वृद्धा बोलीं आगे पीछे की 14 पुश्तें तर जायेंगी!

  1. इसे भी भोलेनाथ की कृपा कहिए, प्रेम सागर जी की महाभारत यात्रा के प्रामाणिक वृत्तांत के लिए आपके रूप में एक संजय मिल गया है। जो एक रिकॉर्ड के रूप में हमेशा उपलब्ध रहेगा।
    😊

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  2. गूगल मैप का एक चित्र अवश्य डालें। कल तक कितनी यात्रा की और आज कितनी की। एक आधार रहेगा। साथ ही वे सारे स्थान प्रसिद्ध हो जायेंगे। बड़ी अम्मा का आशीर्वाद है आपको, वापस लौट के नहीं आना होगा।

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    1. हो सकता है! मेरी पत्नी जी उस अनजान वृद्धा को सीरियस लेती हैं…
      रोज मैप का स्क्रीन शॉट डालना सही सुझाव है!

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  3. अब तो इंतजार रहता है प्रतिदिन आपके ब्लॉग पोस्ट का , महादेव ने आपको भी लगा रखा है परम सागर जी के इस यात्रा को सुचारू बनाने और हम जैसो को इस यात्रा में मानसिक रूप से शामिल करने में , १२ ज्योतिर्लिंगों को नंगे पैर नापते हुए देखना एक बड़ी घटना मैं मानता हूँ इस काल में जबकि सुपर फ़ास्ट ट्रेन और अब तो बुलेट ट्रेन में लोग यात्रा पल भर में कर लेते है |

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    1. हाँ, जिस दिन ये सज्जन अमरकण्टक से जल उठायेंगे, उस दिन का भी अलग रोमांच होगा। और वह सप्ताह के अंदर ही होगा।

      मुझे भी अजीब लगता है कि यह दुबला सा जीव चलता चला जा रहा है और मैं उसके बारे में सोचे चले जा रहा हूं!!!

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