(रोज इग्यारह बजे प्रेम सागर कांवरिया को ले कर ब्लॉग अपडेट करना एक अजब सा फितूर बन गया है। उस बारे में मेरा यह मोनोलॉग। इसे एक बैठेठाले का सोचना ले कर पढ़ लिया जाये! 😆 )
तुम रोज लिख कर, प्रेमसागर से पूछ कर, उनके कहे को रिकार्ड कर और बाद में उसे कई बार सुन कर उसमें जो अर्थ भरने का यत्न कर रहे हो; उसका कोई खास लाभ है? तुम इस एक्सरसाइज की निरर्थकता से थक जाओगे; पर प्रेमसागर की धार्मिक आस्था, श्रद्धा और जुनून को मैच नहीं कर पाओगे।
तुम्हारे पास कुछ शब्द बुनने की तकनीक आ गयी है जीडी। बारह-चौदह साल से वह प्रयास कर रहे हो, तो कुछ तो आ ही गयी है। लोगों ने टिप्पणियों में कुछ प्रशंसात्मक कहा तो तुम उसे सत्य के आसपास मान लिये। और उसी के बल पर इतने साल से उलूल जुलूल लिखते रहे। यह सोशल मीडिया है ही वाहियात चीज। जो लाइक-धर्म का पालन कर देती है। ज्यादा हुआ तो प्रशंसात्मक टिप्पणी कर देती है। वह भी एक बार्टर होता है। अहो रूपम, अहो ध्वनि वाला मामला। और उससे तुम फूल गये हो।

तुम्हे ये प्रेम सागर पांड़े मिल गये। उनके पास जुनून है। द्वादश ज्योतोर्लिंग पैदल यात्रा करने का। वह भी अनवरत करते चले जाने का। उनका ध्येय विशुद्ध धर्म और श्रद्धा (और जिद?) के पाले में आता है। तुमने उसमें एक अवसर नहीं देखा तो क्या देखा? तुम केवल यह चाहते हो कि यात्रा प्रेमसागर करें और उसके बल पर ट्रेवलॉग तुम रचो। पर यह उतना आसान नहीं, जितना तुमने सोचा था। प्रेम सागार के पैर, अपनी श्रद्धा अपने जुनून, अपने धर्म से चल रहे हैं। उनके चक्षु अपनी शंकर भक्ति से देख रहे हैं और उनका मस्तिष्क उनको आगे बढ़ने या रुकने का निर्देश धर्म की अपनी समझ से दे रहा है। प्रेमसागर को तुमसे कुछ भी, चवन्नी भर भी लेना देना नहीं। तुम्हारा ट्रेवलॉग किस स्तर का बने, उसका कण्टेण्ट क्या हो, उसका कलेवर कितना आकर्षक हो, उसके चित्र कितने जीवंत हों, इससे प्रेम सागर को क्या? उनके पास तो अमरकण्टक जाने का लक्ष्य है। वहां से जल उठाना है। एक कांवर का इंतजाम करना है – वह जो मजबूत और हल्की हो और उसे ले कर दूसरे से तीसरे…आठवें, दसवें, बारहवें ज्योतिर्लिंग तक जा शिव जी की पिण्डी पर अर्पित करना है।

यात्रा के सौंदर्य और अनुभूतियों का ट्रेवलॉग और शंकर जी की पिण्डी पर जल चढ़ाना दो अलग अलग कृत्य हैं और पहला दूसरे पर चड्डी गांठ कर (piggybacking कर) सम्पन्न नहीं हो सकता। तुमने करीब दो सप्ताह से यह प्रयत्न कर देख लिया है। प्रेम सागर, अपने पैरों के घर्षण और तलवों के दर्द के बावजूद अपनी श्रद्धा में मगन चले जा रहे हैं। और तुम? तुम इसी परेशानी में पड़े हो कि ट्रेवलॉग में वह अनुभव तो दिख ही नहीं रहा, जो दिखना चाहिये। उन जगहों के लोग, वहां की वनस्पति, वहां के जीव, वहां की कथायें और यात्रा में होने वाली उत्फुल्लता उसमें नहीं आ पा रही। तुम प्रेम सागर को चित्र लेने की तकनीक बताना चाह रहे हो। सवेरे और शाम के गोल्डन ऑवर की सूरज की रोशनी का लाभ लेने को कहते हो, जिससे चित्र अच्छे आयें। चित्र को पोट्रेट मोड की बजाय लैण्डस्केप मोड में लेने को कहते हो।
पर प्रेम सागर का ध्येय चित्र लेना है ही नहीं। उनका ध्येय आगे बढ़ते चलना है। अगली गर्मी के पहले बाकी स्थान निपटा कर पहाड़ की ओर रुख करना है। उन बेचारे का मोबाइल का कैमरा भी जो है सो है।

तुम उन्हें जीवों, लोगों और बातचीत के बारे में पूछते हो, वह वे तब ही बताते हैं, जब उन्हें याद आये। उनके पास कोई नोटबुक, कोई वॉइसनोट लेने का अनुशासन है नहीं। उसकी उनको जरूरत भी नहीं है। उन्हें सिर्फ रात को रुकने की जगह चाहिये, कहीं सादा, साधारण भोजन मिल जाये बस। कहीं मोर नाचता हो, कोई खरहा गुजरे, कोई लोमड़ी सामने आये, कोई गायों का झुण्ड सरकता नजर आये तो उसे देखने को तुम जरूर रुकना चाहोगे, शायद अपनी स्क्रेप-बुक में नोट्स भी लो। पर प्रेमसागर की प्राथमिकताओं में वह नहीं होगा। उन्हें तो शंकर जी की पिण्डी पर जल अर्पण करना है… वही ध्येय है।

प्रेम सागर अमरकण्टक से जल ले कर ॐकारेश्वर की यात्रा करना चाहते थे तो उसमें तुम्हें वेगड़ जी की “सौंदर्य की नदी नर्मदा” का सीक्वेल नजर आया। पर प्रेम सागर जी को दो सप्ताह ट्रैक कर और दिन भर उसी के बारे में सोचते सोचते जो बन पा रहा है; उससे वह स्वप्न खण्डित हो रहा है। वैसा कुछ कहा/लिखा जा सकता है रिमोट तौर पर?! प्रेम सागर न तो रिमोट कण्ट्रोल्ड मंगल यान हैं, जिन्हें भदोही के इस गांव से कुछ करने या अनुभव करने को कहा जा सकता है। और वे अपने में अमृतलाल वेगड़ भी नहीं हैं, जिनके पास शांतिनिकेतन का अनुशासन हो, नंदलाल बोस का जिनको सानिध्य रहा हो, जो स्केचिंग, लेखन, कोलाज बनाने और चित्रकारी में पारंगत रहे हों और जिनकी लेखनी में जादू हो!
आदरणीय दिनेश कुमार शुक्ल जी फेसबुक पर टिप्पणी करते हैं – यह तो अमृतलाल वेगड़ जी के नर्मदा की पैकम्मा वाले यात्रा-संस्मरणों की याद दिला रहा है। हिंदी मे वैसे संस्मरण कम हैं। पाण्डेय जी बहुत सुन्दर। हर हर महादेव।
बाई द वे, वेगड़ जैसे तो तुम भी नहीं हो जीडी! 😀
तुम रोज लिख कर, प्रेमसागर से पूछ कर, उनके कहे को रिकार्ड कर और बाद में उसे कई बार सुन कर उसमें जो अर्थ भरने का यत्न कर रहे हो; उसका कोई खास लाभ है? तुम इस एक्सरसाइज की निरर्थकता से थक जाओगे; पर प्रेमसागर की धार्मिक आस्था, श्रद्धा और जुनून को मैच नहीं कर पाओगे।
देखो, कब तुम ऊबते हो?! कब तक करते हो अपडेट इस यात्रा ब्लॉग को!
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
13 सितम्बर 2021, सवेरे आठ बजे:
आज प्रेम सागर सवेरे साढ़े चार बजे निकल लिये। जय सिंह नगर रेस्टहाउस के दो किमी बाद से घना जंगल शुरू हो जाता है। उसमें बाघ, भालू और यदा कदा हाथी भी विचरते हैं। बस्ती वालों को मवेशी ले कर उधर न जाने की हिदायत दी गयी है। प्रेम सागर को सलाह दी गयी कि भोर में ही वह जंगल पार कर लें। उस समय दैनिकक्रिया के लिये लोग निकले होते हैं। थोड़ी चहल पहल होती है और उस समय वन्य जीवों से सामना होने की सम्भावना कम है।
मैंने उनसे सात बजे बात की थी तब वे उस घने जंगल को पार कर चुके थे। सकुशल! उन्होने बताया कि आगे एक चाय की दुकान दिख रही है। वहां वे चाय के लिये रुकेंगे। अभी ‘मोटामोटी’ पंद्रह किलोमीटर चल चुके हैं!
घने जंगल को पार करने पर यह शिव मंदिर दिखा उन्हें –

बाकी विवरण उनसे शाम को उनके शहडोल पंहुचने के बाद बातचीत के आधार पर पोस्ट होगा। जाइयेगा नहीं। आयेंगे आपके पास दैनिक ब्रेक के बाद! 😆
Positive Thoughts (राज कुमार उपाध्याय) @upadbyayrk जी की ट्विटर पर टिप्पणी –
“यह सोशल मीडिया है ही वाहियात चीज। जो लाइक-धर्म का पालन कर देती है। ज्यादा हुआ तो प्रशंसात्मक टिप्पणी कर देती है। वह भी एक बार्टर होता है। अहो रूपम, अहो ध्वनि वाला मामला।”
इतना नपा तुला सटीक आप ही लिख सकते है
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रोचक प्रयोग है… प्रेमसागर जी का ध्येय अलग है और वेगढ़ जी का अलग था… इसलिए उनका चीजों को देखने का नजरिया भी अलग था… वहीं कई बार लेखक चीजों को बनाकर भी कहते हैं ताकि वह सामने वाले को ज्यादा खूबसूरत लगे जैसे कई बार फोटोग्राफर किसी फोटो को लेंगे तो उसे ऐसे कोण से लेंगे जो कि उसकी कुछ विशेषता तो उभार उसे उस पल में सबसे खूबसूरत बना दे….. फिर भले ही अगले पल या किसी अलग कोण से वह खूबसूरती बरकरार रहे न रहे… हाँ, जैसे जैसे प्रेमसागर जी यह विवरण देते जाएंगे वह भी शायद किसी आपके अनुरूप विवरण देने लगें लेकिन सोचने की बात है कि फिर क्या वो फ्रेशनेस बची रह पाएगी… इस कोण से भी सोचा जा सकता है…. ऐसे में मेरी राय यह रहेगी कि आप उन्हे जस का तस छापें…. ऐसे में वह अनगढ़ जरूर हो सकता है लेकिन वह उनका अपना दृष्टिकोण होगा…. शायद उनकी इसमें उनकी भक्ति का रस भी आने लगे…
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जी प्रेम सागर जी का अपना अनगढ़ भक्ति भाव बचे और उनका कहना यथावत आ सके उसका प्रयास मेरा भी रहेगा. प्रेम सागरत्व अगर खत्म हुआ तो इस यात्रा का मायने ही नहीं बचेगा.
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यायावरी आदत का हिस्सा हो सकता है. एक लड़का है शुभम, 16 साल की उम्र से दुनिया घूम रहा है. बर्मा, थाईलैंड, वियतनाम, चीन, मंगोलिया, रूस, CIS देशों से मिडल ईस्ट होते हुए, अफ्रीका… यूट्यूब पर nomadic shubham के नाम से उसके वीडियो मिलते हैं..
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मेरे ख्याल से मैंने उनका travelogue पढ़ा है, वियतनाम का…. पक्का नहीं कह सकता कि उन्हीं का था. यू ट्यूब पर देखूंगा.
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फेसबुक पेज पर नीरज रोहिल्ला जी की टिप्पणी –
मैं अक्सर आपके ब्लॉग पर लंबी लंबी टिप्पणी करता हूँ। अक्सर लगता है कहीं आप भी बोझिल न हो जाते हैं कि लो फिर आ गये, 😉
एलन अल्डा के इस इंटरव्यू का पहला पैराग्राफ पढ़िए –
Be curious, but not too smart.
Skilled interviewers must be curious. Alda has a natural interest in science, but he warns of the “too-smart syndrome” where interviewers think they’re nearly as well versed in the subject as interviewees:
“I found I wasn’t asking good enough questions because I assumed I knew something. I would box them into a corner with a badly formed question, and they didn’t know how to get out of it. Now, I let them take me through it step by step, and I listen. Then I say, ‘Well, if that’s true, then how could this be true?’ or ‘Tell me more about that.’”
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ट्विटर पर बदनाम शायर @BadnamShayar1 जी की टिप्पणी –
विषय पर अब तक की सबसे अच्छी पोस्ट …. मुझे लगता है की आपके ट्रावेलोग के कंटेन्ट का मॉरल प्रेशर न बनाता जा रहा हो पाण्डेय जी पर …
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ट्विटर पर अश्वमेध @Ashwmegh_1 जी की टिप्पणी –
“ए छूछा तोहरा के के पूछा?”
अर्थात जिसके पास कुछ नही होता है उसे कोई नही पूछता है.
ऐसे समय जब भाई भाई को नही पूछता आप उनकी खैर खबर से लेकर उनकी परेशानियों को कम करने का यत्न कर रहे।
अपनी उनके प्रति चिंता जिज्ञासा को उनपर बोझ न समझें.उन्हें आपके द्वारा हालचाल जानना अच्छा लगता होगा।
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मैं आपको बार्टर से मुक्त करता हूं। 🙂 आप इस अनूठे ट्रैवलॉग या जो भी है, उसे जारी रखिएगा। अगले कुछ महीने में आपसे लगातार बातचीत में प्रेमसागरजी भी बहुत कुछ देखना सीख जाएंगे। तब आपके लेख अधिक धारदार होने लगेंगे।
इसे बीच में छोड़ मत दीजिएगा… 🙏
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आप सही कह रहे हैं सिद्धार्थ जी। प्रेम सागर के देखने, चित्र लेने और बताने के नजरिये में तेजी से परिवर्तन आया है!
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मुझे सदा ही लगा है कि मन बड़ा बौड़म है, तुरत तुलना करने बैठ जाता है। आपकी तुलना न प्रेमसागर जी से है और न ही वेगड जी से। आप सर्वथा भिन्न हैं। आप प्रेमसागरजी को वेगडत्व तक ले जाने की सामर्थ्य रखते हैं। साथ ही आप शंकर के सूत्र हैं जो सबको बाँधे, सम्हाले, ज्योतिर्लिङ्ग में जल चढ़वा रहे हैं। शंकरीय कार्य में प्रकृतिबोध होना, परिवेशप्रिय होना कोई आक्षेप नहीं है। सभी तो शंकर का है, सत्यं शिवं सुन्दरम्। हम सब तनिक लोभी हैं जो बिना श्रम, श्रद्धा, साहित्य ज्ञान, सौन्दर्यबोध के सारा आनन्द उठा रहे हैं।
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“आप प्रेमसागरजी को वेगडत्व तक ले जाने की सामर्थ्य रखते हैं। साथ ही आप शंकर के सूत्र हैं जो सबको बाँधे, सम्हाले, ज्योतिर्लिङ्ग में जल चढ़वा रहे हैं।”
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इस टिप्पणी के लिये जय हो!
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