13 सितम्बर 2021 की यात्रा के बाद:

शाम पांच बजे प्रेमसागर पांड़े शहडोल के बिचारपुर वन रेस्ट हाउस में पंहुच गये थे। वे सवेरे साढ़े चार बजे ही निकल लिये थे जयसिंह नगर के डेरा से। गूगल मैप में रास्ता करीब पचास किमी का है, पर टूरिस्ट लोकेशन देखते देखते आये तो वे, उनकी फ्रेजॉलॉजी के अनुसार “मोटामोटी” 60 किमी चले।
रास्ते में घना जंगल मिला। किसी वन्य जीव से पाला नहीं पड़ा। घना वन निकलने के बाद सवेरे गाय गोरू चरने के लिये जाते दिखे। उसके अलावा रास्ते में मंदिर थे, सोन नदी थी। सोन यहां वास्तव में नदी ही हैं – शोणभद्र नद नहीं। छोटा सा पाट दिखता है उनका।

प्रेम सागर के इस इलाके के भ्रमण के संदर्भ में मुझे एक नर्मदा घाटी पर सन 1963 का लिखा एक ट्रेवलॉग हाथ लगा। एक सज्जन नेत्तूर पी दामोदरन 1963 में शहडोल आये थे। वे यहां केंद्र सरकार के विशेष प्रतिनिधि के रूप में आदिवासियों पर कोई अध्ययन कर रहे थे और उस संदर्भ में नर्मदीय क्षेत्र में बहुत घूमे थे। दामोदरन जी 1952-57 के दौरान संसद सदस्य रह चुके थे।

वे यहाँ शहडोल में जिले में सोन नदी में आयी बाढ़ में फंस गये थे। उसी दौरान उन्होने अपने नर्मदा भ्रमण के मेमॉयर्स लिखे जो मलयालम मनोरमा में ‘नर्मदायुदे नत्तिल (The land of Narmada)’ के नाम से छपे। … छोटी सी दिखती सोन नदी इतनी भयंकर बाढ़ भी ला सकती हैं कि पूरा शहडोल का इलाका उससे कट सकता है और नेत्तूर पी दामोदरन उसमें फंस कर एक यात्रा विवरण लिख सकते हैं – ऐसा प्रेमसागर जी के चित्र की नदी से नहीं लगता। पर सोन नदी या शोणभद्र नद – हैं ही ऐसी नदी जिनको देख कर मन में इज्जत या भय का भाव आये। सोन और नर्मदा दोनो अमरकण्टक से निकली नदियाँ हैं। पर दोनो की प्रकृति में बहुत अंतर है। प्रेम सागर का अगर साथ रहा तो नर्मदा के साथ अमरकण्टक से ॐकारेश्वर तक चलना हो सकता है और उनके बारे में बहुत कुछ प्रेमसागर के चित्रों, उनके कथनों, विभिन्न यात्रा विवरणों से सामने आयेगा। सोन का तो शायद यही एक चित्र ब्लॉग पर आये!
और जो यह सोन का चित्र प्रेमसागर ने भेजा है, वही वह स्थान है जहां नेत्तूर पी दामोदरन ने बाढ़ में एक ट्रक जिसमें उसके कर्मी बैठे थे, अपने सामने जलमग्न होते देखा था। उस घटना के बारे में वे लिखते हैं कि वे शहडोल के कलेक्टर से मिल रहे थे कि कलेक्टर ने उनसे कहा कि “अगर वे यहां से घण्टे भर में नहीं निकल जाते तो यहीं फंसे रह जायेंगे। यहां मौसम साफ है पर प्रयागराजघाट और अमरकण्टक में तेज वर्षा हो रही है। बाढ़ का पानी वहां से यहां आने में दो घण्टा लेता है। तब यह नदी यहां बाढ़ में आ जायेगी।”
नेत्तूर पी दामोदरन अपना सामान बांध जब तक सोन नदी – 10 मील दूर – पंहुचे, तब तक बाढ़ आ चुकी थी। ट्रक जलमग्न होते देखा उन्होने। एक सप्ताह वे शहडोल में फंसे रहे और बैठे ठाले अपने भ्रमण के मेमॉयर्स लिखने प्रारम्भ किये। वे मलयालम मनोरमा में छपे और कालांतर में दस साल बाद केरल सरकार की ग्राण्ट/सहायता से उनका पुस्तकाकार प्रकाशन हुआ।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
मैंने तो यह पुस्तक अमेजन किण्डल पर पढ़ी है। प्रेम सागर प्रकरण न होता तो मैं न तो शहडोल पर अपना ध्यान केंद्रित करता और न यह पुस्तक खंगालता। 😆
सोन नदी के बाद प्रेमसागर बाणगंगा सैलानी स्थल से हो कर गुजरे। उसके कुछ चित्र उन्होने दिये हैं। बाणगंगा में एक तालाब है। पानी है उसमें पर बहुत साफ नहीं दिखता। या कहें तो गंदला है। टूरिस्ट प्लेस के हिसाब से जल को साफ करने का जो प्रयास होना चाहिये था, वह नहीं है। लोग और टूरिज्म वाले दोनो उत्तरदायी लगते हैं।
बाणगंगा के कुछ दृश्य उक्त कोलाज में हैं। साधू जी कोई त्यागी महराज हैं, जिनका राम मंदिर वहां है। बाणगंगा में चबूतरों पर परित्यक्त/खण्डित मूर्तियाँ लगी हैं। उनके कई चित्र प्रेम सागर जी ने भेजे हैं। उनका कहना है कि समय के साथ ही वे सैण्ड-स्टोन की मूर्तियाँ खण्डित हुई होंगी। किसी विधर्मी विध्वंस की बात तो उन्हें किसी ने नहीं सुनाई।
बाणगंगा के बारे में उन्हें किंवदंति बताई गयी कि अर्जुन ने प्यासी गाय को पानी देने के लिये एक बाण धरती में मारा था और उससे गंगा की जलधारा फूटी जिससे गाय की प्यास दूर हुई। सम्भवत: जलाशय उसी ‘गंगा’ का प्रतीक है।
अर्जुन या पाण्डव यहां कैसे आये? इसके बारे में कहा जाता है कि शहडोल ही मत्स्य प्रदेश है – राजा विराट का राज्य। पाण्डवों ने वनवास के तेरहवें वर्ष में यहीं अज्ञातवास किया था। विकीपीडिया में भी ऐसा लिखा है। नेत्तूर पी दामोदरन की उक्त पुस्तक में भी ऐसा वर्णन है। मैं अब तक यह मानता था कि मत्स्य देश राजस्थान के अलवर या जयपुर का इलाका था। पर शहडोल के संदर्भ में यह जानकारी मेरे लिये नयी है।
राम सीता, कृष्ण या पाण्डव ऐसे चरित्र हैं, जिनपर भारत का हर इलाका अपना कुछ न कुछ दावा करना चाहता है। पूरा उत्तरावर्त और दक्षिणावर्त, पूरा हिमालय प्रदेश और सिंधु या उसके पार अफगानिस्तान का क्षेत्र भी किसी न किसी प्रकार से इन महाकाव्य कालीन स्थलों और घटनाओं से स्वयम को जोड़ता है। शायद यही भारत को एक सूत्र में पिरोने की कड़ी है और एक कारण है कि मेरे जैसा आदमी वृहत्तर भारत के स्वप्न देखता है – गंधार से म्यान्मार तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक!
प्रेम सागर जी ने बताया कि वन विभाग के रेंजर साहब (त्रिपाठी जी) कल उन्हें वह स्थान भी दिखाने वाले हैं जहां अज्ञातवास में जाते समय पाण्डवों ने अपने अस्त्र-शस्त्र शमी के पेड़ पर छिपा कर रखे थे। अर्थात प्रेम सागर कल भी शहडोल और उसके आसपास अपना समय गुजारने जा रहे हैं। अगली पोस्ट में पाण्डव चर्चा सम्भव है!
शहडोल के पहले ही पड़ता है सोहागपुर। या सोहागपुर का वर्तमान नाम शहडोल है। सोहागपुर कालाचूरि राजाओं की राजधानी थी। यहां हजारवीं शती का विराटेश्वर मंदिर है। वह आर्कियॉलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया के संरक्षण में है। उस मंदिर का मत्स्यदेश के राजा विराट से कोई लेनादेना है? इस बारे में जानकारी मुझे नहीं मिली। प्रेम सागर ने पूरे मंदिर के घूम घूम कर चित्र लिये। बड़ी बारीकी से। उनका मोबाइल कैमरा अगर ठीक होता तो चित्र बहुत ही अच्छे आते! पर जो आये हैं वे भी खराब नहीं है!

मंदिर के स्थापत्य पर शहडोल जिले के विकीपेडिया पेज या आर्कियालॉजिकल सर्वे के पट्ट से ले कर जानकारी ब्लॉग पर डाली जा सकती है। पार वह इतनी सुलभ है कि पाठक उन्हें स्वतन्त्र रूप से देख सकते हैं। मैं तो यहां प्रेमसागर के कुछ चित्रों का स्लाइड शो प्रस्तुत कर देता हूं। मंदिरों की स्थापत्य कला पर मेरी समझ अगर परिष्कृत होती तो कुछ लिखता भी। कहीं कहीं उल्लेख है कि मंदिर थोड़ा झुक रहा है। प्रेमसागर ने भी बताया कि अगर ध्यान से देखा जाये तो झुकाव नजर आता है। अन्यथा बहुत ज्यादा नहीं है।
प्रेम सागर जब दत्तचित्त विराटेश्वर मंदिर के चित्र खींचने में लगे थे, तो उन्हें आर्कियॉलॉजिकल सर्वे के एक कर्मी, कोई अवधेश मिश्रा जी ने रोका कि चित्र खींचने की मनाही है। पर तब तक वे पर्याप्त चित्र ले चुके थे।
14 सितम्बर सवेरे 9 बजे:
आज प्रेमसागर शहडोल के बिचारपुर रेस्टहाउस में ही रुके हैं। आसपास के कुछ स्थान दिखाने के लिये रेंजर साहब (त्रिपाठी जी) उन्हें ले जायेंगे। पाण्डवों का अस्त्र शस्त्र रखने का स्थान है और एक इग्यारहवीं सदी का प्राचीन दुर्गामंदिर है। इसके अलावा दो तीन और भी स्थान हैं।
कल प्रेमसागर निकलेंगे अमरकण्टक के लिये। कल अनूपपुर तक पंहुचेंगे; परसों राजेंद्रग्राम और अगले दिन अमरकण्टक! यह यात्रा पथ तय करने में मुख्य रोल वन विभाग के लोगों का है। इतनी बड़ी सहूलियत प्रेमसागर को मिल गयी है। उस सब के लिये वे मुझे, प्रवीण जी को और वन विभाग वालों को धन्यवाद देते हैं। “और महादेव की कृपा तो हई है!” यह जरूर जोड़ते हैं।

सब कुछ महादेव की इच्छानुसार ही हो रहा है। यह पोस्ट भी महादेव की प्रेरणा से ही है! नहीं?
fir se padh raha hoon ye travelogue prem shankar ji wala… abhi tak sabse achchhi yahi shrinkhla lagi hai.. aapke blog par.. aur baaki yatra sansmaron me… mesmerizing… beech me jo rah gayi.. aapke aur prem shankar ji ke communication gap ke karan… wo khalti hai..
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धन्यवाद दयानिधि जी। आप अगर दुबारा पढ़ रहे हैं तो निश्चय ही इस ट्रेवलॉग में कुछ अलग सा होगा ही।
दो व्यक्ति, अलग अलग पृष्ठभूमि के – सो मेरे और प्रेमसागर जी के बीच कभी सम्प्रेषण की समस्या रही ही है। उससे इंकार कैसे किया जाये!
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I am unable to understand as to why “Photo lena mana hai”. Use of flash be restricted where the painting etc. prone to deteriorate owing to exposure. And the second thing is hefty entry fee and parking/toll. Anyway, your blog posts are pleasant and precious gift for readers.
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जय हो! आजकल तो इस तरह के कैमरों का युग है कि कोई चीज़ जो सार्वजानिक है, अंकित की जा सकती है। यह नियम पहले के समय की थाती लगते हैं। ज्यादा दिन चलेंगे नहीं। 😊
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बिलासपुर के कार्यकाल के समय शहडोल और पूरे सीआईसी क्षेत्र का भ्रमण किया था, बस कोयला खोदने की संभावना से। इतना कुछ वहाँ छिपा हुआ है, इसका अनुमान नहीं था। महादेव की ही कृपा है कि स्मृतियाँ वापस आ रही हैं।
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वन में बहुत कुछ है. उसकी बहुत सामग्री प्रेम जी ने दी है – अनेकानेक औषधियों के पौधे. उनके चित्र धुंधले हैं, इसलिए ब्लॉग पर प्रयोग नहीं किए…. अनेक मंदिर हैं. अनेक किंवदंतियों का जिक्र…
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अब फोटू कुछ बेहतर आने लगे हैं। आपका सामानान्तर अध्ययन बची हुई कमी को पूरा कर रहा है। पहले की तरह कुछ सहायक फोटो गूगल मैप आदि से भी उठाए जा ही सकते हैं।
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उनपर मेहनत करनी पड़ रही है. देखें प्रेम सागर की के लिए दूसरे स्मार्ट फोन का जुगाड़ कब और कैसे हो सकता है…
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