प्रेमसागर के बारे में आशंकायें

18 सितम्बर 2021:

“आप मेरे बारे मेंं लिख रहे हैं, उससे मैं गर्वित नहीं होऊंगा, इसके लिये सजग रहा हूं और रहूंगा। आप डेली लिखें चाहे दिन में तीन बार भी लिखें, मैं उससे विचलित नहीं होऊंगा, भईया। लालसा बढ़ने से तो सारा पूजा-पाठ, सारी तपस्या नष्ट हो जाती है।”

सुधीर पाण्डेय

दो लोगों ने मुझसे प्रेमसागर जी के बारे में बातचीत की है। सुधीर पाण्डेय ने अपनी निम्न आशंकायें और निदान एक वॉईस मैसेज में व्यक्त किये हैं –

  • प्रेमसागर अभी रिजर्व ऊर्जा के बल पर आगे बढ़ते चले जा रहे हैं। जिस तरह का शारीरिक बनाव प्रेमसागर जी का है, शीघ्र ही इनके शरीर में आवश्यक तत्वोंं की कमी होने लगेगी। जरूरी है कि वे नित्य एक दो केले, जब सम्भव हो तो दूध या दही का प्रयोग करें जिससे मिनरल, आयरन और प्रोटीन की जरूरत पूरी हो सके। इसके अलावा उन्हें मल्टीविटामिन और कैल्शियम के सप्लीमेण्ट लेने चाहियें।
  • लम्बी दूरियाँ तय करने और लम्बे समय तक पैदल चलने से इनके पैरों में घाव हो जायेंगे। उसका उपाय जूता नहीं सेण्डिल है। जूते से पसीना होता है और वह अपने इनफेक्शन/जर्म्स देता है। सेण्डिल मोजे के साथ पहना जाये तो रास्ते की धूल कंकर से भी बचाव होगा।
  • तीसरा, उनको आगे पीछे से आने जाने वाले वाहनों से बचाव की अधिक जरूरत है। भारत में लोग अंधाधुंध वाहन चलाते हैं। सवेरे और शाम के धुंधलके में अपना बचाव करने के लिये उन्हें सड़क पर या रेलवे में काम करने वाले लोगों की तरह रिफ्लेक्टर वाले जैकेट का प्रयोग करना चाहिये जिससे उनको अंधेरे में चीन्हा जाना सरल हो। उन्हें चलना भी सड़क के दांई ओर चाहिये जिससे पीछे से आने वाले वाहनों की टक्कर का खतरा न हो।
  • उनके पास सही पहचान के लिये पहचान पत्र, आईडेण्टिटी लेपल होना चाहिये। भारत में अनपढ़ और अफवाह पर यकीन कर मारपीट करने वालों की कमी नहीं है। “बच्चे उठाने वाले” या “मुंहनोचवा” जैसी अफवाह पर लोग व्यर्थ उत्तेजित हो कर अजनबी और अकेले चलने वाले पर आक्रामक हो सकते हैं; होते हैं।
राजीव टण्डन

राजीव टण्डन जी, जो मेरे अन्यतम ब्लॉगर मित्र हैं; प्रेमसागर के अनूठे संकल्प से बहुत प्रभावित थे। उनके अनुसार भारत की इस प्रकार की यात्राओं के उन्हें तीन उदाहरण मिलते हैं इतिहास में – पहला है आदि शंकराचार्य का। दूसरा स्वामी विवेकानंद का। तीसरा महात्मा गांधी का। गांधी जी का ध्येय शायद अलग प्रकार का, राजनैतिक था; पर था वह भी विशाल ही। ये तीनों यात्रा से इतना निखरे कि अभूतपूर्व बन गये। प्रेमसागर के साथ क्या होगा, कहा नहींं जा सकता। उनका प्रयोग-प्रयास तो दशरथ मांझी जैसे की याद दिलाता है। उनके पास कांवर यात्राओं का पहले का भी अनुशासन है।

राजीव जी ने कहा – “पर पहले जिस प्रकार की उन्होने कांवर यात्रायें की, उसमें बहुत ज्यादा पब्लिसिटी नहीं रही होगी। अब वे जो कर रहे हैं; उसके बारे में आप जो लिख रहे हैं; उसका अप्रिय पक्ष यह है कि उन्हें जो लाइमलाइट मिलेगी वह उन्हें सहायता की बजाय उनके ध्येय में अवरोध बन सकती है।”

राजीव टण्डन जी की आशंका से मेरी पत्नीजी भी सहमत हैं। उनके अनुसार भगवान अपने भक्त की साधना की तीव्रता टेस्ट करने के लिये प्रसिद्धि, सफलता, प्रभुता जैसे कई चुग्गे डालते हैं। उनके कारण हुये अहंकार से साधक को निपटना पड़ता है। “आखिर देखिये न! नारद जैसे सरल भग्वद्भक्त ब्रह्मर्षि की भी यह परीक्षा लेते कितनी फजीहत कराई उन्होने। ये भगवान बहुत बड़े कलाकार हैं।”


प्रेमसागर पाण्डेय

मैंने उक्त मुद्दों पर प्रेमसागर जी से बड़ी बेबाकी से बातचीत की। सुधीर जी की आशंकाओं और सुझावों से मोटे तौर पर सहमत दिखे प्रेमसागर। सैण्डिल और मोजा पहनने को वे तैयार हो गये हैं। दो केले सेवन का दैनिक कृत्य करना उन्हें उपयुक्त लग रहा है। बीच में जब सुलभ हो दूध दही का प्रयोग भी करने को माना। मल्टीविटामिन आदि के बारे में सुधीर जी को बताना होगा। वैसे वे बबूल का गोंद और मिश्री रात में पानी में भिगो कर सवेरे उसका सेवन करने लगे हैं। बताया गया है कि वह शरीर में जरूरी पौष्टिकता देता है। वे अपने परिचय पत्र के बारे में भी सुधीर पाण्डेय जी से बात करेंगे। रिफ्लेक्टर वाले जैकेट के बारे में तो कोई धार्मिक अड़चन है ही नहीं, उसकी उपलब्धता का मुद्दा जरूर है। सतर्क चलने को तो वे भी महत्व देते हैं।

राजीव टण्डन जी और मेरी पत्नीजी की आशंकाओं के बारे में प्रेमसागर ने कहा – “भईया, इस बारे में पहले से पता है। सतर्क तो हम पहले से ही हैं। मेरे साथ बाबा धाम की कांवर यात्रा करने वाले बंधु ने भी इस बारे में पहले से आगाह कर दिया था कि बहुत से लोग आयेंगे उनसे विचलित नहीं होना है। मैं खुद लोगों को अपनी ओर से कहता हूं कि वे मुझे बाबाजी या महराज जी न कहा करें, भाई कह कर बुलाया करें। लोगों को अपनी ओर से मैं परिचय नहीं देता कि यह यह करने निकला हूं या काशी से आ रहा हूं। आज अनूपपुर के दस पंद्रह किलोमीटर पहले एक वृद्ध मिले थे। वे कहे कि उनकी पतोहू की डिलिवरी होनी है और वह बहुत पीड़ा में है। अगर वे कुछ मंतर जंतर सकें… मैंने उन्हें कहा कि मैं तो साधारण तीर्थयात्री हूं, कोई बाबा या महराज नहीं जो इस प्रकार की सहायता कर सकूं। हमें तो बाबा का ‘ब’ नहीं मालुम है। …।”

“आप मेरे बारे मेंं लिख रहे हैं, उससे मैं गर्वित नहीं होऊंगा, इसके लिये सजग रहा हूं और रहूंगा। आप डेली लिखें चाहे दिन में तीन बार भी लिखें, मैं उससे विचलित नहीं होऊंगा, भईया। लालसा बढ़ने से तो सारा पूजा-पाठ, सारी तपस्या नष्ट हो जाती है।”

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है।
नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ।
और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है।
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची

कल 17 सितम्बर को प्रेमसागर शहडोल से अनूपपुर की पदयात्रा सम्पन्न किये। रास्ते में एक दो जगह बारिश के कारण रुकना पड़ा; पर व्यवधान ज्यादा नहीं हुआ। मैंने दो तीन बार बीच में बात की। मेरे मन में यह था कि अगर मौसम अचानक बहुत खराब हुआ तो फंस सकते हैं प्रेमसागर। पर वैसा कुछ हुआ नहीं। उनके उत्साह में कोई कमी नहीं लगी बातचीत में।

गूगल मैप में नया रास्ता और पुराना सर्फा नाला पुल

रास्ते में उन्हे सर्फा नदी (गूगल मैप में सर्फा नाला) मिली। किसी भी अलग सी चीज, अलग से दृश्य का चित्र लेने का मैंने उन्हें अनुरोध कर रखा है। उन्होने नदी का नाम बताया, उससे मैंने गूगल मैप पर सर्च किया। मैप के अनुसार उसपर एक पुराना पुल भी है। शायद नये पुल से उस पुराने पुल का चित्र प्रेमसागर जी ने लिया था –

सर्फा नाले के पुराने पुल का चित्र

प्रेमसागर जी को आगे सोन नदी मिली। उसके कुछ अच्छे चित्र उन्होने भेजे। बेहतर मोबाइल से बेहतर चित्र! मेघाच्छादित आकाश नजर आता है और नीचे अच्छी खासी जलराशि। नीचे जल था, ऊपर जल था! जलमय ही दृश्य था सोन नदी का।

सोन यहां काफी बड़े पाट वाली लग रही हैं – यद्यपि मैदानी भाग में जो उनका नद वाला चरित्र है, वह परिलक्षित नहीं होता। हम अजीब लोग हैं; झरना दिखे तो नदी, नदी दिखे तो नद या झील और नद दिखे तो सागर की कल्पना करने लगते हैं। जो सामने होता है उसे जस का तस अनुभव करने का सुख लेना हमारी प्रवृत्ति में नहीं है। एक अच्छे यात्री में वह प्रवृत्ति गहरे से होनी चाहिये। यह नहीं कि उसे विंध्य या सतपुड़ा का जंगल दिखे तो मन दन्न से अमेजन के जंगलों की कल्पना करने लगे। पर मैं तो पदयात्री हूं नहीं! मेरी अपनी सीमायें हैं!

सोन नदी, शहडोल से अनूपपुर के रास्ते में

सबसे घटिया यात्री वे होते हैं, जो बड़ा खर्चा कर जगहों पर जाते हैं और वहां देखने की बजाय अपना वानर जैसा मुंह कई कई कोणों से घुमा कर, ताजमहल के कगूरे पर हाथ रख कर और एफिल टावर से लटकती गर्लफ्रैण्ड का टनों चित्र लेना ही ध्येय मानते हैं यात्रा का। उत्तमोत्तम यात्री प्रेमसागर जैसे हैं। कभी मन होता है उनसे पूछूं कि अपना खर्चा का हिसाब रखते हैं? कितना खर्चा होता होगा सप्ताह भर में। और खर्चा क्या होगा? दो रोटी खाने वाला, पैदल बिना टिकट चलने वाले का खर्चा भी क्या?! यात्री हो तो प्रेमसागर जैसा। अपनी बुद्धिमत्ता के बोझ से दबा हुआ भी नहीं, बाबा विश्वनाथ की प्रेरणा से चलता चले जाने वाला यात्री। और अब तो मेरी लेखन जरूरतों के हिसाब से बेचारे अपना मोबाइल-कैमरा आदि साधने लगे हैं! 😆

रास्ते में अनूपपुर से करीब पंद्रह किलोमीटर पहले उन्होने काली माता के मंदिर में विश्राम भी किया था। उस मंदिर के चित्र भी हैं उनके ह्वाट्सएप्प मैसेज में। मैं सोचता हूं कि प्रेमसागर सुर्र से यात्रा करते चले जाते हैं। उस प्रकार की यात्रा करने वाला जो नहीं जानता कि उसका दांया पांव उठ रहा है या बांया। पर प्रेमसागर वैसे हैं नहीं। रास्ते में बोलते बतियाते, रुकते सुस्ताते भी चलते हैं। यह तो मेरी कमी है कि मैं उनसे विस्तार से खोद खोद कर पूछता नहीं। वह करता होता तो शायद यह डिजिटल ट्रेवलॉग (यह शब्द मेरा नहीं, प्रवीण पाण्डेय का दिया है!) बेहतर बन सकता।

रास्ते में पड़ा काली मंदिर

प्रेमसागर जी ने बताया कि प्रवीण दुबे जी ने फोन कर कहा है कि एक दिन वे अनूपपुर में गुजारें। इसलिये आज वे अनूपपुर में ही रहेंगे। प्रवीण दुबे जी बहुत सरल, मेधावी और संत स्वभाव के व्यक्ति हैं। उनकी सहायता से प्रेमसागर की यात्रा बहुत सहज ढंग से हो रही है। उन्होने एक दिन अनूपपुर में रुकने को कहा है तो उनके मन में कोई बात होगी ही। देखें, आज क्या करते हैं प्रेमसागर।

बिचारपुर शहडोल से सीतापुर अनूपपुर का रास्ता। मार्ग में सोन नदी पड़ती हैं।

कल प्रेमसागर के सोन नदी के चित्र देख कर मुझे थोड़ा कंफ्यूजन था कि अनूपपुर के सीधे रास्ते पर तो सोन पड़ती नहीं हैं। आज उन्होने मैसेज में बताया कि वे सीतापुर, अनूपपुर में हैं। यह अनूपपुर की बजाय बुरहर से अलग रास्ते पर पड़ता है। सीतापुर, अनूपपुर के कुछ चित्र भी प्रेम सागर ने दिये हैं।

सीतापुर अनूपपुर में डिप्टी रेंजर साहब राजेश कुमार रावत जी के साथ प्रेमसागर
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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

6 thoughts on “प्रेमसागर के बारे में आशंकायें

  1. बुढ़ार से चचाई होते हुए अनूपपुर के रास्ते में सोन नहीं पड़ती। एक नेशनल हाईवे का जीर्णोद्धार हुआ है जो कोतमा जाता है अमलाई होते हुए। अनूपपुर बायपास होता हैं। उस रास्ते पर सोन पड़ती हैं। चचाई में बहुत पुराना सरकारी थर्मल पावर प्लांट हैं और अमलाई में बिड़ला की प्रसिद्ध ओरिएन्ट पेपर मिल।
    ये क्षेत्र कोयला खनन के लिए भी प्रसिद्ध हैं। रीवा से शहडोल आते हुए बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व भी पड़ता है।
    अनूपपुर जिले के जैतहरी तहसील में मोजर बेयर के थर्मल पावर प्लांट में मैं नौकरी करता था।

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  2. इधर कुछ दिनों से मैं नर्मदा परकम्मा पर विडिओ देख रहा हूँ , तो इसके अधिकांश यात्री परिचय पत्र तो रखते ही है साथ में एक डायरी में यात्रा में पड़ने वाले मठ मंदिर के पूजारियो महंथो से हस्ताक्षर मुहर और मोबाइल न. भी लेते है | प्रेमसागर जी भी चाहे तो ऐसा कर सकते हैं सुरक्षा के मद्देनजर |

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    1. जी। प्रेमसागर को ऐसा करना चाहिये। अभी फिलहाल तो वे मेरा ब्लॉग ही खोल कर दिखाते हैं!
      मैं उन्हें सुझाव दूंगा।

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  3. अनूपपुर बड़ा स्थान है, रेलवे की दृष्टि से। बिलासपुर से आने वाली एक लाइन मनेन्द्रगढ़ की ओर चली जाती है, एक कटनी की ओर। लम्बा चलना है तो
    सुहृदों की सलाह मानना ही अच्छा रहेगा।

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