डिण्डौरी – नर्मदा किनारे धर्मशाला में रात्रि

29 सितम्बर 21, रात्रि –

धर्मशाला वालों ने बहुत मान सम्मान किया। कमरे में झाड़ू लगवा कर दरी बिछवाई, गद्दा, चादर और कम्बल आदि साफ साफ दिये। धर्म शाला थी तो चारपाई नहीं थी, गद्दा फर्श पर ही लगा। बड़े आदर-प्रेम से भोजन कराया। “लगता है नर्मदा माई अपने पास रात में सुलाना चाहती थीं, सो उन्होने धर्मशाला में बुला लिया। अब कल सवेरे यहीं माई की गोद में स्नान कर आगे बढ़ूंगा।”

गाड़ासरई से डिण्डौरी की यात्रा कुछ कष्टदायक रही होगी। रास्ते में सड़क भी कहीं कहीं खराब थी। गिट्टी चुभ रही थी नंगे पैरों में। धूप भी थी और सड़क तप भी रही थी। उमस भी ज्यादा थी और फिर बारिश आ गयी। एक मंदिर में प्रेमसागर ने विश्राम किया। तीन घण्टे।

रास्ते में सड़क को चार लेन का बनाने का काम भी चल रहा था। उसके सम्बंध में एक दो चित्र भेजे हैं, पर उनसे गतिविधि स्पष्ट नहीं होती। चलते चलते लिये उनके चित्रों में कई बार बांयी ओर उनकी कांवर का कोई अंश भी आ जाता है। एक चित्र में एक नदी के पुल पर दांयी ओर एक ट्रक का कोना है और उसके बाद कपड़े का तिकोना टेण्ट जैसा रंगीन कपड़ा। यह ‘टेण्ट’ मुझे कई चित्रों में दिखा। तब समझ आया कि यह दृश्य का अंग नहीं है, दृष्टा का सामान है! :-)

कांवर पर वजन साधना और हाथ में स्मार्टफोन के कर चित्र लेने का प्रयास करना – प्रयाग से यात्रा शुरू करते समय प्रेमसागर को नहीं पता रहा होगा कि यह कार्य भी उनकी यात्रा का अभिन्न अंग हो जायेगा।

यह ‘टेण्ट’ मुझे कई चित्रों में दिखा। तब समझ आया कि यह दृश्य का अंग नहीं है, दृष्टा का सामान है!

एक जगह प्रेम सागर जी को उड़द की दंवाई करते पांच बैलों का युग्म दिखा। चित्र बहुत अच्छा आया है। उससे कई चीजें मुझे स्पष्ट हुईं। पहली बात तो यह कि उड़द की फसल – अभी कुआर महीने का पूर्वार्ध ही है – खलिहान में आ गयी है। दूसरे, मध्यप्रदेश में इस भाग में ट्रेक्टर का नहीं, बैलों का उपयोग खेती में हो रहा है। बैल भी स्वस्थ लग रहे हैं। उनकी हड्डियाँ नहीं दिख रहीं। इसका अर्थ है कि खेती किसानी में उनका नियमित योगदान है। किसान उनकी देखभाल ठीक से कर रहा है। तीसरे, पांच बैलों को एक साथ दंवाई में प्रयोग मैंने अपनी पिछली किसी याद में नहीं पाया – अपने बचपन को खूब कुरेदने पर भी। एक दो या ज्यादा से ज्यादा तीन बैल एक साथ दंवाई में प्रयोग होते देखे हैं। दो चित्र भेजे हैं प्रेम सागर जी ने। एक में बैल ही हैं और दूसरे में पीछे किसान एक पतली डण्डी लिये चल रहा है; जिससे कि अगर कोई बैल रुके तो उसके पृष्ठ भाग को खोद सके। चित्र इतना बढ़िया लगा कि मैंने उसे ब्लॉग हेडर बना लिया!

पांच बैलों से उड़द की दंवाई

मुझे लगा कि सप्ताह भर में किसान के यहां उड़द की नयी दाल दल कर तैयार हो जायेगी। नवरात्रि में किसी दिन बड़ा (दही बड़ा) जरूर बनेगा। कल्पना करने में ही मेरे मुंह में पानी आने लगा। उड़द का बड़ा – यहां उसे अवधी में बरा कहते हैं – और ढेर सारा पतला साम्भर मेरा प्रिय नाश्ता है। कल तो मातृ नवमी है। मेरे घर पर स्वर्गीय अम्मा की स्मृति में चने की दाल भर कर पूरी-पराठा बनेगा। कोंहड़ा की तरकारी और खीर साथ में होगी, इसलिये कल तो नहीं पर एक दो दिन बाद यह बड़ा साम्भर जरूर बनेगा – प्रेम सागर जी की यात्रा के साथ यूं जुड़ा जायेगा! :-)

प्रेम सागर बताये कि एक दो नदियां और मिलीं रास्ते में, उनके चित्र भी उन्होने लिये पर लगता है खांची भर चित्रों में लदने से वे रह गये। बहरहाल रास्ता, चित्रों से लगता है कि बहुत ऊंचाई नीचाई वाला नहीं है। नर्मदा, जो साथ साथ दांये चल रही होंगी प्रेम सागर के – साथ साथ पर दृष्टि के पार – वे भी पहाड़ पर उछलने कूदने से थक कर कुछ शांत हो चुकी होंगी।

चित्र प्रेमसागर ने रात साढ़े दस बजे भेजे। यह भी लिखा कि वे डिण्डौरी में राठौड़ धर्मशाला में रात विश्राम करेंगे। धर्मशाला नर्मदा तट पर है। मैंने उन्हें रात साढ़े दस बजे फोन कर पूछा तो उन्होने बताया कि वन विभाग में इंतजाम नहीं था। वहीं पता चला कि नर्मदा किनारे धर्मशाला है। वहां रुक जायें। धर्मशाला वालों ने पहले तो सौ रुपया किराया लिया, पर जब यात्रा का ध्येय उनको पता चला तो वे किराया वापस करने लगे। प्रेमसागर ने कहा कि अब जब दे ही दिया है तो उसका मंदिर में प्रसाद चढ़ा दीजियेगा।

उसके बाद धर्मशाला वालों ने बहुत मान सम्मान किया। कमरे में झाड़ू लगवा कर दरी बिछवाई, गद्दा, चादर और कम्बल आदि साफ साफ दिये। धर्म शाला थी तो चारपाई नहीं थी, गद्दा फर्श पर ही लगा। बड़े आदर-प्रेम से भोजन कराया। “लगता है नर्मदा माई अपने पास रात में सुलाना चाहती थीं, सो उन्होने धर्मशाला में बुला लिया। अब कल सवेरे यहीं माई की गोद में स्नान कर आगे बढ़ूंगा।”

30 सितम्बर 21, सवेरे –
डिण्डौरी में नर्मदा में स्नान के बाद प्रेमसागर।

सवेरे पौने सात बजे प्रेमसागर से बात हुई तो वे डिण्डौरी से निकल चुके थे। निकले ही थे। करीब पंद्रह मिनट हुआ था। सवेरे धर्मशाला वालों ने पूरे सम्मान से चाय पिला कर विदा किया। नर्मदा में स्नान के समय लिये चित्र प्रेमसागर ने भेजे हैं। सवेरे बादल थे और नदी के जल के समीप हल्की धुंध थी। अन्यथा डिण्डौरी में नर्मदा अपने पूरे सौंदर्य के साथ होती हैं। मानो अपने पिता अमरकण्टक/मैकल के यहां से उछलती कूदती आ कर यहां कुछ विश्राम करती हों और अपना सिंगार करती हों। यहां के बाद वे मण्डला की ओर मुड़ जाती हैं। प्रेमसागर को सीधे जबलपुर निकलना था। वे द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा के अनुशासन से बंधे हैं, नर्मदा माई की परकम्मा के अनुशासन से नहीं। उन्होने नर्मदा माई को प्रणाम किया। पुल पार कर नर्मदा के बांयी ओर से दांई ओर आ गये। नर्मदा माई मण्डला घूम कर जबलपुर आयेंगी और वे सीधे पंहुचेंगे।

आज प्रेमसागर करीब चालीस किलोमीटर चल कर अमेरा पंहुचेंगे। कल जो चलने में कष्ट हुआ है, उसको ध्यान में रख कर अब उन्होने रबड़ की सैण्डल खरीदने का मन बना लिया है। मेरी पत्नीजी कहती हैं कि उन्हें सेण्डल खरीदने का पैसा भेज दो। मैं उन्हें कुछ कहता नहीं। प्रेमसागर पर शंकर भगवान और नर्मदा माई – दोनों की असीम कृपा है। मैं कौन होता हूं उन्हें देने वाला। मेरा काम महादेव जी ने लिखने का बांट दिया है, वही देखता हूं!

प्रेम सागर ने नर्मदा माई को प्रणाम किया। पुल पार कर नर्मदा के बांयी ओर से दांई ओर आ गये। नर्मदा माई मण्डला घूम कर जबलपुर आयेंगी और वे सीधे पंहुचेंगे।

आज मातृ नवमी है। अम्मा जी की स्मृति में दाल की पूड़ी, कोंहड़ा की तरकारी और खीर बनी है। नहा धो कर मैं अम्मा को और अपने पिताजी, बाबा, आजी, नाना, नानी – सब को प्रणाम करता हूं। आज वह भी किया और प्रेमसागर जी की यह पोस्ट भी लिखी। सब हड़बड़ी में हुआ है। कुछ छूट भी गया होगा। उसे बाद में अपडेट करूंगा। अभी अम्मा जी की स्मृति में दान देने के लिये बाहर जाना है। … की बोर्ड पर बैठने के लिये पत्नीजी आज तमतमाई नहीं, पर लगता है प्रेम सागर जी के चक्कर में अपनी दिन चर्या में कुछ परिवर्तन करने होंगे। जैसे प्रेम सागर सवेरे उठ कर स्नान पूजा कर लेते हैं; मुझे भी वह कर लेना चाहिये। उसके बाद वे कांवर संभालते हैं और मुझे तब की-बोर्ड संभालना चाहिये। … यात्रा और डिजिटल यात्रा की जुगलबंदी में सुर कुछ बेहतर सामंजस्य से निकलने चाहियें! :lol:

आज की यात्रा – डिण्डौरी से अमेरा
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द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

8 thoughts on “डिण्डौरी – नर्मदा किनारे धर्मशाला में रात्रि

  1. जिस तरह से संजय की भांति प्रेम सागर पांडे जी की तीर्थ यात्रा का वर्णन कर रहे हैं ऐसा लगता है कि उसमें कहीं न कहीं शिव ओलियाये हुए हैं। देश के लिए जो महत्व जीडीपी का है वही प्रेम सागर पांडे जी के लिए GDP का है। जय हो।😊

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    1. प्रेमसागर तो बिना बजट, बिना पैसा चल दिये हैं। उनका बैंक अकाउण्ट तो महादेव के पास है जो कभी पकवान थमाते हैं कभी भभूत। फिलहाल पकवान ज्यादा ही मिल रहा है! :-)

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  2. सच कहा, कीबोर्ड ही आपके काँवर हैं। मुझे लगता है कि पुराने समय में जब तीर्थयात्रा के इस प्रकार के संकल्प अधिक होते थे, यात्रियों की सुविधा हेतु धर्मशालायें अधिक प्रवृत्त रहती होंगी।

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    1. हाँ अब भी वे ही काम आई. नर्मदा परिक्रमा मार्ग में तो वे अभी भी महत्त्वपूर्ण होंगी ही.

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  3. नीरज प्रताप सिंह जी की फेसबुक पर टिप्पणी
    मेरे यहाँ दस दस बैलों से गेंहूँ,उरद,की फसल तैयार होती थी,तब थ्रेसर नहीं आया था,उरद को हमारे यहां कलाई कहते है,पर इसकी बुआई अभी हो रही होगी ,आजकल इसकी तैयारी कटाई भी होती है यह पहली बार पता चला,हमारे यहाँ बाढ़ का पानी खेतों से निकलने पर उस कीचड़ में उरद के बीज छींट दिये जाते हैं और दो ढाई महीने में फसल तैयार,कहाबत है कि यह फ्री का फसल है,कोई मेहनत नहीं,दाना छींट दो,फसल उखाड़ लो,सचमुच में भारत विविधता वाला देश है ,लगता है भोलेदानी ने आपको लिखने का आदेश दिया है तो हमें आपकी लेखनी पढ़ने का,काफी कुछ नयी जानकारी मिल रही है,सर लिखते रहिये,,,,प्रणाम

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  4. प्रेमसागरजी अपनी धुन में जा रहे हैं, इसी कारण रास्‍ते में लोगों को अधिक अपने बारे में बताते नहीं हैं, वरना धर्मशाला में हुआ सम्‍मान तो सामान्‍य बात है, ठीक प्रकार से प्रचार हो तो पता चले कि यात्रा के अगले पड़ाव में स्‍वागत द्वार भी लगे मिल जाएं…

    वैसे प्रेमसागरजी अगर नंगे पैर चलना चाहते हैं तो संभवत: यह बेहतर विकल्‍प है, बजाय सैंडल पहनने के। कुछ स्‍थान कठिन जान पड़ेंगे, लेकिन अधिकांश यात्रा में उन्‍हें अधिक दिक्‍कत नहीं होनी चाहिए।

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    1. लोगों के कहने पर तो उन्होंने चप्पल सैंडल लिया नहीं. अब पिछले दो दिन से गर्मी और गिट्टी से पैर क्षति ग्रस्त हुए हैं तो उन्हें खुद ही लगा है. आज रास्ते में लिया है रबर का सैंडल.
      यह तो है कि वे प्रचार सम्मान की राजसिक भूख वाले नहीं हैं…

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