राजेश ने लगाई है पान की मेज

यह छोटा सा गांव है जिसमें समरसता और भाई चारे की बहुत कमी है। कभी कभी लगता है कि इसका विखण्डन ही होना चाहिये। या कोई सेल्फलेस लीडरशिप दिखाये तो भला हो।

राजेश शांति का बेटा है। छोटा बेटा। कोई काम धाम नहीं है/था उसके पास। गाड़ी चलाना जानता है पर उसे किसी ने गाड़ी पर रखा नहीं। कुछ दोष होंगे। लोग तरह तरह का बोलते हैं पर मैं उसके फेर में नहीं पड़ना चाहता।

[यह छोटा सा गांव है जिसमें समरसता और भाई चारे की बहुत कमी है। कभी कभी लगता है कि इसका विखण्डन ही होना चाहिये। या कोई सेल्फलेस लीडरशिप दिखाये तो भला हो। मेरे दो साले लोग – देवेंद्र भाई और शैलेंद्र दो अलग अलग खेमे के नेता हैं, पर उनकी आपसी टिर्र-पिर्र में गांव का कोई भला होता नहीं दीखता। … ये प्रबुद्ध लोग नई पीढ़ी के निठल्लत्व को दूर करने के लिये प्रयास करते दिखते नहीं।]

जब मैं मन्ना पण्डित के अहाता से दूध लेने जाता था तो शांति बैठी दीखती थी। उसके वैधव्य, बुढ़ापे और विपन्नता पर मैंने बहुत सोचा था और दो पोस्टें लिखी थीं –

शांति, राजेश की माता जी

नारी, बुढ़ापा और गांव तथा शांति, बद्री साधू और बंसी

राजेश को इधर उधर घूमने की बजाय आजकल मैंने पान की एक मेज लगाये पाया उस जगह पर जहां गांव की सड़क नेशनल हाईवे से जुड़ती है। बहुत अच्छा लगा मुझे। निठल्ला घूमने की बजाय वह दुकान लगा कर बैठने का अनुशासन अगर अपने में ला रहा है तो उसका स्वागत होना चाहिये। उसके पास पान, गुटका और तम्बाकू/जर्दा के पाउच हैं। मैं इनमें से किसी चीज का सेवन नहीं करता, अन्यथा उससे ही खरीदने की अपने में आदत बना कर उसको प्रोमोट करता।

राजेश अपनी पान की मेज पर

कहीं से पुरानी मेज ला कर उसने अपनी दुकान सजाई है। उसकी प्लाई उखड़ रही है। उसे मैं सुझाव देता हूं कि आमदनी से कुछ बचत कर वह पेण्ट ला कर उसपर रंग कर दे, जिससे उसकी मेज आकर्षक लगे। वैसे, अगर वह नियमित बैठने लगा तो मैं ही एक डिब्बी पेण्ट और ब्रश खरीद कर उसे दूंगा जिससे उसका मन दुकान में और रमे।

पास में हनुमान जी का मंदिर है जिसमें राजेश का बड़ा भाई कैलाश पुजारी है। बजरंगबली ही, वाया कैलाश, राजेश को सद्बुद्धि दें और राजेश की मेज-कम-दुकान चल निकले। यही कामना करता हूं।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

8 thoughts on “राजेश ने लगाई है पान की मेज

  1. परिवेश में जिसकी दुकान चलती देखी हैं, उसी के अनुगामी दिख रहे हैं। अन्य व्यवसायों के स्वतन्त्र चिन्तन का प्रेरक बनना होगा आपको। आधुनिक शिष्य बनाइये।

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  2. नीतू आर पाण्डेय, ट्विटर पर –
    आपके ब्लाग को पढ़ा , चूंकि वो सड़क नेशनल हाईवे पर जुड़ती है तो कुछ और भी समान रख सकते है ।।
    पानी की बोतल , खुद ही चाय भी बना सकते है , चिप्स नमकीन के 5 रूपये वाले पैकेट भी ।।
    अच्छी बात है कि राजेश जी कुछ अपना कर रहे है और आपके ब्लाग के जरिए हमलोग राजेश जी को।।

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  3. राजकुमार उपाध्याय, ट्विटर पर –
    जहाँ तक बात समरसता की है, वो तो केवल गाँव के स्तर पर नहीं बल्कि सर्व व्याप्त है। अगर खुश रहना है तो उसीमें ख़ुशी ढूँढना पड़ेगा। एक देश के आसपास ४ या ५ देश होंगे लेकिन समरसता देख पाना बड़ा मुश्किल है।

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  4. रवींद्रनाथ दुबे, फेसबुक पर –
    लड़के कुछ करें तो मददगार कोई भी हो सकता है। पर ढाक के वही तीन पात।

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  5. दिनेश कुमार शुक्ल, फेसबुक पर –
    पान मसाले की पुड़ियों की माला धारे
    बैठी हैं गुमटियां सड़क के ऐन किनारे…

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  6. विवेक श्रीवास्तव, फेसबुक पर –
    मंदिर है तो मंगल शनि प्रसाद भी साथ रख सकता है। ज्यादा कुछ नही तो बताशा इलायची दाना ही।

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