आज सवा छ बजे घर का गेट खोलने बाहर निकला तो पाया कोहरे की शुरुआत हो गयी है। अब दिनचर्या बदलेगी। सवेरे सात बजे साइकिल ले कर निकलने की बजाय अब नौ या दस बजे निकलना होगा। लेकिन साइकिल चलाते रहो ज्ञानदत्त जी। शारीरिक और मानसिक दोनो फिटनेस का मूल साइकिल में ही है। जिस किसी ने साइकिल ईजाद की है, उसे नोबेल मिलना ही चाहिये था। या उससे भी बड़ा कोई पुरस्कार!

कायदे से यह सूचना ट्विटर या फेसबुक पर देने वाली है। पर मैं अपनी सामग्री उस मीडिया पर देने में अब संकोच करने लगा हूं, जिसकी हाफ-लाइफ घण्टो या दिनों भर में हो। पिछले दशक में जितना ट्विटर, इंस्टाग्राम या फेसबुक पर ठेला होगा, वह कुल 10-20 हजार शब्द तो होंगे ही। या ज्यादा भी। और उनके साथ कई चित्र जिनपर मैंने कॉपीराइट का वाटरमार्क भले ही लगाया हो पर वे मैं स्वयम नहीं तलाश सकता। इसलिये बेहतर है कि ब्लॉग पर उसे सहेजा जाये। सो यहां लिख रहा हूं कि आज कोहरे की शुरुआत हो गयी है!
सर्दी कल से ही बढ़ गयी है। आज ऊनी टोपी और गरम कमीज भी निकल गयी है। सुबेदार और बसंत को गरम कपड़े ड्राइक्लीन को भी दिये जा चुके हैं। ये दोनो गांव के धोबी हैं। बसंत तो मेरे ब्लॉग के एक चरित्र भी हैं। सुबेदार पर ट्विटर पर कुछ लिखा था, पर उसे निकालना टेढ़ा काम है।
सर्दी में उंगलियां की-बोर्ड पर कम चलती हैं, पर मानसिक हलचल खूब होती है। कोहरे के आने के साथ सर्दियों के मौसम को ले कर मन में खूब सनसनी है। आने वाले महीने आनंद दायक रहेंगे। यह आशा की जानी चाहिये।
स्वागत है कोहरा जी (और यह कोहरा जी ही हैं, महानगरों के स्मॉग रूपी दैत्य नहीं)। रेल की नौकरी में होता तो आपको देख तनाव बढ़ जाता; अब हर्ष हो रहा है। यह समय का परिवर्तन है! जय हो!
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अच्छा है, उड़न तश्तरी सवेरे-सवेरे उड़ती है! जय हो समीर लाल जी!
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