आज की शाम


माँ बिटिया में फिर वाक्-युद्ध होता है – “कटहल नहीं मिला? यहाँ मेरे पसंद की सब्जी भी नहीं खरीदना चाहती आप!” कोई भी बहाना हो, दोनो को लड़ना है ही। ये दो दिन लड़ने का आनंद लेने के लिये हैं।

आज की सुबह


घर पर आते आते थक जाता हूं मैं। एक कप चाय की तलब है। पत्नीजी डिजाइनर कुल्हड़ में आज चाय देती हैं। लम्बोतरा, ग्लास जैसा कुल्हड़ पर उसमें 70 मिली लीटर से ज्यादा नहीं आती होगी चाय। दो तीन बार ढालनी पड़ती है।

नवगछिया के आगे मिले गरुड़ जी


सन 2005 में जंगलराज खत्म होने के बाद थोड़ा माहौल बदला। तब जा कर इस पक्षी की मौजूदगी की भनक लगी ! 2006 में मन्दार नेचर क्लब ने इस पर रिपोर्ट भेजी। लोगो को जागरूक और भावुक करने के लिए इसे गरुड़ महाराज का नाम दिया।

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