मानस पाठ अभी भी जवान-बूढ़े सभी को अपने साथ जोड़े हुये है। तुलसीदास जी की इस कालजयी कृति की महिमा कम नहीं हुई है। धर्म, आस्था, सम्बल, मानता-मनौती और अभीष्ट पूरा होने पर ईश्वर स्मरण – सब के लिये रामचरित मानस का सहारा है।
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वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं, तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम्
आत्मबुद्धि वाला भाव दिन भर में पांच दस मिनट रहता है। वह बढ़े। सोवत जागत आत्मबुद्धि रहे। तब कोई समस्या नहीं। देह की और जीव की दशा जैसी भी हो, क्या फर्क पड़ता है तब। स्थितप्रज्ञ बनना ध्येय होना चाहिये।
द्वादशज्योतिर्लिंग यात्रा के बाद प्रेमसागर
प्रेमसागर जुट गये हैं गायों, वृद्धों और विकलांग बच्चों बारे में कुछ करने के लिये। एक कांवरिया का यह रूपांतरण मुझे आकर्षित भी करता है और उस प्रयास के प्रति आशंका भी देता है …
भरसाँय और मुहर्रम माई की पूजा
त्यौहार, पूजा और मुहर्रम को उससे जोड़ना – यह बहुत सचेतन मन से नहीं किया होगा उस बालक ने। पर मुहर्रम को मुहर्रम माई बना देना हिंदू धर्म का एक सशक्त पक्ष है। तैंतीस करोड़ देवता ऐसे ही बने होंगे!
रुद्राक्ष, तस्बीह और डिजिटल हज!
ज्योतिर्लिंग यात्रा विवरण तो मेरे ब्लॉग पर है ही। अब मन ललक रहा है कि किसी हाजी तो थामा जाये प्रेमसागर की तरह। उनके नित्य विवरण के आधार पर दो महीने की ब्लॉग पोस्टें लिखी जायें! वह इस्लाम को जानने का एक अनूठा तरीका होगा।
धर्मेंद्र सिंह की दण्डवत यात्रा
आगे एक दूसरा नौजवान सड़क पर लम्बा लेट कर दूरी नाप रहा था। उसके हाथ में एक पत्थर की गुट्टक थी। जिसे वह अपने हाथ आगे फैला कर सबसे अधिक दूरी पर रखता था और फिर उठ कर गुट्टक वाली जगह अपना पैर रख पुन: दण्डवत लेटता था।