इतना जरूर समझ आया कि पेट पालने को बहुतेरे उद्यम हैं। और उसके लिये सरकार को निहोरते निठल्लों की तरह बैठा रहना कोई सम्मानजनक समाधान नहीं है। आपके पास ऊंट हो तो ऊंट से, गदहे से, वाहन या सग्गड़ (ठेला) से सामान ढो कर अर्जन किया जा सकता है।
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आत्मनिर्भरता का सिकुड़ता दायरा
अब हताशा ऐसी है कि लगता है आत्मनिर्भरता भारत के स्तर पर नहीं, राज्य या समाज के स्तर पर भी नहीं; विशुद्ध व्यक्तिगत स्तर पर होनी चाहिये। “सम्मानजनक रूप से जीना (या मरना)” के लिये अब व्यक्तिगत स्तर पर ही प्रयास करने चाहियें।
छ्ठ्ठन, नये ग्राम प्रधान
वे खुद बताते हैं कि रेलवे गेटमैन की ड्यूटी करते हुये उनको सड़क यातायात वालों की खरीखोटी सुनने का अनुभव है और वे जानते हैं कि नम्रता से ही काम निकलता है, अकड़ से नहीं।
