सर्चने का नजरिया बदला!


@@ सर्चना = सर्च करना @@ मुझे एक दशक पहले की याद है। उस जमाने में इण्टरनेट एक्प्लोरर खड़खड़िया था। पॉप-अप विण्डो पटापट खोलता था। एक बन्द करो तो दूसरी खुल जाती थी। इस ब्राउजर की कमजोरी का नफा विशेषत: पॉर्नो साइट्स उठाती थीं। और कोई ब्राउजर टक्कर में थे नहीं। बम्बई गया था मैं।Continue reading “सर्चने का नजरिया बदला!”

चुनाव, त्यौहार, बाढ़ और आलू


मैं तो कल की पोस्ट – "आलू कहां गया?" की टिप्पणियों में कनफ्यूज़ के रास्ते फ्यूज़ होता गया। समीर लाल जी ने ओपनिंग शॉट मारा – "…मगर इतना जानता हूँ कि अर्थशास्त्र में प्राइजिंग की डिमांड सप्लाई थ्योरी अपना मायने खो चुकी है और डिमांड और सप्लाई की जगह प्राइज़ निर्धारण में सट्टे बजारी नेContinue reading “चुनाव, त्यौहार, बाढ़ और आलू”

बिगबैंग का प्रलय-हल्ला और शिवकुटी


बिगबैंग प्रयोग की सुरंग – एसोसियेटेड प्रेस का फोटो मेरे घर व आसपास में रविवार से सनसनी है कि दस सितम्बर को प्रलय है। किसी टीवी ने खबर ठेली है। कहीं कोई मशीन बनी है जो धरती के नीचे (?) इतनी ऊर्जा बनायेगी कि अगर कण्ट्रोल नहीं हुआ तो प्रलय हो जायेगा। मैने टीवी नहींContinue reading “बिगबैंग का प्रलय-हल्ला और शिवकुटी”

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