अन्तत: ब्रिटिश राज पर पर्दा गिर गया। हम सभी नेहरू की मशहूर “tryst with destiny” वाला भाषण नहीं सुन पाये, चूंकि हम सब के पास रेडियो सेट नहीं थे। हम सब खुश थे, पर उस खुशी का गर्मजोशी से इजहार नहीं कर रहे थे।
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हेमेन्द्र सक्सेना जी के संस्मरण – पुराने इलाहाबाद की यादें (भाग 1)
सन 1944 में इलाहाबाद “पूर्व के ऑक्सफोर्ड” के नाम से जाना जाता था। दो किलोमीटर के दायरे में विश्वविद्यालय सीनेट हॉल, म्योर सेण्ट्रल कॉलेज, आनन्द भवन और पब्लिक लाइब्रेरी स्थित थे। कहा जाता था कि अगर एक ढेला यहां फेंका जाये तो किसी न किसी महान हस्ती पर गिरेगा।
हेमेन्द्र सक्सेना, रिटायर्ड अंग्रेजी प्रोफेसर, उम्र 91, फेसबुक पर सक्रिय माइक्रोब्लॉगर : मुलाकात
हेमेन्द्र जी ने अपने संस्मरण टुकड़ा टुकड़ा लिखे हैं. उनके लगभग 14 पन्ने के हस्त लिखित दस्तावेज की फोटो कॉपी मेरे पास भी है. कभी बैठ कर उसका हिन्दी अनुवाद कर ब्लॉग पर प्रस्तुत करूंगा.
