द्वारिका और परवल का जवा


पचेवरा के घाट पर प्रतीक्षा करने वालोँ के लिये चबूतरा है। दाह संस्कार करने आये लोग और मोटर बोट पकड़ कर उस पार मिर्जापुर जाने वाले यहाँ इंतजार करते हैँ। मैँ सवेरे वहां तक चक्कर लगाता हूं। कुछ देर सुस्ताने के लिये उस चबूतरे पर बैठता हूं। वहां से गंगा की धारा भी दिखती हैContinue reading “द्वारिका और परवल का जवा”

कुनबीपुर में मचान और खीरे का मोल भाव


एक मचान देख कर मैं ठहर गया। सवेरे के सूरज की रोशनी में देखने की इच्छा के कारण मेड़ पर पैर साधते हुये मचान के दूसरी ओर पंहुचा। साथ में राजन भाई थे। सवेरे की साइकलिंग में मेरे सहयात्री। महिला मचान के पास थी। नाम पूछा – अमरावती। मचान उसका नहीं था। वह सवेरे सवेरेContinue reading “कुनबीपुर में मचान और खीरे का मोल भाव”

व्यास जी और महाकाव्य सृजन


मार्च’5, 2017: सवेरे की साइकलिंग में हम चले जा रहे थे। राजन भाई और मैं। राजन भाई से मैने कह दिया था कि सड़क-सड़क चलेंगे। पगडण्डी पर साइकल चलाने में शरीर का विशिष्ट भाग चरमरा उठता है। पर राजन जी ने बीच में अचानक पगडण्डी पकड़ ली थी और मैं पीछे चले जा रहा था।Continue reading “व्यास जी और महाकाव्य सृजन”

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