सवेरे के मित्र मेरे घरपरिसर के पेड़ पौधे और जीव होते थे। आज मेरा सौभाग्य था कि बाबा जी अपने से आ गये। जाते जाते मेरे परिवार को, मेरी पत्नी, बिटिया-दामाद और बेटा-बहू को भी आशीर्वाद दे कर गये।
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उमरहाँ के राकेश मिसिर जी
राकेश जी को छोड़ने के लिये मैं घर के गेट तक गया। उनके जाते हुये मन में विचार आया कि घर में किसी के आने पर उन्हें चाय परोसी जाये तो (लौंग-इलायची भले हो न हो) साथ में तश्तरी में एक चुनौटी और सुरती होनी ही चाहिये।
सुमित पाण्डेय, फर्नीचर निर्माता
सुमित ने मुझे एक छोटी चौकी उपहार स्वरूप बना कर दी है। मेरे मन माफिक। उसका प्रयोग मैं बिस्तर पर बैठ लिखने-पढ़ने के लिये करता हूं।
व्यक्ति की जिस चीज में आसक्ति हो और कोई वह उपहार स्वरूप दे दे तो उस व्यक्ति को कभी भूलता नहीं वह।
